अर्पित गुप्ता
कांग्रेस व राजद नेताओं के बयानों ने ईवीएम गड़बड़ी संबन्धी आरोपों की हवा निकाल दी है। इनके कथन का
निहितार्थ यह है कि बिहार व उपचुनावों में पराजय के लिए नेतृत्व को आत्मचिन्तन करना चाहिए। अंतर यह है कि
कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने पार्टी नेतृत्व को नसीहत दी, जबकि राजद नेता शिवानन्द तिवारी ने अपनी पार्टी का
तो बचाव किया, उनके आरोप भी कांग्रेस नेतृत्व पर थे। यह सही है कि इन नसीहतों का नेतृत्व पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ेगा, लेकिन इन बयानों के बाद ईवीएम का मुद्दा पूरी तरह महत्वहीन हो गया। महागठबन्धन की पराजय
उसकी कमजोरी के चलते हुई है।
कपिल सिब्बल ने कहा कि देश के लोग कांग्रेस को प्रभावी विकल्प नहीं मान रहे हैं। बिहार चुनाव व अन्य प्रदेशों
के उपचुनाव से यह प्रमाणित हो चुका है। गुजरात उपचुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में
कुछ सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों को दो प्रतिशत से भी कम वोट मिले। कपिल सिब्बल भी हकीकत जानते हैं।
उन्होंने कहा कि यदि छह सालों में कांग्रेस ने आत्ममंथन नहीं किया तो अब इसकी उम्मीद कैसे करें। कांग्रेस में
कमजोरियां है। सांगठनिक तौर पर समस्या है लेकिन समाधान की कोई इच्छाशक्ति नहीं है। कांग्रेस ने हर चुनाव
में पराजय को ही अपनी नियति मान ली है।
बिहार कांग्रेस के तारिक अनवर ने भी कहा कि बिहार चुनाव परिणाम पर पार्टी के अंदर मंथन होना चाहिए।
शिवानंद तिवारी ने कहा कि कांग्रेस देशभर में अपने गठबंधन सहयोगियों पर बोझ बनती जा रही है। उसकी वजह
से हर जगह गठबंधन का खेल खराब हो रहा है। राहुल गांधी के मुद्दों से लोग प्रभावित नहीं हुए। वह कह रहे थे
कि बिहार में मजदूरों और किसानों की सरकार लानी है लेकिन किसी ने विश्वास नहीं किया। क्योंकि कांग्रेस ने ऐसा
कोई उदाहरण ही प्रस्तुत नहीं किया। राहुल गांधी ने कहा कि आपका पैसा छीना। यह भी किसी ने नहीं माना।
राहुल समझा रहे थे कि अंबानी और अडानी के लिए रास्ता साफ किया जा रहा है। आने वाले समय में आपके खेत
आपसे छीन लिए जाएंगे और दो तीन पूंजिपतियों के हाथ में चला जाएगा। इस प्रकार की बेतुकी बातों को लोगों ने
नकार दिया।
राहुल पिछले छह वर्षो से एक जैसा भाषण दे रहे हैं। प्रदेश का चुनाव हो या कुछ और, उनका निशाना केवल नरेंद्र
मोदी पर रहता है। जबकि आमजन के बीच मोदी की विश्वसनीयता बेजोड़ है। बिहार में जन आकांक्षा के अनुरूप
सरकार ने पदभार ग्रहण किया। घटक दलों ने गठबंधन धर्म की मर्यादा का पालन किया। नीतीश कुमार ने कहा कि
जेडीयू का सँख्या बल कम है इसलिए मुख्यमंत्री भाजपा का होना चाहिए। भाजपा ने कहा कि नीतीश कुमार के
नेतृत्व में चुनाव हुआ इसलिए वही मुख्यमंत्री बनेंगे। दोनों तरफ से मर्यादा के अनुरूप आचरण किया गया।
इसके विपरीत महागठबन्धन की प्रतिक्रिया दिलचस्प रही। तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी के शिवानन्द तिवारी ने
विरोधाभाषी बयान दिए। तेजस्वी यादव ने शिष्टाचार का भी पालन नहीं किया। उन्होंने बहिष्कार किया। कहा कि
एनडीए बेईमानी से जीता है। दूसरी तरफ उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कहा शिवानन्द तिवारी ने कहा कि राहुल
गांधी की वजह से पराजय हुई। वह चुनाव के समय पिकनिक मना रहे थे। इस प्रकार शिवानन्द तिवारी ने
महागठबन्धन की पराजय का कारण बता दिया। भला हो चिराग पासवान का, जिनकी वजह से महागठबन्धन की
सीटें बढ़ गयी। अन्यथा एनडीए को एक सौ सत्तर से अधिक सीटें मिलती। शिवानंद तिवारी ने कहा कि बिहार में
चुनावी सरगर्मी थी। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में भाजपा-जदयू जैसी मजबूत पार्टियों की संयुक्त ताकत के खिलाफ
लड़ाई थी। राहुल गांधी शिमला में बहन प्रियंका वाड्रा के घर पिकनिक मना रहे थे। कांग्रेस बिहार में सत्तर सीटों पर
चुनाव लड़ रही थी, लेकिन वह सत्तर जनसभाएं भी नहीं कर सकी। यहां तक कि राहुल गांधी ने भी सिर्फ चार
सभाएं की। ऐसा सिर्फ बिहार नहीं, अन्य राज्यों में भी हुआ है। कांग्रेस को मंथन करना चाहिए।
वैसे मंथन की आवश्यकता आरजेडी को भी है। वह भी परिवारवाद से ग्रस्त है। अपने अतीत से मुक्ति का विश्वास
तेजस्वी भी नहीं दिला सके। उप मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें इस नकारात्मक छवि से छुटकारे का अवसर मिला था
लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके। ईवीएम को दोष देना हास्यास्पद है। यदि ऐसा होता तो उन्हें इतनी सीटें नहीं
मिलती। महागठबंधन के समारोह के बहिष्कार पर हम प्रवक्ता डॉ. दानिश रिजवान का बयान दिलचस्प है। उन्होंने
कहा है कि तेजस्वी यादव राज परिवार के लोग हैं। वह हमेशा जनमत का विरोध करते रहे हैं। यदि राजद को
जनमत सही नहीं लग रहा है, तो तेजस्वी यादव को ऐलान करना चाहिए कि वो न तो विधायक पद की शपथ लेंगे
और न ही कोई नेता प्रतिपक्ष बनेगा।