सत्यम सिंह बघेल
सम्वेदनशील, प्रतिभावान युवा कवि/लेखक विजय कनौजिया द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘विजय के भाव’ जिन्दगी के विभिन्न रंग और उसकी सम्वेदनाओं की भावाभिव्यक्ति है। वास्तव में जिन्दगी एक किताब ही तो है, जिसके हर लम्हे एक पन्ने की तरह हैं। हर एक पन्ने का अलग रूप है, स्वरूप है और अलग रंग है। जिन्दगी के इन्हीं तमाम पहलुओं को विजय कनौजिया ने कागज पर रेखांकित कर जिन्दगी की किताब को मन की कल्पनाओं के माध्यम से वास्तविक किताब का स्वरूप दिया है।
कल्पनाओं को शब्दों में बुनकर, विचारों को भावनात्मक रूप में अभिव्यक्त कर काव्यरूप में सृजित करना उत्कृष्ट प्रतिभा का ही प्रतीक है, क्योंकि जिन्दगी तो हर कोई जीता है लेकिन उसे करीब से देखना-पहचानना, पहचानकर उन एहसासों के साथ जीना और फिर उन्हें काव्यमय बना देना यह एक अद्भुत अनुभूति है, जिसे एक सम्वेदनशील व्यक्तित्व ही साकार कर सकता है। जिए गए तमाम पलों को कलम की जुबान में पाठकों के समक्ष पेश करना रचनाकार की क्षमता को बेहतर बनाता है, उत्कृष्ट बनाता है व निखारता है और यह प्रतिभा विजय कनौजिया की कृति ‘विजय के भाव’ में स्पष्ट झलकती है।
अंतर्मन से अंकुरित रचनाएँ स्पष्ट कहती हैं कि इनकी भावात्मक शैली बेजोड़ है। किसी बात को जितने अच्छे तरीके से कहा जा सकता है, वह बेहतरीन सलीका और अच्छा तरीका इनके लेखन में दिखता है। पिछले एक दशक में अनेक बदलाव हुए हैं। दुनिया की तस्वीर तेजी से बदली है। तेजी से बदलती दुनिया में मनुष्य के सामने नई चुनौतियाँ, नए सवाल और नए विचार भी आ चुके हैं। इन चुनौतियों का सामना यह संग्रह करता है। सम्बन्धों, रिश्ते-नातों में आज जो नई तरह की उलझने और सम्वेदनशून्यता पैदा हुई हैं, उन्हें समझने का मौका भी संग्रह में मिलता है।
सम्वेदनशील हृदय से निकली रचनाएँ बार-बार पाठकों को झकझोरते हुए कहती हैं कि काव्य संग्रह ‘विजय के भाव’ में आपके, मेरे और हर उस व्यक्ति के एहसासों, विचारों, अंतर्द्वन्दों तथा चिंताओं का प्रतिनिधित्व है जो दूसरों के बारे में
सोचता है।
संग्रह में प्रेम, विरह, स्त्री विमर्श, सौन्दर्य बोध, प्रकृति चित्रण, सामाजिक परिवेश, सांस्कृतिक समन्वय, पारिवारिक परिमिति भी प्रस्तुत है। कोई रचना जीवन को जी लेने की चाह के चलते स्वतंत्रता की सीमाओं को भेद स्वच्छंदता की पगडंडियों पर निकल पड़ती है, तो कुछ रचनाएँ सामाजिक बदलावों के चलते जीवन में आते सकारात्मक परिवर्तन व बढ़ते आत्मविश्वास का चित्रण भी बड़े ही सुलझे शब्दों में करती हैं।
रचनाएँ इसलिए भी ध्यानाकर्षित करती हैं क्योंकि कवि ने अपनी लेखन शैली को दुसाध्य नहीं बनाया और न ही शब्दों का आडम्बर रचा है, बल्कि हृदय में उफान मारती लहरों को कागज में उतारकर सहजता के साथ अपनी अभिव्यक्ति को प्रस्तुत कर अपनी काव्य कृति को उत्कृष्ट और पठनीय बनाया है। दिलचस्प यह भी है कि यशस्वी कवि ने जिस अंदाज में अपने और अपने मन के बीच की बातें लिखी हैं, वे पाठकों के मन से भी सीधे जुड़ती हैं। इनके हृदय की सहजता संग्रह की प्रत्येक रचना में दिखती है। प्रस्तुत रचनाओं के केन्द्र में मन, सपने और प्रेम हैं। रचनाएँ आत्मकथात्मक हैं और इसलिए जब रचनाओं से पाठक जुड़ जाता है, तो वो सीधे मन को छूती हैं। वास्तव में रचनाएँ विजय कनौजिया जी के अथक परिश्रम का बहीखाता मालूम होती हैं।
अपने काव्य के माध्यम से उलझती सुलझती जिन्दगी के उतार-चढ़ाव और रूप-रंग से परिचित कराने वाले कवि विजय कनीजिया का व्यक्तित्व काव्यमय ही है, तभी तो उन्होंने जिन्दगी के विस्तार को बहुत ही सहज और सरल रूप में सृजित कर गागर में सागर भरा है। उनकी लेखनी ऐसी कि जो निर्बाध गति से बंधनमुक्त होकर स्पष्ट, निष्पक्ष और सटीक भावाभिव्यक्ति लिए चल पड़ती है। जीवन के अनुभव, संवाद, परिदृश्य, परिस्थिति, विभिन्नताओं, अनुभवों और कल्पनाओं को कवि की तेजस्वी लेखनी कागज पर खूबसूरती से उतरती है। उनकी तमाम खूबियाँ, क्षमता और प्रतिभा उनके काव्य संग्रह ‘विजय के भाव’ में देखने को मिलती हैं। विश्वास है कि यह किताब पाठकों से रूबरू होकर हिन्दी साहित्य में अपनी पहचान व उत्तम स्थान पाएगी।