-आर.के. सिन्हा-
राजधानी में किसानों का अपनी मांगों को मनवाने को लेकर चल रहा आंदोलन अब सांकेतिक भर रह गया है। उसमें
जमीनी किसानों की भागीदारी लगातार घटती जा रही है। लेकिन, यहां किसानों की संख्या को बेहतर बनाए रखने के
लिए जो कुछ भी हो रहा है, वह चौंकाने वाला और स्तब्धकारी है। राजधानी के टिकरी क्षेत्र में किसानों के धरने में
किसानों के लिए शराब आचमन की पर्याप्त व्यवस्था हो रही है। देह व्यापार से जुड़ी महिलाएं भी किसानों के पास
पहुंचाई जा रही हैं। ये सारे आरोप एक राष्ट्रीय स्तर के खबरिया चैनल ने अपने खुफिया कैमरे से दर्ज रिपोर्ट के
बाद प्रस्तुत एक कार्यक्रम में लगाये हैं। ये वास्तव में सनसनीखेज आरोप हैं। अगर ये आरोप रत्तीभर भी सच हैं तो
किसान आंदोलन के नेताओं को तत्काल देश से माफी मांगनी चाहिए।
अब देश को यह जानने का अधिकार तो है ही कि किसान आंदोलन के नाम व्याभिचार कौन करवा रहा है? इसके
लिए धन की व्यवस्था करने वाले कौन हैं? किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत से लेकर किसानों के हक में
बोलने वाले जरा यह बताएं कि टिकरी में क्या-क्या गुल खिलाए जा रहे हैं। अगर वे इन सब आरोपों पर भी चुप रहे
तो बात गंभीर मोड़ ले लेगी। तब यही माना जाएगा न कि किसान आंदोलन की आड़ में एक सुनियोजित षड्यंत्र के
तहत धरना स्थलों पर तबीयत से नंगा नाच करवाया जा रहा है।
हालांकि सरकार देश की खेती और किसानों के लिए एक से बढ़कर एक योजनाएं ला रही है, पर ये न जाने क्यों
स्थायी रूप से असंतुष्ट हैं। आखिर ये चाहते क्या हैं? देश इनके हिसाब से और इनकी मर्जी से तो नहीं चलेगा। यह
देश तो अब अराजकता भी नहीं बर्दाश्त करेगा।
दरअसल टीकरी से पहले भी गंभीर किस्म के समाचार आते ही रहे हैं। वहां पर विगत मई के महीने में पश्चिम
बंगाल की एक युवती से हुए गैंगरेप का मामला भी सामने आया था। पहले बलात्कारियों ने उस अभागी स्त्री का
अश्लील वीडियो बना लिया था, जिसके आधार पर वे उसे लगातार ब्लैकमेल कर रहे थे। हालांकि किसान नेताओं ने
इतने गंभीर मामले को दबा कर ही रखा था कि कहीं इस मामले से किसान आंदोलन बदनाम न हो जाए।
तो देश अब यह जान ले कि किसान आंदोलन में क्या-क्या गुल खिलाए जा रहे हैं। इसीलिए सच्चे और ईमानदार
किसान इस आंदोलन से दूर हो रहे हैं। वे यह भी देख रहे हैं कि सरकार अपनी हैसियत के मुताबिक किसानों के
हित में भरसक कदम उठा ही रही है। उदाहरण के रूप में हाल ही में देश के 9.75 करोड़ किसानों के खातों में
19,500 करोड़ रुपये की राशि भेजी गई। इस योजना के जरिए अबतक 1.38 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि
किसान परिवारों को सीधे भेजी जा चुकी है। खरीफ हो या रबी का सीजन, किसानों से एमएसपी पर अब तक की
सबसे बड़ी खरीद की है। इससे धान किसानों के खाते में लगभग 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये और गेहूं किसानों
के खाते में लगभग 85 हजार करोड़ रुपये डायरेक्ट पहुंचे हैं।
आप नोटिस करेंगे कि एक बड़े षडयंत्र के तहत टोक्यो ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा, रवि
दहिया और बजरंग पूनिया से आह्वान करने वाले दुष्ट खुराफाती भी पैदा हो गए हैं। ये चाहते हैं कि ये सभी
खिलाड़ी राजधानी में चल रहे किसानों के धरनास्थल पर भी जाएं। वहां जाकर वे किसानों के हक में कोई बयान दे
