कश्मीर में अपनी गलती को लेकर मोदी को लंबे समय तक पछतावा रहेगा

asiakhabar.com | June 21, 2018 | 5:34 pm IST
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बीजेपी महासचिव राम माधव जब दिल्ली में पत्रकारों के सामने जम्मू-कश्मीर में महबूबा सरकार से समर्थन वापस लेने के फैसले पर पार्टी की ओर से सफाई पेश कर रहे थे तो वो बिलकुल सहज नहीं दिख रहे थे।

राम माधव ने मीडिया से कहा कि मौजूदा हालात में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार चलाना मुश्किल हो गया था…और तो और बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती को नाकाम सीएम करार दे डाला। लेकिन बीजेपी की महबूबा से नाराजगी के पीछे कई कारण हैं। जब सेना ने घाटी में आतंकियों का सफाया करने के लिए ऑरेशन ऑलआउट चलाया तो उसे लेकर महबूबा सरकार की ओर से कोई सहयोग नहीं मिला। पीडीपी ने खुलकर तो इसका विरोध नहीं किया लेकिन उसके कई नेता इस फैसले के खिलाफ दिखे।

घाटी में सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी को लेकर भी महबूबा का नरम रवैया बीजेपी को पसंद नहीं आ रहा था। केंद्र ने रमजान के महीने में सीजफायर का दांव तो खेला लेकिन ये उल्टा पड़ गया.. आतंकियों ने पत्रकार शुजात बुखारी और जवान औरंगजेब की हत्या कर अपने इरादे फिर से जाहिर कर दिए। सच्चाई तो यही है कि पूरे रमजान में सीजफायर के बावजूद घाटी में आतंकी वारदातों में कोई कमी नहीं आई। साफ है हमेशा की तरह अलगाववादी नहीं चाहते कि घाटी में किसी तरह की शांति रहे। एक तरफ जहां सीजफायर के फैसले को लेकर केंद्र पर सवाल उठ रहे थे वहीं महबूबा चाहती थीं कि सीजफायर को आगे बढ़ाया जाए। महबूबा जहां एक तरफ सीजफायर बढ़ाने के पक्ष में थीं वहीं दूसरी तरफ ये भी चाह रही थीं कि घाटी में अलगाववादियों से बातचीत की जाए।
बीजेपी के सामने अब कोई चारा नहीं बच गया था…बीजेपी के सभी बड़े नेता अब इस बात को महसूस करने लगे थे कि घाटी में महबूबा के साथ सरकार में शामिल होकर पार्टी ने बहुत बड़ी गलती कर दी। देर से ही सही बीजेपी ने फैसला कर लिया कि अब वो महबूबा के साथ नहीं रहेगी।
सवाल उठता है कि आखिर महबूबा के साथ सरकार में शामिल हेकर बीजेपी को हासिल क्या हुआ… घाटी में हालात जस के तस हैं…बीजेपी के नेता कैमरे पर महबूबा के खिलाफ भड़ास तो निकाल रहे हैं लेकिन कोई ये कहने की हिम्मत नहीं कर रहा कि पार्टी से बड़ी चूक हुई है। आज हमारे सामने सबसे अहम सवाल यही है कि आखिर कश्मीर को लेकर मोदी सरकार की क्या नीति है? एक तरफ जब घाटी में ऑपरेशन ऑलआउट चलाया जा रहा था उसी दौरान उसने वहां अमन और शांति बहाल करने के लिए वार्ताकार नियुक्त कर दिया। घाटी में शांति बहाली के लिए पहले भी वार्ताकार नियुक्त किए गए लेकिन उसका नतीजा क्या निकला ये हर कोई जानता है।
सच्चाई तो यही है कि जब से घाटी में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी वहां हालात और बिगड़ गए। पत्थरबाजों पर महबूबा की नरमी को लेकर जब बीजेपी से सवाल किया जाता था तो उसके पास कोई जवाब नहीं होता था। पीडीपी का घाटी में अलगाववादियों के प्रति हमेशा से प्रेम रहा रहा है ये बात किसी से छिपी नहीं है….पीडीपी हमेशा से पाकिस्तान के साथ बातचीत की वकालत करती है ये बात भी सभी को मालूम है। महबूबा के दिवंगत पिता और जम्मू-कश्मीर के सीएम रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद कई मौकों पर पाकिस्तान का राग अलापते दिखे। घाटी में अलगाववादियों को लेकर पीडीपी का नजरिया जगजाहिर है लेकिन ये सब जानते हुए भी बीजेपी ने महबूबा के साथ मिलकर वहां सरकार बना ली। अब जब पानी सिर के ऊपर से बहने लगा तो बीजेपी के सामने कोई चारा नहीं बचा और हारकर उसने महबूबा सरकार से समर्थन वापस ले लिया। वैसे कहा ये भी जा रहा है कि महबूबा सरकार से अलग होने का ये समय बीजेपी ने इसलिए चुना ताकि वहां लोकसभा के साथ ही चुनाव कराया जा सके। लेकिन बीजेपी को इससे कोई फायदा होगा ऐसा नहीं दिख रहा। सच तो यही है कि पीडीपी के साथ गठबंधन करना बीजेपी के लिए घाटे का सौदा रहा और पार्टी को अपने फैसले पर लंबे समय तक अफसोस रहेगा।

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