कुदरत का कैसा फरमान, पिंजरे में कैद हुआ इंसान?

asiakhabar.com | June 18, 2020 | 5:21 pm IST
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शिशिर गुप्ता

कुदरत का कैसा फरमान, पिंजरे में कैद हुआ इंसान?आज कुदरत के कानून के आगे मानव बेबस हो गया है।
प्राणदायी प्रकृति ने इंसान को आईना दिखा दिया है। प्रकृति की वेदना को संवेदनहीन व धनलिप्सा में डूबा मानव

दरकिनार कर रहा है। मगर प्रकृति ने अंधे हो चुके मानव की आंखे खोल दी है। मानव से दानव बन चुके कलयुगी
मानव को संयम व सबक सिखा दिया है। जीवन ठहर गया है। प्रकृति एक ऐसी देवी है जो भेदभाव नहीं करती
प्रकृति के बिना मानव प्रगति नहीं कर सकता, प्रत्येक मानव को बराबर धूप व हवा व पानी दे रही है। मानव
कृतध्न बनता जा रहा है। मानव ने स्वार्थो की पूर्ति के लिए प्रकृति को लहूलुहान किया है। आज प्रकृति ने अपना
बदला ले लिया है। तबाही की इबारत लिख दी है । मानव का अहम मिटाकर रख दिया है। गलतफहमियों में जी रहे
मानव आज प्रकृति के आगे नतमस्तक हो चुकें है। अतीत में की गए कुकर्मो का पश्चाताप कर रहे है। प्रकृति ने
मानव को समय≤ पर आगाह किया मगर इंटरनैट की दुनिया के जाल में फंसा मानव खुद को प्रकृति से बड़ा माने
लगा था उसे यह आभास नहीं था कि प्रकृति सबसे बड़ी गुरु है। प्रकृति ने बहुत कुछ सहा है चारों तरफ गंदगी है
वातावरण अशुद्ध हो गया है। वातवरण कि शुद्धि के लिए प्रकृति मजबूर हो गई और मगरुर हो चुके इंसान का
गुरुर तोड़ कर रख दिया है। अनजाने में हुई भूल को माफ किया जा सकता है मगर जानबूझकर की गई गलतियों
की सजा प्रकृति ने मानव को दे दी है। मानव को जीवन और मौत की परिभाषा सिखा दी है। यह प्रलय की आहट
है। कुदरत ने भटक चुके मानव को पाप और पुण्य का अंतर समझा दिया है। प्रकृति का एक संदेश है भटक चुके व
अहंकारी इंसान के लिए जो कुदरत से खिलवाड़ करता था। लाॅकडाउन प्रकृति के लिए वरदान है और मानव के लिए
अभिशाप बन गया है। मानव ने प्रकृति के दामन को मैला करने की गुस्ताखी करके अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाडी
मारी है। प्रकृति को अपने खिलाफ होने का निमंत्रण उिया है। किए की सजा को भुगतना ही पडे़गा। आज हवा में
प्रदूषण नहीं है वातावरण शुद्ध हो गया है। पक्षियों व जंगली जानवरों के झुंड शहरों में चहलकदमी कर रहे है
क्यांेकि आज मानव पिंजरे में कैद हो गया है। खुली हवाओं में सांस ले रहे है। आसमान साफ है रात को तारे
टिमटमाते दिख रहे है। बर्फ के पहाड़ दिख रहे है। नदियां, झरने और तालाबों का पानी साफ हो चुका है। निडर
होकर जंगल के राजा शेर व अन्य हाथी, हिरन व भालू सड़कों पर आराम कर रहे है। लाॅकडाउन से कानफोडू बसों
व रेलों के हार्न बंद हो चुके है। करोडों के हिसाब से प्रदूषण फैलाने वाले बाहनों के पहिए थम गए है। प्रकृति क्या
नहीं कर सकती व स्वतत्रं है। मानव ने उसे बेड़ियों में बांधने की नापाक कोशिशें की है मगर प्रकृति ने रौद्र रुप
दिखाया तो मानव एक जगह घर में स्थिर हो गया है और अपने भाग्य को कोस रहा है। एक मिनट बरबाद न
करने वाला मानव आज चुपचाप प्रकृति की मार झेल रहा है। चैबीसों घंटे माया के लिए भागदौड़ करने वाला व
व्यस्त रहने वाला इंसान आज चाहरदीवारी में आराम से बैठ गया है। प्रकृति आज खुश है कि उसे जख्म देने वाला
बिलख रहा है सिसक रहा है बाहर जाने को आतूर है छटपटाह रहा है, घुट रहा है मगर अभी समय लगेगा। आज
मानव स्वार्थ की पट्टी के कारण अंधा होता जा रहा है । गाय पर अत्याचार हो रहा है । मानवीय मूल्यों का पतन
होता जा रहा है । मानव आज कैदी बन गया है। प्रकृति के जख्म नासूर बन चुके है। जख्म रिसते जा रहे है। जर्रा-
जर्रा जख्मी है जख्मों के दाग साक्षात प्रकृति के शरीर पर दिया रहे है। इसके लिए मानव ही जिम्मेवार है। प्रकृति
का सीना छलनी करने वालों अभी कुदरत तुम्हें खून के आंसू रुलाएगी। पल-पल का हिसाब मांगेगी। वजूद खत्म कर
देगी। चंद सिक्को व कागज के टुकडों की चाहत में नदियों में खनन किया जा रहा है। जीव-जन्तुओं को मारा जा
रहा है। पहाड़ेंा को काटकर आशियाने व बहुमंजिला इमारतें बना रहा है। हजारों जन्तू मारे जा रहे है। प्रकृति के
आगे आज मानव के कर्मो का बही खाता खुल चुका है। अब कुदरत खुद ही फैसला करेगी। दर्द कैसा होता है पता
चल जाएगा कि दूसरो को जख्म देना कितना असान होता है जब खुद जख्मी हो जाओगें तब होश ठिकाने आ
जाएगें आ रहे है। मानव भी प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते जब प्रकृति अपना बदला लेती है तो
नेस्तनाबूा कर देती है। धराशायी कर देती है। पल भर में मिटटी में मिला देती है। चिथडे उड़ा देती है जो कुदरत के
विरुद्ध चलता है। सबक सिखा देती है कि अभी भी समय है संभल जा मानव नही तो मौत के भीख मांगने के
लिए मजबूर कर दूंगी। इनसान पशु से भी बदतर होता जा रहा है । क्योकि यदि पशु को एक जगह खूंटे से बांध

