कर्नाटक चुनाव से स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस देश की राजनीति में अप्रासंगिक होती जा रही है। कांग्रेस के एक के बाद एक किले ढह रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की टीम लगातार कांग्रेस के किलों को फतेह करती जा रही है। कांग्रेस के मोदी पर और भाजपा पर लगाए आरोप मतदाताओं के गले नहीं उतरे। भाजपा के केंद्र की सत्ता में आने से पहले आकण्ठ तक भ्रष्टाचार, भाई−भतीजावाद और दलगत राजनीति में डूबी कांग्रेस ने विगत लोकसभा और राज्यों के विधान सभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त से कोई सबक नहीं सीखा। कांग्रेस एक के बाद एक गलती दोहराती गई। परिणाम यह रहा कि बेहद प्रतिष्ठा के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बहुमत खो बैठी।
इसका दोष कांग्रेस बेशक मोदी और शाह के झूठे प्रचार के आरोपों से दें। किन्तु कांग्रेस यह भूल गई कि देश के मतदाता की समझ और याददाश्त कमजोर नहीं है। ना ही मतदाता राजनीतिक दलों के बाबाओं की तरह भक्त हैं। मतदाताओं की किसी भी एक दल से निष्ठा नहीं है। मौका मिलने पर मतदाता राजनीतिक दलों की गलतफहमी दूर करते रहे हैं। कर्नाटक चुनाव में भी यही हुआ। कांग्रेस अर्श से फर्श पर आ गई। सारे दावे धरे रह गए। यदि मतदाता किसी के अंधभक्त होते तो भाजपा उत्तर प्रदेश और राजस्थान में लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव नहीं हारी होती। कर्नाटक में भाजपा का सबसे बड़े दल के तौर पर उभरना और पूर्व में उपचुनावों में हार यह साबित करता है कि मतदाता समय और परिस्थितियों के अनुसार परिपक्व निर्णय करते हैं। उन्हें बरगलाना आसान नहीं है।
कांग्रेस का यह आरोप लगाना कि झूठे प्रचार और सांप्रदायिक विभाजन के आधार पर भाजपा बढ़त ले गई, निराधार ही माना जाएगा। यदि ऐसा ही होता तो बाबरी मस्जिद ढहाने के तत्काल बाद ही भाजपा देश में सत्ता में होती। राम नाम के दो दशक लंबे वनवास के बाद भाजपा यदि वापसी करने में सफल हुई तो देश को उम्मीदों के सपने दिखा कर ही। इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा की इस बढ़त में प्रधानमंत्री मोदी का प्रमुख योगदान है। कर्नाटक के यदि क्षेत्रीय मुद्दों को छोड़ भी दें तो जिस तरह से मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की नए सिरे से पहचान बनाने की कवायद की है, वह भारतीय जनमानस में सकारात्मक है। केन्द्र सरकार की अन्य योजनाओं के विकास के पहिए की गति कम जरूर है पर कमजोर नहीं है। इसे मतदाताओं ने निराशा भरे माहौल में उम्मीद की किरण की तरह देखा है।
कांग्रेस का यह दावा कि नोटबंदी और जीएसटी ने देश में बेरोजगारी और व्यापारियों की परेशानी बढ़ाई है, मतदाताओं ने इसे भी खारिज कर दिया। इसके विपरीत कांग्रेस केंद्र में सत्ता से बाहर होने के बाद से ही भाजपा पर झूठे प्रचार का आरोप लगा रही है। हर चुनाव में इन्हीं को लगातार दोहराती जा रही है। कांग्रेस नकारात्मक राजनीति कर रही है। इसके विपरीत भाजपा ने कांग्रेस की घेराबंदी के साथ ही केंद्र की विकास योजनाओं का परिणाम भी सामने रखा है। क्षेत्रीय मामूली मुद्दों को छोड़ भी दें तो व्यापक तौर पर कांग्रेस भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा की तगड़ी घेराबंदी करने में विफल रही है। भगौड़े नीरव मोदी और विजय माल्या के मामले में भाजपा पर लगाए आरोप भी कांग्रेस को कोई राहत नहीं दिला सके। इन दोनों के खिलाफ केंद्र सरकार ने कार्रवाई करने में सक्रियता दिखाई है।
