संयोग गुप्ता
आज का सबसे अहम्् सवाल यह है कि क्या फ्रांस का जेहादी आतंकवाद पूरे विश्व के मुस्लिम प्रधान देशों को
एकजुटकर कट्टरवाद के तूफान के संकेत दे रहा है? और इसकी अगुवाई हमारा पड़ौसी पाकिस्तान कर रहा है?
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने हाल ही में विश्व के सभी मुस्लिम देशों के सरकारी मुखियाओं को चिट्टी
लिखकर फ्रांस के विरूद्ध एकजुट होने की गुजारिश की है, जबकि भारत सरकार ने फ्रांस सरकार के मुस्लिम
आतंकवाद विरोधी अभियान का समर्थन किया है। किंतु आज अहम्् चिंता का विषय यह है कि ये जेहादी
आतंकवाद दुनिया को किस दिशा में ले जाएगा और इसके खतरनाक परिणाम क्या होंगे?
यद्यपि भारत सरकार ने फ्रांस के प्रयासों का समर्थन किया है, किंतु भारत सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि
हमारे भारत के भी कुछ शहरों ने फ्रांस विरोधी प्रदर्शन हुए है, जिसमें हमारा भोपाल भी शामिल है। फ्रांस सरकार के
विरोध में भारत के जिन दो प्रमुख शहरों में प्रदर्शन हुए वे भोपाल और हैदराबाद है। पिछले शनिवार को भारत की
अखण्डता के प्रतीक स्व. सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंति थी, इसी संदर्भ में मुझे याद आया कि जब देश की
आजादी के बाद राजा-महाराजाओं के राज्यों के विलीनीकरण का अभियान तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई
पटेल चला रहे थे तब भोपाल और हैदराबाद ही ये दो स्टेट थी, जिन्होंने भारत के साथ विलीनीकरण का विरोध
किया था और ये पाकिस्तान के साथ जुड़ना चाहती थी, तब सरदार ने सख्ती के साथ धमकी देकर इन दोनों स्टेटों
के मुस्लिम मुखियाओं को भारत में विलीनीकरण के लिए राजी किया था, और इसी के बाद जब एक नवम्बर
1956 को मध्यप्रदेश राज्य का जन्म हुआ तब राज्य की राजधानी हेतु ग्वालियर, इन्दौर और जबलपुर के दबाव
को भूलकर भोपाल का चयन किया तथा यहां के बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक में बदलने के लिए भारत हैवी
इलेक्ट्रिकल्स जैसे कारखाने की यहां स्थापना की।
मेरा कहने का मतलब यह कि भारत की आजादी और भारत सरकार द्वारा धर्मनिरपेक्षता का मंत्र स्वीकार करने के
बाद भी भारत के कुछ क्षेत्र ’आशंका‘ के केन्द्र बिन्दु बने रहे, जिसके दर्शन आज फिर फ्रांस की घटना को लेकर हो
रहे है, इसलिए केन्द्र व राज्य सरकारों को इस संदर्भ में सतर्क रहना बेहद जरूरी है और वह भी अब इसलिए
क्योंकि फ्रांस की घटना की आड़ में जैहादी तूफान लाने के प्रयास शुरू हो गए और तुर्की और पाकिस्तान खुलकर
हिंसा का समर्थन करने लगे है। यहां इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रदर्शनकारी अपने पैगम्बर
के अपमान से आहत है, किंतु यदि इसकी आड़ में गर्दन काटने का नारा दिया जाए तो उसका समर्थन कैसे किया
जा सकता है? यही आज की हैरत का बड़ा कारण है और क्या इसे अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा में माना जा
सकता है? इसीलिए यह माना जा रहा है कि विश्व के मुस्लिम प्रधान देशों से जो संकेत मिलना शुरू हुए है वे
काफी खतरनाक और विध्वंसक है, इसलिए ऐसे समय में न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्कि विश्व के सभी शांति प्रिय देशों
को काफी सतर्क रहने की आवश्यकता है।
इसी संदर्भ में यदि हम भारत और हमारे पड़ौसी पाकिस्तान की ताजी घटनाओं पर गौर करें तो हमें लगता है कि
पाकिस्तान के मंत्री फवाद हुसैन चौधरी ने जानबूझकर पाकिस्तान की संसद में हमारे पुलवामा के डेढ़ साल पुराने
जख्म को कुरैदने की कोशिश की और उसे इमरान सरकार भी यह कहते हुए बड़ी कामयाबी बताया कि पाक ने
हिन्दुस्तान के घर में घुसकर वहां के सुरक्षाकर्मियों को मारा था, जबकि चौदह फरवरी 2019 को हुए इस हमले में
हमारे चालीस केन्द्रीय पुलिस बल के जवानों को मारने की जिम्मेदारी पाक आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद ने
ली थी, अब इस बारें में पाक के जिम्मेदार मंत्री के कुबुलनामें के बाद तो यह स्पष्ट ही हो जाता है कि पाक
आतंकवादी संगठन पाक सरकार के नेतृत्व में ही काम कर रहे है और विश्व की महाशक्तियां यदि पाक को
आतंकवाद पोषक देश कह रही है तो वह कतई गलत नहीं है।
यद्यपि पुलवामा काण्ड के बाद भारतीय प्रतिपक्षी दलों के रवैये और उनके बयानों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी
आज भी आहत है, प्रतिपक्ष ने पिछले लोकसभा चुनावों में भी इस काण्ड को मुद्दा बनाया था और कश्मीरी नेता
फारूख ने भी इस हमले को मोदी जी की राजनीतिक चाल बताया था, किंतु इसके बाद आए लोकसभा चुनाव
परिणामों ने सिद्ध कर दिया था कि प्रतिपक्ष के आरोपों में कोई दम नहीं था।
जो भी हो, किंतु आज सबसे बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय चिंता का विषय कट्टरवादी तूफान की आशंका होना चाहिए और
इससे निपटने की दिशा में सार्थक कदम उठाना चाहिए।