-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री-
एक तरफ दिल्ली सीमा पर किसानों के नाम पर आंदोलन चल रहा है। दूसरी तरफ सरकार किसानों की आय बढ़ाने
के कदम उठा रही है। अब तो लगता है कि यह आंदोलन किसानों के विरोध में है। आंदोलन के नेताओं को छोटे व
गरीब किसानों की कोई चिंता नहीं है। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग चल रही है। इनके द्वारा कानूनों
को काला बताया जा रहा है। यह बात अलग है कि आंदोलन के नेता आज तक यह स्पष्ट नहीं कर सके कि इन
कानूनों में काला क्या है। इन्होंने यह भी नहीं बताया कि इन कानूनों के पहले तत्कालीन सरकारें कृषि मंडी से
कितनी खरीद करती थी। उन सरकारों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में कितनी वृद्धि की थी।
वर्तमान सरकार ने आंदोलन के नेताओं से बारह बार वार्ता की लेकिन इन नेताओं ने समाधान में रुचि नहीं दिखाई।
जबकि सरकार कृषि व किसान कल्याण के अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। इस आंदोलन को समर्थन देने ट्रैक्टर
से संसद तक यात्रा की गई। जंतर मंतर तक दौड़ लगाई गई। लेकिन इनमें से किसी नेता ने यह नहीं बताया कि
उनकी सत्ता में किसानों की कितनी भलाई हुई। जबकि उस समय ये तीन कृषि कानून नहीं थे। पंजाब में कृषि
मंडियों से किसी ना किसी रूप में जुड़े लोगों की नाराजगी समझ में आती है, क्योंकि पंजाब और हरियाणा की
अस्सी प्रतिशत कृषि उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाती है। इस व्यवस्था में बिचौलिए होते थे। उनको
कमीशन देना होता था। नई व्यवस्था से उनकी दुकान बंद हुई है।
देश में पहले तीन चार प्रतिशत तक ही किसानों का अनाज न्यूनतम समर्थन पर खरीदा जाता था। ऐसे में अन्य
प्रदेशों में आंदोलन का कोई औचित्य नहीं था। यहां के किसानों को तो बेहतर विकल्प दिया गया है। इस तथ्य को
गैर भाजपा सरकारें व विपक्षी दल समझने में असमर्थ रहे है। उन्होंने केवल इतना देखा कि आंदोलन केंद्र की मोदी
सरकार के विरुद्ध है। ये आंदोलन को समर्थन देने लगे। इनमें से किसी नेता ने यह नहीं बताया कि कृषि कानून
से उनके प्रदेश के किसानों को क्या लाभ नुकसान होगा। कांग्रेस नेताओं ने पहले कहा था कि पूरी जमीन पर
पूंजीपतियों के कब्जा हो जाएगा। यही अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी दोहराने लगी। यह नागरिकता संशोधन कानून जैसा
ही विरोध है। तब कांग्रेस ने कहा था कि इस कानून से वर्ग विशेष की नागरिकता छीन ली जाएगी। इसी तर्ज पर
कहा जा रहा है कि कृषि कानून से किसान की जमीन छीन ली जाएगी। कृषि कानूनों में जमीन की बात ही नहीं है।
कॉन्ट्रैक्ट केवल फसल का होना है। यह भी वैकल्पिक है। इस राजनीति ने भाजपा को अवसर प्रदान किया। उसने
अपने कार्यकाल में हुए किसान कल्याण कार्यों का ब्योरा दिया। लेकिन कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दलों के पास
इसका कोई जवाब नहीं था।
साढ़े छह करोड़ किसानों के क्रेडिट कार्ड हैं। तीन करोड़ किसानों को क्रेडिट कार्ड और दिया जाना है। खाद सब्सिडी
के रूप में अस्सी हजार करोड़ रुपये का निवेश किया गया। कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख करोड़ रुपये का
प्रावधान किया गया है। छोटी अवधि के लिए किसानों को आठ लाख करोड़ का ऋण दिया गया है। इस पन्द्रह लाख
करोड़ तक पहुंचाया जाएगा। नाबार्ड अबतक कृषि क्षेत्र में नब्बे हजार करोड़ रुपये खर्च करता था। अब उसके खर्च
का बजट तीस हजार करोड़ और बढ़ा दिया गया है। गेहूं खरीद की मात्रा यूपीए सरकार के समय दस वर्ष पहले के
मुकाबले वर्तमान वर्ष एक सौ सत्तर प्रतिशत तक हो गई। दस वर्ष पहले गेहूं खरीद करीब सवा दो सौ लाख मीट्रिक
टन थी। इस वर्ष करीब तीन सौ निन्यानबे लाख मीट्रिक टन हो गया। यूपीए में गेहूं में अधिकतम पचास रुपए की
बढ़ोतरी एमएसपी में की गई, जबकि मोदी सरकार ने वर्ष दो वर्ष पहले इससे दुगनी से अधिक की बढ़ोतरी की थी।
यह पिछले आठ वर्षो का अधिकतम बढ़ोतरी का रिकॉर्ड था। धन खरीद में दस वर्ष पहले यूपीए के मुकाबले डेढ़ सौ
प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई। दालों की खरीद मोदी सरकार के समय शुरू हुई। पिछली सरकारों के समय न्यूनतम
समर्थन मूल्य तो घोषित होता था। लेकिन एमएसपी पर खरीद बहुत कम की जाती थी।
किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्ज माफी के पैकेज घोषित किए जाते थे, लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक यह
पहुंचते ही नहीं थे। पहले सरकार खुद मानती थी कि एक रुपए में से सिर्फ पन्द्रह पैसे ही किसान तक पहुंचते हैं।
