कांग्रेस व आप आत्म मंथन करें

asiakhabar.com | March 3, 2023 | 12:53 pm IST
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-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
पिछले दिनों सोनिया कांग्रेस का बहुत लम्बे अरसे बाद छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में महाधिवेशन हुआ और उसके तुरन्त बाद आम आदमी पार्टी के दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कट्टर ईमानदार का गीत गाते-गाते अचानक शराब के कारोबार से संबंधित एक घोटाले के चलते जेल चले गए। इसके तुरन्त बाद मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आ गए जिसने भाजपा के पक्ष में निर्णय दे दिया। सबसे पहले कांग्रेस के महाधिवेशन के बारे में बात करेंगे। राहुल गान्धी की लम्बी यात्रा के बाद कांग्रेस को लगता था कि सभी विपक्षी पार्टियां राहुल गान्धी के नेतृत्व को स्वीकार कर लेंगी। इसका संकेत कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने दिया भी। उन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कहा भी कि जब तक विपक्षी दल कांग्रेस की छतरी के नीचे आकर संयुक्त मोर्चा नहीं बनाते तब तक कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस को हाशिए पर रख कर जो लोग तीसरे मोर्चा की बात करते हैं, वे सफल नहीं हो सकते। भाजपा के खिलाफ यदि सफलता प्राप्त करनी है तो कांग्रेस की प्रमुख भूमिका माननी पड़ेगी। लेकिन इसे सोनिया गान्धी का दुर्भाग्य ही कहना होगा कि विपक्षी दल कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों को आशा थी कि इस बार सीडब्ल्यूसी के सदस्यों का चुनाव होगा ताकि पार्टी पर जो वंशवाद का आरोप लगता है उसे धोया जा सके। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सीडब्ल्यूसी के सदस्य मनोनीत करने का अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष को ही दे दिया गया। अधिवेशन में यह भी साफ हो गया कि अध्यक्ष चाहे मल्लिकार्जुन ही हों लेकिन सत्ता का केन्द्र सोनिया परिवार ही है। अधिवेशन से यह भी आशा थी कि कांग्रेस शायद आगामी चुनाव के लिए कुछ सार्थक मुद्दों की तलाश करे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अधिवेशन ने साफ कर दिया कि कांग्रेस सारी लड़ाई अडानी पर ही लड़ेगी। कांग्रेस अडानी के मुद्दे को भ्रष्टाचार से जोडऩा चाहती है, लेकिन असलियत यह है कि स्वयं कांग्रेस पर लगा हुआ भ्रष्टाचार का कलंक अभी दूर नहीं हुआ है। दरअसल आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के इसी कलंक को आधार बना कर राजनीति में अपनी शुरुआत की थी। अन्ना हज़ारे की छवि महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार से लडऩे वाले सैनिक के तौर पर थी। कुछ विदेशी शक्तियों, जो अंदाज़ा लगा रही थीं कि भारत में से कांग्रेस सत्ता के समाप्त होने के आसार शुरू हो गए हैं, की चिन्ता यह थी कि कांग्रेस का स्थान भारतीय जनता पार्टी ले सकती थी। भाजपा की पहचान और विचारधारा देश की मिट्टी और संस्कृति में धंसी हुई है। ईसाई मिशनरियां इसी से चिन्तित थीं। अन्ना हज़ारे का दिल्ली आना सभी को अनुकूल लगता था।
