विनय गुप्ता
अड्डानी-अम्बानी तो भारत को फिर से गुलाम बनाने में जुटे है। उनका जुड़ाव अब बिखरेगा। ‘‘विनाशकाले विपरीत
बुद्धि’’ अब ऐसा ही दिखाई दे रहा है। ऐसे में ‘सत्य-अहिंसा’ ही स्वराज्य का समाधान है। ‘स्वराज्य’ को सत्य
‘साध्य’ मानकर अहिंसामय साधना ‘किसान आंदोलन’ कर रहे है। इसमें किसानों के शुद्ध साधनों से ही साधना
सफल होगी। गलत साधन साध्य-सिद्धि कभी नहीं दिलाते है। आपका साध्य पवित्र है। इसकी पवित्रता शुद्ध
साधनों से ही बनी रहेगी। पवित्र साधनों से हुई साधना, साध्य सिद्धि सुनिश्चित कराती है। विनाशकाल ऐसे चलने
वाले को प्रभावित नहीं करता। ऐसी साधना में बाधा-अवरोध करने वालों का विनाश ही ऐसा काल बन जाता हैं।
अभी विनाशकाल चालू है। दो और दो की बुद्धि विपरीत बन गई है। इसकी हिंसक मार हमारी ‘‘ किसानी, जवानी,
पानी और पर्यावरण’’ को झेलनी पड़ रही है। यह काल शांतिमय अहिंसामय तरिकों से पूर्ण होगा। बिना डरे लगे रहें।
हमें कुछ बुरा नहीं करना है। बुरा करने वालों के मन में बुरा करने की बात पक्की बैठ गई है। यह सभी कुछ हम
मानकर विचार करके ही चलें। हिंसा से बचे। हिंसा का जबाव हिंसा नहीं है, इसे एक सफल-समय-सिद्ध सिद्धांत
मानकर चलें तो हमारे सत्याग्रह का साहस हमें सफलता दिलायेगा। खेती कानन हिंसक है। गरीबों, किसानों,
मजदूरों के जीवन में इस कानून से लूट बढ़ेगी। लूटेरों को संरक्षण देने वाले हिंसक ही होते है। लूटेरे आगे और भी
भयानक किसी प्रकार की हिंसक कार्यवाही, देश की गरीब जनता के मन में डर बढ़ाने हेतु कर सकते है। मुझे आज
प्रातः शंका हुई है। मैं आशंकित होकर यह लिख रहा हूँ। सरकारी हिंसा से देश में हिंसा बढ़ सकती है। हिंसक
डरपोक होते है। डरकर हिंसा करते है। किसान डरते नहीं है, इसलिए हिंसा का जबाव हिंसक नहीं अहिंसक बनकर
ही दें। सत्य के मार्ग पर चलने वाला किसी भी हिंसा, कैसी भी हिंसा का समाधान अहिंसामय तरिके से ढूँढ़ लेते है।
हिंसक रास्ते पर चलने वाले डरपोक व झूठे ही होते है। उनके हाथ में पूरी दुनिया की सबसे बड़ी ताकत भी दे दें,
तब भी वे डरे रहते है। झूठ-धोखा-हिंसा उन्हें अपने पूरे जीवन भर अनुशासित नहीं बनने देता है। डरने वाले
अनुशासित नहीं होते है। किसानों ने अभी तक अनुशासन का पालन किया है। ड़रे नही है। डरना भी नहीं, डर ही
झूठा और हिंसक बना देता है। भारत ने सदैव हिंसा का जबाव अहिंसामय बनकर दिया है। अंग्रेजों को भी
अहिंसामय सत्याग्रह से ही भगाया था। किसानों का आंदोलन बड़े उद्योगपतियों की लूट रोकने हेतु असली आजादी
है। यही सत्य है। इसी के आग्रह को पूरा करने हेतु किसान रातें सड़को पर ठंड में बिता रहे है। आपने अपनी
अनुशाषित-संगठित शक्ति दिखाई है। इस शक्ति को भारत पुनर्निर्माण में लगाकर आप ही ‘‘भारत को आत्म निर्भर’’
बनायेंगे।