-प्रताप सिंह पटियाल-
रक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने 14 जून 2022 को सेना भर्ती के लिए ‘अग्निपथ योजना’ की घोषणा की थी। इस योजना की मुखालफत में देश के विभिन्न न्यायालयों में करीब 23 याचिकाएं दर्ज कराई गई थी। 27 फरवरी 2023 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने रक्षा मंत्रालय की महत्त्वाकांक्षी अग्निपथ योजना को देशहित में बताकर इसकी संवैधानिक वैधता पर अपनी मुहर लगा दी। कड़े अनुशासन की प्रतीक भारतीय सेना संविधान के असूलों व न्यायालयों के आदेशों का हमेशा सम्मान करती है। देश की सत्ता पर काबिज हुक्मरानों, प्रशासनिक अधिकारियों, न्यायिक व्यवस्था के प्रतिनिधियों व तमाम नागरिकों की सुरक्षा हमारे सशस्त्र बल ही सुनिश्चित करते हैं। मगर विडंबना है कि भारत को दहलाने की साजिश में मशरूफ पाक जैसे आतंकी मुल्क किसी कानून को नहीं मानते।
सैन्य महाशक्ति देशों के आगे मानवाधिकार आयोग व ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन भी लाचार नजर आते हैं। मुल्क की सरहदें बलिदान मांगती हैं, मगर देश के स्वाभिमान के लिए बलिदान देने वाले जांबाजों की व्यक्तिगत सुरक्षा का जिम्मेवार कौन है, यह एक बड़ा प्रश्न है। सन् 1999 में कारगिल जंग की साजिश में पाक सेना के किरदार को बेनकाब करने वाले हिमाचली सपूत कै. सौरभ कालिया व उनके गश्ती दल के पांच सैनिकों को पाक सेना ने हिरासत में लेकर उनकी नृशंस हत्या कर दी थी जो कि ‘जेनेवा कन्वेंशन 1949’ का घोर उल्लंघन था। अंतरराष्ट्रीय कानून जेनेवा संधि के अनुसार युद्धबंदी सैनिकों को उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी सुविधा का प्रावधान मौजूद है।
जेनेवा संधि की शर्तों की अनुपालना ‘अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति’ द्वारा निर्धारित की जाती है। देश के लिए बलिदान हो चुके उन शूरवीरों के परिवार सियासत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक न्याय की गुहार लगा चुके हैं। कारगिल जंग में कश्मीर को पाक का हिस्सा बनाने वाली पाकिस्तान से उठ रही बुलंद आवाजों को भारतीय सेना ने मातम में तब्दील कर दिया था, लेकिन देश के लिए कुर्बान सौरभ कालिया व उनके साथियों को न्याय दिलाने के लिए देश के किसी सियासी रहनुमां या अधिवक्ता ने ‘इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस’ में जाने की जहमत आज तक नहीं उठाई। कारगिल युद्ध के 23 वर्षों बाद भी पाकिस्तान से सौरभ कालिया के जख्मों का हिसाब बाकी है। गत 26 फरवरी 2023 को कश्मीर घाटी में टारगेट किलिंग में मुल्लविश आतंकियों को सेना ने चौबीस घंटों के भीतर ही जहन्नुम की परवाज पर भेज दिया था। उस सफल सैन्य ऑपरेशन में राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात शिमला के शूरवीर पवन कुमार का बलिदान वीरभूमि के हिस्से आया है।