दिया जाए, तो वह अपने आप को उसी अवस्था में ढाल लेता है । जबकि मानव परिस्थिितियों के मुताबिक गिरगिट
की तरह रंग बदलता है। देश में कभी भूकंप, कभी सुनामी, जैसीे प्राकृतिक आपदाएं अपना जलवा दिखाती है तो
कभी बाढ़ का रौद्र रुप जिदंगियां लीलता है। लाखोंझारों लोग मारे जाते है। तब लोगों को होश आता समय≤ पर
भीषण त्रासदियां होती रहती है मगर हम आपदाओं से कोई सबक नहीं सीखते। हर त्रासदी के बाद बचाव पर चर्चा
होती है मगर कुछ दिनो बाद जब जीवन पटरी पर चलने लग जाता है तो इन बातों को भूला दिया जाता है। अगर
बीती त्रासदियों से सबक सीखा जाए तो आने वाले भविष्य को सुरक्षित कर लिया जा सकता है। कहते है कि
प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते परन्तु अपने विवेक व ज्ञान से अपने आप को सुरक्षित कर सकते है।
मगर हादसों व आपदाओं से न तो लोग सबक
सीखते है। मानव आज लापरवाही से जंगलों को बेरहमी से काट रहा है में आग लगा रहा है उस आग में हजारों
जीव-जन्तु जलकर राख हो रहे हैं । जंगली जानवर शहरों की ओर भाग रहे हैं, जबकि सदियां गवाह है कि शहरों व
आबादी वाले इलाकों में कभी नहीं आते थे, मगर जब मानव ने जानवरों का भोजन खत्म कर दिया । जीव-जन्तओं
को काट खाया तो जंगली जानवर भूख मिटाने के लिए आबादी का ही रूख करेंगें । नरभक्षी बनेगें । आज प्रकृति से
छेडछाड हो रही है । नदियों को प्रदूषित किया जा रहा है। प्रकृति के पास हर चीज का लेखा -जोखा है । कुदरत की
चक्की जब चलती है तो वह पाप व पापी को पीस कर रख देती है। यह अटल सत्य है। कुदरत की लाठी जब पडती
है तो उसकी आवाज नहीं होती। प्रकृति इस धरा को अनमोल खजाना लुटाया है। प्रकृति के नियमों के खिलाफ जानें
की जिसने भी हिम्मत की वह औंधे मुंह गिरा है। प्रकृति ने मानव को उसकी औकात से रुबरु करवा दिया है कि
निजि स्वार्थो तक ही उसकी सोच सीमित होकर रह गई है। प्रकृति की उपेक्षा करना छोड़ देनी चाहिए यही प्रकृति के
प्रकोप से बचने का एकमात्र सूत्र है। अगर अब भी समझ नहीं आई तो प्रकृति धूल चटा देगी
और दर-दर भटकने पर मजबूर कर देगी। मानव आज महामानव बनने की कोशिश कर रहा है। प्रकृति के नियमों
को धता बता रहा है खुद के नियम निर्धारित कर रहा है नव को अपनी सोच को बदलना होगा। विकास के लिए
प्रकृति का विनाश रोकना होगा। प्रकृति का ख्याल रखना होगा। यह प्रकृति का एक मौन संदेश है कि प्रकृति से
खिलवाड़ करना बंद कर दे। मानव को प्रकृति से माफी मांगनी होगी। प्रकृति के नियमों का पालन करना होगा।
संभल जा फितरती मानव अगर अपना वजूद बचाना है तो प्रकृति से खिलवाड़ और जुल्म बंद करे दें। प्रकृति को
बचाने का संकल्प लेना होगा। प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी, छेड़छाड़ बंद
करनी होगी। अगर अब भी मानव ने प्रकृति पर अत्याचार बंद नहीं किया तो प्रकृति अपना बदला लेती रहेगी और
मानव को सबक सीखाती रहेगी। अब मानव को प्रकृति के रहमों कर्म पर ही अपना जीवन जीना होगा। प्रकृति का
आदर करना सीखों जो प्रकृति का निरादर करेगा प्रकृति उसे कभी नहीं बख्शेगी। प्रकृति अगर चाहे तो भूखे मरने के
कगार पर ला सकती है पर प्रकृति ने सब कुछ भुलाकर इंसान को इंसान बनने का पाठ सिखाया है मगर
यह इंसान हैवान बन गया है। प्रकृति अगर मानव के आस्तिव को बना सकती है जो मिटानें में एक पल ही काफी
है। प्रकृति ने बहुत कुछ सहा है। हर चीज की हद होती है जब हद बढ़ जाती है तो आपदाएं आती है। मानव को
समझ नहीं आ रही है कि प्रकृति से आज तक कोई नहीं जीत पाया है। प्रकृति की लक्ष्मण रेखाओं को लांघने का
प्रयास करेगा तो भस्म हो जागा। प्रकृति जीवन दे सकती है तो मानव जीवन हर भी सकती है। पछतानें व रोने के
अलावा कुछ हासिल भी नहीं होगा। कहीं देर न हो जाए। वक्त अभी संभलने का है।


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