विनय गुप्ता
वर्ष 2020 में जब संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित जैव विविधता दशक का समय पूर्ण होगा, उसी समय
भारतीय जैव विविधता अधिनियम भी वयस्क हो जाएगा। 11 दिसंबर 2002 को जैव विविधता
अधिनियम पारित किया गया था। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण बनाया गया। जिसका
मुख्यालय चैन्नई में स्थापित किया गया। इसके साथ ही सभी राज्यों में जैव विविधता बोर्ड का गठन भी
किया गया। इसके साथ ही स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों और शहरी निकायों में जैव विविधता प्रबंधन
समितियों के गठन का भी प्रवधान किया गया जो इस अधिनियम को लागू और क्रियान्वयन करने के
लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी बनाये गए हैं। 14 सितंबर 2010 को राजस्थान में जैव विविधता बोर्ड का
गठन हुआ। लेकिन बोर्ड के प्रावधान के अनुसार स्थानीय निकायों में जैव विविधता प्रबंधन समितियों का
गठन नहीं हुआ है। अरावली पवर्त श्रृंखलाओं और थार का रेगिस्तान की मिश्रित जैव विविधता की
पहचान रखने वाला राजस्थान ही जैव विविधता कानून और प्रावधानों से पूरी तरह वंचित है।
किसी भी प्राकृतिक ज़ोन में सभ्यता का विकास जैव विविधता के बिना संभव नहीं हुआ है। यह किसी
निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों और वनस्पतियों की संख्या पर आधारित होता है। इसका
संबंध पौधों के प्रकारों, प्राणियों एवं सूक्ष्म जीवों की विविधता से है। जैव विविधता से मृदा का निर्माण,
मृदा कटाव रोकथाम, परागण तथा जैविकीय अपषिष्टों के पुनःचक्रण की प्रक्रिया संचालित होती है, जो
मानव सभ्यता के अस्तित्व का आधार है। जैव विविधता के कारण ही खेती, पशुपालन, फलोत्पादन और
खाद्यान्न उत्पादन की गतिविधियां संचालित हो पाती है। मानव बस्तियों के आस-पास तनाव मुक्त
स्वस्थ्य वातावरण का निर्माण इन्हीं जैविकीय क्रियाओं से संभव होता है। बहुत से औषधीय तत्व जैव
विविधता के कारण ही प्राप्त होते हैं, जिनसे रोगमुक्त दवाओं का निर्माण होता है। थार का रेगिस्तान
जैव विविधता का धनी होने के कारण ही यहां जीवन की संभावनाएं और उत्कृष्ट सभ्यता विकसित हुईं।
लेकिन पिछले पांच छः दशकों में आधुनिक विकास के नाम पर कुछ ऐसी भूलें हुईं हैं, जिससे यहां की
जैव विविधता के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया। बहुत से प्राणी और पादप जीव लुप्त हो गए
और बहुत से लुप्त होने के नजदीक हैं। विकास के नाम पर रेगिस्तान में इंदिरा गांधी नहर के आगमन,
कृषि यांत्रिकरण के तहत ट्रेक्टर से खेतों की बुआई, सिंचित खेती में रसायनों का उपयोग, पारंपरिक जल
स्रोतों व चारागाहों के विकास की अनदेखी, पर्यावरणीय मानदंडों को दर किनार कर किया जाने वाला
खनन कार्य, जीवों के प्राकृतिक वास के नजदीक से निकाली गई सड़कें, विद्युतिकरण के खुले तारों,
मोबाइल टावरों से निकले वाली तरंगों, विंड एनर्जी की पवन चक्कियों, समुदाय की जैव विविधता के प्रति
समझ की कमी जैसे प्रमुख कारण है जिससे दुनिया की अनूठी जैव विविधता पतन की तरफ बढ़ रही है।
ट्रैक्टर से खेती ने रेगिस्तान की जैव विविधता को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। बहुत सी वनस्पतियां धीरे-
धीरे समाप्त हो रही है। रेगिस्तान को बांध कर रखने वाला फोग का पौधा लुप्त होने के नजदीक है।
हल्की सी बरसात से हरी होने वाली सेवण, धामण, मुरट, देषी बोरड़ी कुछ स्थानों पर ही देखने को
मिलती है। भुरट, बेकरियां, कांटी, झेरणियां घास, साटा, चंदलिया, गंठिया घास, तूंबा, अष्वगंधा,
शंखपुष्पि, धतूरा, रीगणी, चामकस जैसे असंख्य औषद्यीय पौधे भी लगभग गायब हो रहे हैं। जैव
विविधता की कमी ने रेगिस्तान के प्रसार को बढ़ाया है। कृषि योग्य उपजाऊ भूमि को धीरे-धीरे रेगिस्तान