केजरीवाल आज अपनी जिस एनजीओ की चर्चा कर रहे हैं, उसको भी पैसा विदेशी फाऊंडेशन से मिलता था, ऐसी भी चर्चा दिल्ली में चलती रहती है। इसलिए भारत विरोधी ताकतों को केजरीवाल भी अपने अनुकूल लगते थे। उनकी कट्टर ईमानदार की छवि तभी बन सकती थी यदि उनको अन्ना हज़ारे के साथ बिठा दिया जाता। अन्ना के स्पर्श से जब यह अवधारणा बन गई कि केजरीवाल कट्टर ईमानदार है तो उसने अन्ना का साथ छोडऩे में एक दिन की भी देरी नहीं की। केजरीवाल यह भी समझ गए थे कि कांग्रेस के विरोध में जो अन्य विरोधी दल हैं, उनका कार्यक्षेत्र अपने-अपने प्रदेश में ही है। केजरीवाल की पार्टी अपना अखिल भारतीय स्वरूप विकसित करना चाहती थी। लेकिन इसके लिए पैसा चाहिए था। केजरीवाल की विचारधारा तो कोई थी नहीं। वह गणितीय समीकरणों से ही देश की सत्ता हथियाना चाहते थे। संगठन उनके पास था नहीं। इसलिए अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्हें अकूत धन चाहिए था। केजरीवाल का मानना था कि उनकी छवि कट्टर ईमानदार की बन चुकी है, इसलिए यदि वे गलत तरीकों से भी धन एकत्रित करेंगे तो कोई विश्वास नहीं करेगा कि वे भ्रष्टाचार में भी गले तक डूब सकते हैं। उनके लिए विचारधारा की महत्ता तो पहले ही गौण थी। यही कारण है कि 2018 के पंजाब विधानसभा चुनावों में उन्होंने कनाडा व अमेरिका के भारत विरोधी तत्वों से हाथ मिलाने में रत्ती भर परहेज़ नहीं किया।
दिल्ली और पंजाब में सरकार बन जाने के कारण केजरीवाल को देश भर में पैर फैलाने के लिए जिस धन की जरूरत थी, उसकी पूर्ति शराब ही कर सकती थी। हल्ला यह मचाया गया कि केजरीवाल शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन अंदरखाते उनकी गिद्ध दृष्टि शराब पर ही लगी हुई थी। मामला इतना आगे बढ़ा कि दिल्ली में दुकानों पर शराब की दो बोतल खऱीदने पर एक बोतल मुफ़्त मिलने लगी। इस चक्कर में उनके स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन आठ-नौ महीनों से जेल में हैं और अब उनके अपने घर के आदमी और दिल्ली के शराब मन्त्री मनीष सिसोदिया पुलिस रिमांड पर हैं। पंजाब में भी उनके एक विधायक जेल में हैं और उनके एक मंत्री जेल में रह चुके हैं और ज़मानत पर हैं। मामला सभी पर भ्रष्टाचार का ही बनता है।
आम आदमी पार्टी को सबसे ज्यादा दुख इसी बात का है कि उन्होंने और उनके विदेशी मित्रों ने इतनी मेहनत से कट्टर ईमानदार की फुलवारी उनको पहनाई थी, वह हवा के हल्के झोंके से ही उड़ गई और केजरीवाल अपनी पार्टी समेत चौराहे पर आ खड़े हुए हैं। मुलम्मा उतर जाना सबसे ज्यादा कष्टकारी होता है। आम आदमी पार्टी का कष्ट ईमानदारी का मुलम्मा उतर जाने का है और सोनिया कांग्रेस का कष्ट तमाम प्रयासों के बावजूद राहुल गान्धी की मैच्योर व्यक्ति की छवि न बन पाना है। उनको पार्टी के सलाहकारों ने अडानी का झुनझुना दे दिया कि इसे बजाते रहो, इससे लोग भाजपा के खिलाफ हो जाएंगे। पिछली बार राफेल का डमरू दिया था, लेकिन वह काम नहीं कर पाया। इस बार अडानी था। यह झुनझुना बजाने का कितना असर हुआ, इसका पता नागालैंड, मेघालय और त्रिपुरा विधानसभा के चुनाव परिणामों से सामने आ गया। तीनों राज्यों में से कांग्रेस एक प्रकार से अखाड़े से ही बाहर हो गई लगती है। नागालैंड में तो वह एक सीट के लिए भी तरसती रह गई। त्रिपुरा में उसने अपने आप को सीपीएम की झोली में डाल दिया, लेकिन वहां भी चार-पांच से आगे नहीं जा सकी। चार-पांच ही सीटें मेघालय में हाथ लगीं। यह स्थिति तब है जब मेघालय और नागालैंड तो प्रचंड रूप से ईसाई बहुल प्रदेश हैं। कांग्रेस व आम आदमी पार्टी को आत्म मंथन करना चाहिए कि भारत भूमि पर उनकी जडें जम क्यों नहीं रहीं। आत्म मंथन से ही वे भाजपा का मुकाबला करने में सक्षम हो पाएंगी।


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