अर्पित गुप्ता
एक राजा के पास एक ग्रामीण नौकरी मांगने आया। राजा साहब ने कहा हमारे राज में बहुत ढोल की पोल हैं कोई
सी भी पीएलओ में जाकर कुछ करो। ग्रामीण दूरस्थ अंचल का था सो वह अपने गांव गया। गांव के पास एक नाला
था उस पर उसने कच्चा पुल बनाया और उस पर ढोल के पोल का टेक्स लेना शुरू कर दिया और उसका व्यवसाय
और आमदनी से भरण पोषण चलने लगा। एक राजा के एक सचिव उस गांव से पुल पार कर रहे थे तब उस
ग्रामीण ने उनसे ढोल की पोल का टेक्स माँगा। उस पर सचिव ने उससे पूछा किससेअनुमति लेकर यह टेक्स ले रहे
हो। तब उसने सचिव से कहा महोदय राजा साहब की आज्ञा से ले रहा हूँ। सचिव ने ग्रामीण की पेशी राजा साहब के
सामने कराई, तब उस ग्रामीण ने राजा साहब से उस मुलाक़ात की याद दिलाई।
इसी प्रकार सम्पूर्ण देश के अलावा हमारे मन पसंद शासन में यानी एम् पी गोवेरमनेट में कुछ विभाग ऐसे हैं जिन्हे
आप बिन वेतन के रख ले तो वे कर्मचारी /अधिकारी बिन वेतन के अपनी आजीविका चला सकते हैं। सामान्य रूप
से जिन पदों के नाम के साथ टरशब्द लगता हैं उन्हें वेतन की जरुरत नहीं बस पद और अधिकार मिल जाए जैसे
इंस्पेक्टर –फ़ूड, सेनेटरी, पुलिस, डॉक्टर, मास्टर, फोरेस्टर, कलेक्टर, मिनिस्टर। इनको बिना वेतन के भी पदस्थ
कर दिया जाय तो इनके पास अन्य आय से आजीविका चलती हैं या चल सकती हैं।
जैसे मनपसंद सरकार ने पुलिस को आहार भत्ता बढ़ाने की योजना हैं। इससे पुलिस को आहार की राशि कम होगी
पर उन्हें भोजनालय, होटल में आहार लेने की पूरी छूट होगी कारण पहले तो उनको नंबर दो में माँगना पड़ता था,
पर अब शासन के आदेश से अधिकृत रहेंगे। अब और निडरता से आहार भत्ता जनता से वसूलेंगे। बेचारे गुमटी वाले,
हाथ ठेला वाले। फल सब्जी चाट वालों से वे अधिकृत रूप से आहार के साथ भोजन भत्ता वसूल सकेंगे। सबसे
अच्छा ट्रक वालों से, बैरिएर पर खड़े होकर जिम्मेदार टर वसूली कर सकेंगे।
मिनिस्टर के यहाँ निर्धारित भाव तालिका लगेगी की डॉक्टर, मास्टर, कॉलेक्टर, इंस्पेक्टरों की पोस्टिंग और ट्रांसफर
के लिए आहार सूचि निर्धारित की गयी हैं जो वाकायदा राजपत्र में प्रकाशित होगी। वैसे कुछ इंस्पेक्टर घुस लेते
पकड़ते हैं और घुस देकर छोड़ देते हैं, यह जग जाहिर हैं। अब कुछ दिनों में लोकायुक्त, ई ओ डव्लू आदि विभाग
बंद करना पड़ेगे। क्योकि आहार जीवन की अनिवार्ययता हैं। घोडा घास से यारी करेगा तो भूखां नहीं मर जायेगा।
अब किसी के यहाँ आकस्मिक जाँच बावत सुबह धावा नहीं बोलना होगा। जिसके यह जाओगे उसके यहाँ शिष्टाचार
वश आहार मिलेगा। जीवन के तीन स्तम्भ हैं आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य। ये सब बातें पदाधिकारियों को मिलती
हैं। आहार के बाद निद्रा आती हैं उसके बाद ब्रह्मचर्य का पालन मुश्किल होता हैं। यानी मौसी वीरू में कोई बुराई
नहीं बस पीटा हैं। कइयों की शरीरिक भूख बहुत होती हैं।
एक वेश्याओं के मोहल्ले में आग लगी। फायर ब्रिगेड को आग नियंतरण करने में २ घंटे लगे पर आग बुझाने वालों
की आग शांत होने पर २४ घंटे लग गए।
इसलिए इसके लिए भी एक आयोग का गठन किया जाए और आहार के आधार पर अपना प्रतिवेदन दे। आहार
यानी आरोग्यवर्धक और हानिरहित को आहार कहते हैं। भोजन यानी भोग से जल्दी नष्ट होना।
मनपसंद सरकार का अनुकरणीय प्रयास अनुशंसनीय हैं।