अर्पित गुप्ता
देश के प्राचीनतम राजनीतिक दल कांग्रेस अब अस्ताचल की ओर अग्रसर है, इसे इस स्थिति तक पहुंचाने का श्रेय
किसी विरोधी दल को नहीं बल्कि उसी एक खानदान को है, जिसने कभी इसे पाला-पोसा था। देश की आजादी के
बाद से अब तक करीब छः दशक तक इस देश पर राज करने वाले राजनीतिक दल का इसके सर्वेसर्वाओं द्वारा यह
हाल किया जाएगा, इसकी कल्पना कम से कम इस दल के पूर्वजों को तो कतई नहीं थी। इसे इस दल का दुर्भाग्य
ही कहा जाएगा कि नेहरू खानदान के मौजूदा वारिसों ने भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के ‘‘कांग्रेस
रहित भारत’’ के नारे के साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। आज की इस दुरावस्था में वे वरिष्ठ काँग्रेसी
अवश्य दुःखी है, जिन्होंने इसके स्वर्णिम काल को देखा है और इसके स्वर्णिम भविष्य की कल्पना संजो रखी थी।
ज्यादा नही कुछ वर्षो पहले तक इस देश पर एकछत्र राज करने वाले इस दल को आज अपना ‘नामलेवा’ ढूँढना पड
रहा है और धीरे-धीरे इसका भी लोप हो जाएगा।
पिछलें शताब्दी के आठवें दशक तक (इंदिरा जी के रहने तक) इस दल का सितारा बुलंदी पर था, इंदिरा जी के बाद
राजीव गांधी के भी पांच साल ठीक-ठाक रहे, किंतु 1991 में राजीव की हत्या के बाद सोनिया जी के अनुभवहीनता
ने कांग्रेस को अस्ताचल का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया, कांग्रेस की पुरानी साख की वजह से 2004 से 2014
तक (दस साल) फिर भी जैसे-तैसे डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार चली जो कतिपय घोटालों और ‘‘रिमोटी सरकार’’
के लांछन के कारण काफी बदनााम हो गई जिसका परिणाम मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलना था,
लेकिन इतनी दुरावस्था के बावजूद जब पार्टी ने अपनी मौजूदा स्थिति पर आत्मचिंतन तक नहीं किया, तब प्रणव
मुखर्जी जैसे कई अन्य वरिष्ठ कांग्रेसियों ने अपने आपको कांग्रेस से अलग कर लिया और नौसीखियों (सोनिया-
राहुल) के अकुशल हाथों में इस पार्टी का भविष्य सौंप दिया और आज इसकी जो स्थिति है, उससे सभी अवगत है।
अब तो वरिष्ठ कांग्रेसी इसकी मौजूदा दुरावस्था से कम, इसके भविष्य को लेकर अधिक चिंतित है, क्योंकि इस
पार्टी की हथेली से इसका भविष्य (युवा पीढ़ी) फिसलता जा रहा है और यही युवा पीढ़ी भारत के जिन गीने-चुने
राज्यों में कांग्रेस की सरकारें है, वे भाजपा को सौंप रही है, मध्यप्रदेश, गोवा, कर्नाटक और अब राजस्थान इसके
उदाहरण है और अब कांग्रेस के बाद उसके समर्थन से चल रही महाराष्ट्र जैसी सरकारों की भी बारी आ सकती है।
यदि हम अपने प्रदेश की ही बात करें तो यहां पिछले अठारह महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को
बहुमत मिला था और कांग्रेस की सरकार बनी थी, चुनाव के समय सशक्त युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को
रंगीन सपने दिखाए गए थे और जब सरकार बनाने का मौका आया तो कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बना दी गई
और सिंधिया की पूरी तरह उपेक्षा कर दी गई, बस इसी के चलते नाराज सिंधिया ने अपना शक्ति प्रदर्शन कर
कमलनाथ की सरकार गिरवा दी और शिवराज की सरकार बनावा दी, अब मध्यप्रदेश की इसी स्क्रीप्ट पर राजस्थान
में फिल्म बन रही है, जिसके नायक युवा नेता सचिन पाॅयलेट है, जो अपने ही राज्य सरकार के उप-मुख्यमंत्री
रहते उपेक्षित तथा नाराज है, अब वे मध्यप्रदेश की ही फिल्म का राजस्थान में प्रदर्शन करने जा रहे है।
यहां यह सबसे महत्वपूर्ण बात है कि मध्यप्रदेश हो या राजस्थान दोनों ही प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें गिराने का
श्रेय भारतीय जनता पार्टी को कतई नहीं है, इसका श्रेय कांग्रेस के ही वरिष्ठ युवा नेताओं ज्योतिरादित्य सिंधिया व
सचिन पाॅयलेट को जाता है और इसके लिए और कोई नही स्वयं कांग्रेस का मौजूदा दिशाहीन नेतृत्व जिम्मेदार है।
अब धीरे-धीरे इसी स्क्रीप्ट पर उन राज्यों में भी फिल्में तैयार करने की तैयारियां चल रही है, जहां कांग्रेस या गैर
भाजपा दलों की सरकारें है। इस तरह यदि कुल मिलाकर यह कहा जाए कि कांग्रेस तेजी से अस्ताचल की ओर
अभिमुख हो रही है, तो कतई गलत नहीं होगा और इसके लिए और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ सोनिया-राहुल ही
जिम्मेदार होगें, किसी ने सही कहा है- ‘‘जन्म देने वाला ही उसकी जीवन लीला समाप्त भी करता है’’ नेहरू
खानदान ने कांग्रेस को बुलंदी तक पहुंचाया और अब उनके ही वारिस उसे खत्म कर रहे है।