कब तक सामने आते रहेंगे प्यारेमियाँ जैसे चरित्र?

asiakhabar.com | July 21, 2020 | 4:04 pm IST
View Details

-डॉ. नीलम महेंद्र-

“हर चेहरे पर नकाब है यहां
बेनकाब कोई चेहरा नहीं
हर दामन में दाग है यहां
बेदाग कोई दामन नहीं।
यह अजीब शहर है जहां
औरत बेपर्दा कर दी जाती है लेकिन
सफेदपोशों के नकाब कायम हैं यहां”
-डॉ. नीलम महेंद्र-
मध्यप्रदेश की राजधानी एक बार फिर कलंकित हुई। एक बार फिर साबित हुआ कि हम एक सभ्य समाज होने का
कितना भी ढोंग करें लेकिन सत्य बेहद कड़वा है। प्यारेमियाँ तो केवल वो नाम है जो सामने आया है ऐसे कितने ही
नाम अभी भी गुमनाम हैं। प्यारेमियाँ तो मात्र वो चेहरा है जो बेनकाब हुआ है ऐसे कितने ही चेहरे अभी भी नकाब
की ओट में हैं यह हम सभी जानते हैं। चूंकि अब यह मामला सामने आ गया है तो सब ओर से प्यारेमियाँ को
कठोर से कठोर दंड देने की मांग उठने लगी है। लेकिन क्या प्यारेमियाँ को दंडित करने मात्र ही समस्या का हल
है? क्या प्यारेमियाँ अकेला अपराधी है? ऐसे अनेक सवाल हैं जो एक समाज के रूप में हमें स्वयं से पूछने ही
चाहिए।
क्योंकि इस प्रकार की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं। कभी
विधवा आश्रम तो कभी महिला आश्रय स्थल लेकिन ये बालिकाएं तो नाबालिग थीं। दरअसल प्यारेमियाँ ने एक पूरा
नेक्सस बना लिया था। बड़े बड़े सफेदपोश लोग इस नेक्सस से जुड़े थे। अब सवाल यह है कि प्यारेमियाँ को तो
पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है लेकिन क्या कानून के हाथ उन सफेदपोशों के गिरेबां तक भी पहुंचेंगे जिनकी वजह
से प्यारेमियाँ का यह धंधा फलता फूलता था?
दरअसल प्यारेमियाँ अकेला दोषी नहीं है उसके अतीत को खंगालने पर पता चलता है कि उसका आज ही नहीं
बल्कि उसका बीता हुआ कल भी दागदार था। आश्चर्यजनक है कि सरकार और प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं
थी। क्योंकि 1990 से प्यारेमियाँ लगभग 5000 वर्गफीट में बने विधायक विश्राम गृह के दो भवनों में रह रहा
था, किस हैसियत से यह पता नहीं। इस जगह पर उसने अपना आलीशान घर बना लिया था। 2002 में जब उसे
सचिवालय द्वारा परिसर खाली करने का नोटिस दिया गया तो उसने अदालत की शरण ली। हालांकि अदालत से
भी उसे परिसर खाली करने का आदेश दिया गया फिर भी "सत्ता शीर्ष तक उसकी पहुंच" के चलते सचिवालय को
उससे यह परिसर खाली कराने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ी।
पुलिस और विधानसभा के सुरक्षा विभाग के साझा ऑपेरशन से परिसर को खाली कराया गया। इस दौरान परिसर
से 40 पेटी विदेशी शराब तथा आपत्तिजनक दस्तावेज भी बरामद हुए थे। बावजूद इसके, कुछ माह बाद ही

प्यारेमियाँ को पुराना भोपाल इलाके में एक बंगला आवंटित कर दिया गया था। क्या यहां यह प्रश्न नहीं उठता कि
कैसे और क्यों? और अगर आपको बताया जाए कि जिस परिसर पर प्यारेमियाँ ने पत्रकार और अखबार के नाम
पर कब्ज़ा किया था वो वीआईपी क्षेत्र की बेशकीमती सरकारी जमीन है जो भोपाल के मुख्य बाजार न्यू मार्केट,
राजभवन, बिड़ला मंदिर, विधानसभा और मंत्रालय के बीचों बीच स्थित है तो आप क्या कहेंगे?
बात केवल इतनी नहीं है, बात यह भी है कि जुल्म की शिकार नाबालिग लड़कियों से जब बाल आयोग की टीम ने
मुलाकात की, तो उन्होंने बताया कि जिस रात पुलिस उन्हें रातीबार पुलिस स्टेशन लेकर गई थी तो अगले दिन
सुबह वहां प्यारेमियाँ वहां आया था और मुँह खोलने पर उन्हें जान से मारने की धमकी दे कर गया था। अब सवाल
यह है कि उसे उसी समय गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया जबकि नाबालिग लड़कियों ने रात को ही पुलिस को
प्यारेमियाँ के संगीन अपराध की जानकारी दे दी थी। हालांकि अब उसे गिरफ्तार किया जा चुका है लेकिन जब वो
आसानी से हाथ आ सकता था तो उसे फरार होने का मौका क्यों दिया गया?
इतना ही नहीं,प्यारे मियाँ के एक सहयोगी ओवैज को भी गिरफ्तार किया गया है जिसने पूछताछ में शहर के कुछ
रसूखदार लोगों के नाम लिए हैं। प्यारेमियाँ के फोनकॉल की डिटेल्स से भी कई रसूखदारों के नाम सामने आए
हैं।पुलिस को शक है कि इन्हीं की शह पर प्यारेमियाँ ऐसे अपराधों को अंजाम देता था। बच्चियों की उम्र को देखते
हुए प्यारेमियाँ ही नहीं बल्कि जो सफेदपोश इस संगीन अपराध में उसके साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लिप्त थे
उन सभी पर पोस्को एक्ट के तहत मामला दर्ज कर कार्यवाही और जांच की जानी चाहिए। उसके द्वारा शोषित
लड़कियों के बयान और उसके फ्लैट से मिले सबूत उस पर पोस्को एक्ट के तहत मामला दर्ज करने के लिए काफी
हैं और पोस्को एक्ट उसे कठोरतम सजा दिलवाने के लिए काफी है। लेकिन पुलिस अपनी जांच में इन सवालों के
जवाब ढूँढ़ रही है कि वो कश्मीर कैसे पहुंचा? उसकी संपत्ति, उसके अंडरवर्ल्ड और पाकिस्तान कनेक्शन की जांच
की जा रही है।
इसे पुलिस की मासूमियत कहें या मजबूरी? अगर हमारी पुलिस इतनी ही मासूम है तो उसे समझना चाहिए कि
उनकी यह "मासूमियत" कितनी ही नाबालिग बच्चियों की मासूमियत समय से पहले ही छीन लेती है। और अगर
वो मजबूर है तो उसे समझना चाहिए कि उनकी यह "मजबूरी" भविष्य में न कितने प्यारेमियाँ को किसी गरीब
लड़की की मजबूरी का फायदा उठाने की हिम्मत दे जाती है। हमारी सरकारों और न्याय व्यवस्था को भी समझना
चाहिए कि जब बलात्कार के एक आरोपी का जब हैदराबाद पुलिस द्वारा एनकाउंटर होता है तो पूरा देश खुशी क्यों
मनाता है। क्योंकि जब तक हम इन सवालों के ईमानदार जवाब नहीं खोजेंगे प्यारेमियाँ बार बार सामने आते रहेंगे।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *