अर्पित गुप्ता
सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की वैधता की व्याख्या संविधान
पीठ को सौंप दी है। पांच न्यायाधीशों की पीठ अक्तूबर के पहले सप्ताह में सुनवाई शुरू करेगी। कुल 14
याचिकाओं में से 9 ऐसी हैं, जिनमें 370 को समाप्त करने के संसदीय और राष्ट्रपति के फैसलों को
चुनौती दी गई है। शीर्ष अदालत की न्यायिक पीठ के सामने सवाल और तर्क थे कि याचिकाओं, अदालत
के फैसले, संविधान पीठ को मामला भेजना और कश्मीर पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सरीखे
विपक्षी नेताओं के बयानों को, भारत के खिलाफ सबूत के तौर पर संयुक्त राष्ट्र में इस्तेमाल किया
जाएगा, लेकिन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई का मानना था कि जो आदेश पारित कर दिया
गया, उसे हटाया नहीं जाएगा। दरअसल सवाल यह भी विचारणीय है कि संसद के दोनों सदनों ने पर्याप्त
बहुमत से जो मुद्दा पारित किया था, क्या उसकी वैधता की समीक्षा भी होनी चाहिए? संसद को तो
‘सुप्रीम’ माना गया है। बेशक सुप्रीम कोर्ट संसद में बनाए गए कानूनों की समीक्षा कर सकती है, लेकिन
370 सरीखे ऐतिहासिक और संवेदनशील मुद्दों पर, किसी फैसले से पहले, सर्वोच्च अदालत को भी
पुनर्विचार करना चाहिए। कारण, यह कूटनीतिक मामला भी है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में
पाकिस्तान इसका गलत इस्तेमाल कर रहा है। पाकिस्तान ने सुरक्षा परिषद में फिलहाल जो याचिका
भेजी है, उसमें राहुल गांधी और महबूबा मुफ्ती सरीखे भारतीय नेताओं के बयानों का उल्लेख है।
पाकिस्तान ने वामपंथी दलों और मुलायम सिंह यादव के नाम भी उद्धृत किए हैं। पाकिस्तान को लगता
है कि भारत में भी उसके समर्थक मौजूद हैं। सर्वोच्च न्यायालय में भी जो याचिकाएं विचाराधीन हैं,
उनकी दलीलें भी पाकपरस्त हैं। क्या मोदी-विरोध राष्ट्रहित से बड़ा हो सकता है? हम भी मानते हैं कि
कश्मीर के हालात सामान्य नहीं हैं। दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों, उमर अब्दुल्ला और महबूबा ने भी प्रशासन
को साफ कहा है कि यदि वे नजरबंदी से बाहर आए, तो 370 पर संसद और भारत सरकार के फैसले
का विरोध करेंगे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी चिल्ला रहे हैं कि वह कश्मीर की आजादी
तक लड़ते रहेंगे। वह दुनिया के मंच पर ‘कश्मीर के राजदूत’ के तौर पर यह मुद्दा उठाते रहेंगे। दोनों पूर्व
मुख्यमंत्रियों और इमरान खान की सोच और सियासत में बुनियादी फर्क क्या है? 370 को हटाने के बाद
कश्मीर में एक पत्थर या गोली भी नहीं चली है। फोन लाइन खुली हैं, लेकिन इंटरनेट अभी 2जी पर चल
रहा है या बाधित है। राज्यपाल सतपाल मलिक तो इंटरनेट को पाकिस्तान और आतंकियों का एक
‘हथियार’ मानते हैं। दरअसल एक तबका ऐसा है, जो चाहता है कि कश्मीर में गोलियां चलें, बम फोड़े
जाएं, हिंसा जारी रहे और लाशें बिछती रहें। यही सोच और रणनीति पाकिस्तान की है, लिहाजा हम बार-
बार कहते रहे हैं कि भारत में भी एक पाकिस्तान बसा है। पाकिस्तान की बौखलाहट और फड़फड़ाहट
समझी जा सकती है क्योंकि दुनिया का हर बड़ा देश-अमरीका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान और कुछ हद
तक चीन भी कश्मीर पर भारत के रुख का समर्थन कर रहा है, लेकिन पाकिस्तान में ऐसे वीडियो आम
हैं, जिनमें भारतीय चेहरे दिखाए जा रहे हैं। उनके जरिए वहां की हुकूमत अपने अवाम को दिलासा दे रही
है कि हिंदुस्तान में सिर्फ मोदी ही नहीं, राहुल गांधी भी हैं, लेफ्ट, ममता और मुलायम भी हैं। राहुल
गांधी ने बयान दिया था कि कश्मीर में हिंसा की खबरें हैं, लोग मर रहे हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री पूरी
पारदर्शिता के साथ देश को बताएं कि आखिर कश्मीर में चल क्या रहा है? पाकिस्तान ने जब राहुल के
ऐसे बयान को अपनी याचिका में शामिल किया, तो पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष को यू-टर्न लेना पड़ा। फिर
उन्होंने जम्मू-कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला करार दिया और पाकिस्तान को इसमें दखल नहीं
देने का बयान देना पड़ा। बहरहाल कश्मीर के हालात इस वक्त बहुत खराब हैं। कुंठित पाकिस्तान ‘जंग-
जंग..’ चिल्ला रहा है, सरहद पर अपनी फौज की तैनाती कर घुर्रा रहा है। हम जानते हैं कि यदि युद्ध
हुआ, तो पाकिस्तान भारत की सेनाओं के सामने कुछ मिनट तक ही ठहर पाएगा, लेकिन इन हालात में
देश की जुबां और तस्वीर एक ही सुननी-दिखनी चाहिए।