दें। मतलब यह कि बहुत गंभीर साजिश की जा रही है देश में किसानों की आड़ में देशभर में अस्थिरता फैलाने की।
देखिए किसानों के धरने टिकरी, सिंघू बार्डर और गाजीपुर बार्डर पर चल रहे हैं। दूसरी तरफ इनसे राजधानी का
किसान या इन बार्डरों के आसपास का किसान नदारद है। वह इस आंदोलन का हिस्सा नहीं है। वह अपने खेतों में
पूरी मेहनत लगाकर काम कर रहा है। किसान नेता आखिर क्यों नहीं बताते इसकी वजह ? क्या उन्हें पता है कि
दिल्ली मेट्रो के मुंडका स्टेशन से करीब 7-8 किलोमीटर दूर है जोंती गांव। ये हरित क्रांति का गांव है। भारतीय कृषि
अनुसंधान परिषद्, पूसा में गेहूं की फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए गेहूं के उन्नतशील बीज विकसित किए थे
नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग और कृषि वैज्ञानिक डॉ.एम.एस.स्वामीनाथन की टीम ने।
ये बातें हैं पिछली सदी के छठे दशक की। उसके बाद इन्हीं बीजों को जोंती गांव में लगाने का फैसला हुआ। पूसा के
एक कृषि वैज्ञानिक अमीर सिंह की खोजबीन के बाद जोंती का चयन हुआ था। जोंती को इसलिए चुना गया था
क्योंकि यहां पर नहर का पानी आता था। डॉ. स्वामीनाथन और डॉ. बोरलॉग ने जोंती के किसानों को उन्नतशील
बीजों के संबंध में विस्तार से बताया। उन्हें बीज दिए। और फिर कृषि वैज्ञानिकों और किसानों की मेहनत रंग लाने
लगी। एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूं की फसल का उत्पादन हुआ जोंती में। पहले होता था 20-25 क्विंटल। यानी
गेहूं की पैदावार दो गुना बढ़ गई। ये एक तरह से हरित क्रांति का श्रीगणेश था। हरित क्रान्ति से देश में कृषि
उत्पादन में गुणात्मक सुधार हुआ। इस तरह जोंती गांव बन गया हरित क्रांति का गांव। इससे सटे हैं लाडपुर,
कंझालवा और घेवरा, जहां मनोज कुमार की फिल्म "मेरा गांव, मेरा देश" की शूटिंग हुई थी। इधर के गांव और
किसान भी अपनी मेहनत के लिए मशहूर हैं। इन गांवों में अब भी गेहूं के अलावा हर तरह की सब्जियां उगाई
जाती हैं।
निश्चित रूप से दिल्ली के गांवों में घूमना अपने आप में एक बेहतरीन अनुभव होता है। इधर घूमते हुए आप उस
दौर में चले जाते हैं, जब देश हरित क्रांति की तैयारी में जुटा था। जोंती ने देश को एक प्रकार से भरोसा दिलाया था
कि अब हमें खाद्यान्न की कमी से दो-चार नहीं होना पड़ेगा। सारी दिल्ली के किसान बहुत प्रोगेसिव रहे हैं। माना
जाता है कि वे नई तकनीक को अपनाने में पंजाब और हरियाणा से कहीं आगे रहे हैं। जोंती मुख्य रूप से जाटों का
गांव है। पर इधर वाल्मिकी, ब्राह्मण, सैनी और दूसरी जातियों के परिवार भी रहते हैं। जोंती में आपको पंच-
पंचायत, हुक्का, सिर ढंकी महिलाएं सबकुछ दिखती हैं। और दिल्ली के किसानों से कितनी दूर बस्ती कथित
आंदोलनकारी किसानों की दुनिया। वे किसानों के लिए लड़ाई लड़ने के नाम पर देश विरोधी ताकतों का मोहरा बन
चुके हैं। वे सच को देखना ही नहीं चाहते और अब तो बेहद शर्मनाक हरकतों में भी लिप्त हो गए हैं।
अब बात कर लें स्टिंग आपरेशन की। राष्ट्रीय चैनल ने अपने स्टिंग आपरेशन में स्पष्ट दिखाया है कि कोई भी
बेरोजगार या आवारा किस्म के लोगों को जुटाकर मुफ्त भोजन आवास के अतिरिक्त प्रतिदिन डेढ़ सौ रुपये तक की
शराब और डेढ़ सौ में प्रतिदिन सेक्स की व्यवस्था करवाई जा रही है। तो यह है धरने पर बैठे लोगों का आकर्षण।
अब तो जाँच में ही पता चलेगा कि इस आन्दोलन को चलाने के लिये धनवर्षा कहाँ से हो रही है।