निगल रहा है। इन सब बदलावों के बावजूद राजस्थान का जैव विविधता बोर्ड निष्क्रिय बना हुआ है।
जीव-जंतुओं की प्रजातियों पर भी आधुनिक विकास का कहर जारी है और गिद्द, जंगली कौआ, नीलकंठ,
कठफोड़वा, उल्लू और चील जैसे पक्षी रेगिस्तान से गायब हो गए। आज की नई पीढ़ी इन्हें केवल
किताबों, अथवा चित्रों में ही देख पाती हैं। मृत जानवरों के अवषेष ठिकाने लगाने वाले सियार, नाहर,
गादड़ा, लकड़बग्धा जैसे जीवों की अनुपस्थिति में वातावरण सड़ांध मारता है। वातावरण को दूषित करते
हैं। ऐसी स्थितियां उत्पन्न होने के बावजूद राज्य का जैव विविधता बोर्ड रेगिस्तान की जैव विविधता को
लेकर उदासीन है।
रेगिस्तान में पारंपरिक जल स्रोत और ओरण व गौचर के नाम से छोड़े गए चारागाह जैव विविधता
विकास और संरक्षण के सबसे बड़े स्रोत हैं। लेकिन दिनों दिन इनकी हालत बिगड़ती जा रही है। विकास
के नाम पर लाए गए पेयजल के वैकल्पिक स्रोत और दूसरे राज्यों से लाया गया चारा, इन्सानों और
पालतु पशुओं के संकट को कुछ समय तक टाल सकते हैं, लेकिन जैव विविधता के खात्मे की भरपाई
नहीं कर सकते। जीवन को चारा पानी के अतिरिक्त भी जीने के लिए कुछ और चाहिए। विकास के नाम
पर जुटाई गई वैकल्पिक व्यवस्थाओं के कारण पारंपरिक जल स्रोतों, चारागाहों से सरकार व समुदाय का
ध्यान हट गया। पारंपरिक जल स्रोत सूख गए और चारागाह वनस्पति विहीन हो जाने से जैव विविधता
का बड़ा नुकसान हो रहा है। पानी की अनुलब्धता और अवरूद्ध हुए स्थानीय वनस्पतियों के विकास ने
यहां के प्राणियों के सामने पानी और भोजन का संकट पैदा कर दिया, जिसके कारण या तो वे समाप्त
हो गए अथवा स्थान छोड़ कर अन्य अनुकूलन स्थानों में प्रवास कर गए।
जैव विविधता के नष्ट होने का असर केवल रेगिस्तान पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि दूसरे क्षेत्र भी प्रभावित
होंगे। तेजी से विस्तार हो रहा रेगिस्तान प्रति वर्ष कृषि की उपजाऊ भूमि को लील रहा है। भूमि की
उपजाऊ क्षमता घट रही है। फसलों और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाने वाले जीवों की संख्या बढ़ रही
है। भूमि की क्षारीयता में वृद्धि हो रही है। पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर विकास की
बुलंदियों को छूने वाली मानवीय फितरत के कारण उत्पन्न जलवायु परिवर्तन केे प्रभाव ने रेगिस्तान में
हो रहे इस बदलाव की गति पर विपरीत प्रभाव डाला है। रेगिस्तान का विस्तार अब दूसरे राज्यों में भी
हो रहा है। पानी का संकट बढ़ रहा है। बदलते मानसून चक्र और तरीकों के कारण सामान्य बरसात होने
के बावजूद सूखा और अकाल की उपस्थिति बढ़ रही है।
समाज और सरकार दोनों के लिए सोचने वाली बात है कि पौधों की जड़ों में सरंक्षण लेने वाले सूक्ष्म
जीवों के खात्मे से मृदा का निर्माण कैसे होगा? स्थानीय वनस्पतियां समाप्त होने से मृदा का कटाव कैसे
रूकेगा? परागण करने वाले कीटों की समाप्ति से भला फसलों में जान कैसे आ जाएगी? जलस्रोतों और
चारागाहों के नष्ट होने से पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करने वाले जीव-जंतु कहां बसाएंगे अपना बसेरा?
और यह सब नहीं रहेंगे तो कैसे बचेगा मानव का अस्तित्व? अब समय चिंता प्रकट करने और कन्वेंसन,
सम्मेलन, बैठकों में संकल्प और घोषणाएं पारित करने का नहीं है। स्थितियां और बदतर हो, इससे पूर्व
संभल जाने का समय है, कुछ करने का समय है, खोई हुई प्राकृतिक संपदा को पुनः जीवित करने का
समय है। राज्यों में निष्क्रिय हो चुके जैव विविधता बोर्ड को फिर से जगाने का समय है। जलवायु
परिवर्तन, जैव विविधता ह्रास, पारिथितिक अनुकूलनता के प्रति सोए हुए जिम्मेदारों को नींद से जगाने
का काम अब आमजन को करना ही होगा।