कांग्रेस युद्धक विमान राफेल की खरीद सहित केंद्र सरकार के खिलाफ पक्के सबूत सहित भ्रष्टाचार का एक भी बड़ा मुद्दा सामने नहीं ला सकी। जबकि कांग्रेस अभी तक भ्रष्टाचार के पुराने आरोपों से ही अपना पीछा नहीं छुड़ा सकी है। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के पुत्र और पत्नी दोनों भ्रष्टाचार के आरोपों में सुर्खियों में रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि कांग्रेस बेदाग साबित होने तक चिदम्बरम को पार्टी से निलंबित करने की बजाए, उनकी पैरवी करती रही है। कांग्रेस बिहार में नीतीश कुमार की ईमानदार और विकासवादी छवि की बजाए भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद लालू यादव का समर्थन करती रही है। विशेष पैकेज की मांग पर केंद्र सरकार को लगभग धमकी भरे अंदाज में छोड़ने वाले चंद्रबाबू नायडू का भी कांग्रेस ने समर्थन किया। जबकि केंद्र की भाजपा सरकार ने झुकने से साफ इंकार कर दिया।
कांग्रेस ने यह प्रयास भी नहीं किया कि कर्नाटक सहित बचे हुए कांग्रेस शासित राज्यों को सौ प्रतिशत भ्रष्टाचार से मुक्त कर सके। कांग्रेस की यही बुनियादी कमजोरी कर्नाटक चुनाव में उसे ले डूबी। कांग्रेस आरोपों का जवाब सिर्फ आरोपों से देती रही, जबकि भाजपा ने आरोपों के साथ विकास का दस्तावेज भी मतदाताओं के सामने रखा। कांग्रेस कर्नाटक चुनाव को क्षेत्रीय समझने की भूल कर बैठी। जबकि भाजपा ने क्षेत्रीय के साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर की जा रही कवायद का ब्यौरा भी मतदाताओं के सामने रखा। भाजपा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर मतदाताओं को अपना नजरिया समझाने में कामयाब रही। कांग्रेस को अब यह समझ लेना चाहिए कि आरोपों का जवाब आरोपों से नहीं बल्कि कुछ ठोस करके दिखाने से देना होगा। क्षेत्रीय दलों के बढ़ते जनाधार और भाजपा के बढ़ते रथ को यदि थामना है तो कांग्रेस को अपना पुराना चोला उतारना होगा। इसके साथ ही चाल−चलन−चरित्र भी बदलना होगा।
सोशल मीडिया की सक्रियता के इस दौर में मुख्य मीडिया द्वारा किसी को हराने−जिताने के दिन अब हवा हो गए हैं। कांग्रेस विकास की नाव पर सवारी करके ही किनारे तक पहुंच सकती है। कर्नाटक में भाजपा की बढ़त से पार्टी और केंद्र सरकार का आत्मविश्वास निश्चित रूप से मजबूत हुआ है, किन्तु आगामी विधानसभा चुनावों में अभी अग्निपरीक्षा बाकी है। तीन राज्यों में होने वाले चुनावों में भाजपा सत्ता में हैं। इनमें विपक्ष पर आरोप लगाने के लिए कुछ नहीं है। अपनी पार्टी की सरकारों का बचाव करना आसान नहीं है। भाजपा की सरकारों को इन राज्यों में मतदाताओं की कसौटी पर कसे जाना शेष है। भाजपा कांग्रेस के किलों में सेंधमारी करने में कामयाब हो गई, पर अपने पुराने किलों को ढहने से बचाना किसी चुनौती से कम नहीं है। इन राज्यों में एंटी−इनकंबेंसी बड़ा मुद्दा रहेगा। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकारों पर भ्रष्टाचार सहित कई आरोप लगे हैं। कहीं ऐसा न हो कि अति−आत्मविश्वास के चलते राज्यों में कामकाज की ईमानदारी से समीक्षा करने में उपेक्षा करने पर भाजपा फिर से कांग्रेस को जीते हुए किले थमा बैठे।