अब एक-एक पाई किसानों तक पहुंच रही है। वर्तमान सरकार ने यूरिया की कालाबाजारी रोकी। उसकी नीमकोटिंग
की गई। इससे किसानों को यूरिया मिलने लगी। कृषि मंडी समाप्त करने की बात गलत है। यह सरकार तो मंडियों
को आधुनिक बना रही है। नए कृषि सुधारों से विकल्प दिए गए हैं। मंडी से बाहर हुए लेन देन गैरकानूनी माना
जाता था। इसपर छोटे किसान को लेकर विवाद होता था, क्योंकि वे मंडी पहुंच ही नहीं पाते थे। लेकिन अब छोटे से
छोटे किसान को विकल्प दिए गए हैं। अगर कोई पुराने सिस्टम से ही लेनदेन ठीक समझता है तो उसपर भी रोक
लगाई नहीं लगाई गई है।
स्वामीनाथन रिपोर्ट यूपीए के समय आ गई थी। लेकिन उसने इसे लागू नहीं किया। नरेंद्र मोदी सरकार ने
स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार डेढ़ गुना समर्थन मूल्य दिया है। अब गांवों में आधुनिक सड़कों के साथ भंडारण,
कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्थाएं की जा रही है। एक तरफ दिल्ली सीमा पर किसानों के नाम पर आंदोलन चल रहा है।
दूसरी तरफ सरकार किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में अपने कदम बढ़ा रही है। सरकार कृषि नीतियों में छोटे
किसानों को सर्वोच्च महत्व दे रही है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत अब तक एक लाख साठ हजार
करोड़ रुपए किसानों को दिए गए हैं। इस क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के माध्यम से
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत साढ़े नौ करोड़ किसान परिवारों के बैंक खातों में लगभग साढ़े
उन्नीस सौ करोड़ रुपए की सम्मान राशि के हस्तांतरण की।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज जब भारत की पहचान एक बड़े कृषि निर्यातक देश के रूप में बन रही है। खाद्य तेल
में आत्मनिर्भरता के लिए अब राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन ऑयल पाम का संकल्प लिया गया है। खाने के तेल की
कमी को दूर करने और इसमें आत्मनिर्भर बनने के दृष्टिगत यह मिशन लागू किया जा रहा है। इस मिशन के
माध्यम से खाने के तेल से जुड़े इकोसिस्टम पर ग्यारह हजार करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया जाएगा।
सरकार ये सुनिश्चित करेगी कि किसानों को उत्तम बीज से लेकर टेक्नोलॉजी आदि सुविधा मिले। कुछ साल पहले
जब देश में दालों की बहुत कमी हो गई थी। तब उन्होंने देश के किसानों से दाल उत्पादन बढ़ाने का आग्रह किया
था। उस आग्रह को देश के किसानों ने स्वीकार किया। परिणाम यह हुआ कि बीते छह साल में देश में दाल के
उत्पादन में लगभग पचास प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सरकार ने खरीफ व रबी सीजन, किसानों से एम एस पी पर
अब तक की सबसे बड़ी खरीद की है। इससे, धान किसानों के खाते में लगभग एक लाख सत्तर हजार करोड़ रुपए
और गेहूं किसानों के खाते में लगभग पच्चासी हजार करोड़ रुपए डायरेक्ट पहुंचे हैं। जैविक उत्पादों की मांग बढ़ी है।
महामारी के दौरान किसानों ने रिकाॅर्ड उत्पादन किया है। मिशन हनी बी के तहत सात सौ करोड़ रुपए मूल्य के
शहद का निर्यात किया गया है। जम्मू और कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध केसर की मांग बढ़ी है।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि डीएपी का मूल्य बढ़ने पर राज्य सरकार द्वारा बारह सौ रुपए प्रति बोरी की सब्सिडी दी गई
जिससे डीएपी के मूल्य नियंत्रित हैं। किसानों को पर्याप्त मात्रा में खाद और बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उनकी
उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्हें नई तकनीकों से जोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों को सभी सुविधाएं
उपलब्ध कराई जा रही है। दो करोड़ लघु एवं सीमांत किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराए गए, जिससे
उन्हें कोरोना संकट के दौरान कोई दिक्कत नहीं हुई। आज एफपीओ का बड़ा लाभ छोटे किसानों को मिल रहा है।
किसानों की उपज को मंडियों तक पहुंचाने के लिए किसान रेल चल रही है। मण्डियों को मजबूत किया जा रहा है।
जैसे जैसे बड़ी संख्या में किसान एफपीओ से जुडेंगे,वह अपनी उपज विदेशी बाजारों में भी बेच सकेंगे।
भारत सरकार द्वारा गत वर्ष कृषि अवसंरचना निधि की स्थापना की गई। जिससे कृषक अपनी उपज का उचित
मूल्य प्राप्त कर सकें। इस उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु भारत सरकार द्वारा फार्मगेट एवं समेकन केन्द्र प्राथमिक
कृषि सहकारी समितियों किसान उत्पादन संगठन कृषि उद्यमी स्टार्टअप मण्डी समिति,एफपीओ के वित्त पोषण के
लिए एक लाख करोड़ रुपये की वित्तीय सुविधा कृषि अवसंरचना निधि के द्वारा सुविधा प्रदान की गयी है।