इसी वर्ष 11 जनवरी को कुपवाड़ा के माद्दिल सेक्टर में डोगरा रेजिमेंट के दो हिमाचली सूरमा बर्फीले तूफान की जद में आकर मौत की आगोश में समा गए। भावार्थ यह है कि दुश्मन से देश की सरहदों की हिफाजत तथा आतंक की उल्फत में डूबे दहशतगर्दों से देश के नागरिकों की रक्षा जमीनी स्तर पर कोई न्यायालय या कानून नहीं कर रहा, बल्कि मुल्क की हशमत के लिए सैनिक फिदा-ए-वतन हो रहे हैं। अदम्य साहस व पराक्रम जैसे लफ्जों को सुनकर फक्र महसूस होता है, मगर रक्तरंजित शौर्य की कीमत सैनिकों के परिवार अपने सपूतों के खून से अदा कर रहे हैं। सैनिक का मंजिल-ए-मकसूद देश के लिए जीवन सपर्मण होता है, पैसा कमाना नहीं। देश के लिए शहादत जैसा अजीम रुतबा अनुभूति का विषय है, सहानुभूति का नहीं। अत: सेना को रोजगार के नजरिए से न देखें, बल्कि राष्ट्र पर कुर्बान हो रहे सैनिकों के परिवारों का दर्द समझ कर उनके प्रति कद्र का मिजाज पैदा होना चाहिए। बेशक अग्निपथ योजना देशहित में है। इसे सेना में एक आदर्श बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है।
विश्व की चौथी ताकतवर भारतीय सेना का हिस्सा बनना युवाओं के लिए गर्व की बात है। चार वर्ष की सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त युवाओं को सेना द्वारा ‘अग्निवीर सम्मान’ के साथ ‘अग्निवीर स्किल प्रमाणपत्र’ भी दिया जाएगा। छह महीने की कड़ी ट्रेनिंग तथा साढ़े तीन वर्ष की सैन्य सेवा के बाद 25 फीसदी युवा सेना में नियमित तौर पर अपनी सेवा जारी रख सकेंगे, शेष 75 फीसदी अग्निवीर सेवानिवृत्त हो जाएंगे। नि:संदेह सैन्य प्रशिक्षण व रक्षा क्षेत्र के जमीनी अनुभव से युवाओं में राष्ट्रवाद की भावना, राष्ट्रवादी विचारों से लबरेज नेतृत्व क्षमता का विकास होगा। ज्ञात रहे थलसेना, वायुसेना व नौसेना का हिस्सा बनने वाले अग्निवीरों को टैंकों, तोपखाने व आधुनिक हथियारों के अलावा तकनीकी ट्रेनिंग व चिकित्सा सेवाओं का प्रशिक्षण भी हासिल होगा। सैंकड़ों अग्निवीर पैरा कमांडो जैसी स्पेशल फोर्स के पैरा ट्रूपर भी होंगे। अग्निवीरों की कठोर सैन्य टे्रनिंग पर सेना के प्रशिक्षिकों की अथक मेहनत के साथ देश के रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा भी खर्च होगा, तब जाकर सेना के सान्निध्य से प्रशिक्षित व अनुशासित सैनिक निकलेंगे। इसलिए चार वर्ष बाद शारीरिक व मानसिक तौर पर मजबूत अग्निवीरों के प्रशिक्षण व अनुभव का लाभ भविष्य में देश को ही मिलना चाहिए।
सरकारों को जोश व जज्बे से सराबोर युवा अग्निवीरों के लिए राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस फोर्स व अन्य सरकारी अदारों में आधिकारिक तौर पर कोटा तय करना होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे वैश्विक मंच पर भारत के प्रतिनिधि कश्मीर पर हिंदोस्तान का पक्ष पूरी शिद्दत से रखते हैं, मगर धरातल पर कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाने की जिम्मेदारी का वजन देश के सैनिक एक मुद्दत से अपने कंधों पर उठाए हुए हैं। मैदाने जंग में कभी शिकस्त न मानने वाले योद्धा यदि देश की अदालतों में अपने हकूक की लड़ाई हार जाएं तो यह अफसोसजनक है। अत: कश्मीर के लिए बलिदान हुए सौरभ कालिया व उसके साथियों को न्याय दिलाने के लिए पाक सेना को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में युद्ध अपराधी घोषित कराना होगा। यह कार्य हमारे शासकों की इच्छाशक्ति व सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति से ही संभव होगा। उम्मीद है सैन्य प्रशिक्षण व रक्षा क्षेत्र का सामरिक अनुभव अग्निवीर योजना के तहत युवा वर्ग के व्यक्तित्व व चरित्र निर्माण में सकारात्मक बदलाब लाएगा। सैनिकों के बलिदान की दास्तान-ए-सुजात युवा वर्ग के लिए प्रेरणास्रोत होनी चाहिए।