सुरेंद्र कुमार चोपड़ा
अंततः यह फैसला कंगना को करना है कि उसे कलाकार माना जाए या वह सियासी तौर पर देश को कोई संदेश
देना चाहती है। कम से कम कंगना को हिमाचल ने कलाकार तो नहीं बनाया और फिल्म उद्योग की वजह से वह
एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री है, इससे कौन इनकार करेगा। निश्चित रूप से कंगना को अगर कोई खतरा है, तो सुरक्षा
मिलनी चाहिए, किसी संजय राउत ने अपशब्द कहे, तो उसकी भर्त्सना होनी चाहिए, लेकिन इस सारे मुद्दे को
हिमाचल बनाम महाराष्ट्र या मुंबई बनाने के इस खेल में राज्य की कोई भूमिका नहीं हो सकती। हर राज्य की
अपनी अस्मिता है और इस लिहाज से हम आपसी वैमनस्य की दीवारें खड़ी नहीं कर सकते। हिमाचली अस्मिता
अगर धारा 118 के इर्द-गिर्द घूम सकती है, तो महाराष्ट्र में मराठी माणुस या आमची मुंबई के सवाल पर जन
संवेदना का दायरा बड़ा हो जाता है। अचानक कंगना के व्यक्तित्व की किसी फिल्मी स्क्रीन पर सियासत के संदर्भ
और विचारधारा का आकाश उभरने लगा है। ऐसा लगता है कि किसी आंदोलन की जिरह में कंगना अपनी जमीन
खड़ी कर रही है और इसके कारण समाज की विभाजक रेखाएं मुखर हैं।
कंगना को बतौर कलाकार इतनी शोहरत व दौलत हासिल है कि वह फिल्मी दुनिया का नगीना बन जाती है। वह
बहादुर बेटी की तरह फिल्मी घराने की आंखों में आंखें डाल कर कुछ वाजिब प्रश्न उठाती हैं, लेकिन कोई कलाकार
अगर मुंबई पुलिस के प्रदर्शन को नाकारा-नाकाबिल कहे, तो उसका व्यक्तित्व यकायक बदल जाता है। मुंबई की
तुलना पीओके से करना, अक्षम्य व्यवहार की श्रेणी में आता है। वह देश की वकालत कर रही हैं, महिलाओं का
नेतृत्व या इस युद्धकौशल में उसके निहितार्थ तय हैं। ऐसे में कंगना की वजह ऐसी बेवजह भी है, जो जिंदगी के
अपने स्वार्थ या अपने यात्राचक्र में कई सहयात्री ढूंढ चुकी है। ऐसे में कंगना के पक्ष में एक पक्ष तो खड़ा हो चुका
है, लेकिन इसे हिमाचली पक्ष मान लिया जाए तो हम एक खास राजनीति का हिस्सा बन सकते हैं। कल तक
बिहार बनाम महाराष्ट्र में सुशांत सिंह राजपूत की मौत का संदेह बंटता हुआ नजर आ रहा था, तो क्या आज
कंगना की दुहाई में हिमाचल बनाम मुंबई बना दंे। क्या हिमाचली अस्मिता अब ऐसी ‘अदाकारी’ के जख्म चुनेगी
या हम उस सफलता को चूमेंगे जो कितने ही हिमाचलियों को प्रदेश के बाहर आश्रय से मिली है। आश्चर्य यह कि
जब कोरोना से भयभीत मंजर में हिमाचली प्रदेश लौट रहे थे, तो यहां के स्थायी बाशिंदे इसका विरोध करते रहे।
क्या हिमाचल की क्षमता इतनी बड़ी हो चुकी है कि हम अपनी किलेबंदी करके राज्य के भीतर ही सब कुछ पा लेंगे
या यह विचार करेंगे कि देश भर में फैले सफल हिमाचलियों को अस्तित्व की वास्तविक पहचान अपने प्रदेश से
बाहर निकल कर ही हासिल हुई है।
कुछ इसी तरह हम धारा 118 के साथ जुड़ कर ऐसा साम्राज्य बनाने की बाड़बंदी कर चुके हैं, जो राष्ट्र हित में
हमारी वकालत को बौना कर देती है। हम चाहें तो देश के हर कोने में सफलता के झंडे गाड़ दें या जहां चाहें
अधिकार के साथ आशियाना, जायदाद या मनचाहा कारोबार कर लें, लेकिन हिमाचल को वर्षों तक सींचने वाले
हाथों को हम हिमाचली होने के रुतबे से महरूम रखने में गर्व महसूस करते हैं। हम चाहते हैं कि बाहर से निवेशक
यहां आकर करोड़ों का निवेश करें, लेकिन यह सब धारा 118 के सांकलों के भीतर संभव हो। यह असंभव सी
परिकल्पना है और जम्मू-कश्मीर की बदली हैसियत के बाद निष्प्रभावी हो चुके अनुच्छेद 370 के सामने हिमाचल
में धारा 118 पर अतिरिक्त प्रश्न चस्पां करती है। जिस स्वतंत्रता से कंगना मुंबई में संपत्ति बना पाई, क्या उस
आधार पर कोई मराठी यहां हिमाचल में एक इंच जमीन भी खरीद सकता है। धारा 118 का उल्लंघन अगर
दंडनीय अपराध है, तो मुंबई पुलिस को कोसने का अधिकार किसी हिमाचली को क्यों मिले। क्या कंगना हिमाचल
की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को पूज रही है या उसके भीतर के कलाकार ने प्रदेश के लिए कुछ किया है। इससे बेहतर
तो वे स्थानीय हिमाचली कलाकार हैं, जो अपनी माटी के लिए कार्य कर रहे हैं।
अगर सांसद रामस्वरूप, विधायक कर्नल इंद्र सिंह या पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार जैसे नेता कंगना के बहाने
महाराष्ट्र को घूर रहे हैं, तो सर्वप्रथम यह पूछा जा सकता है कि आज तक किसी हिमाचली कलाकार की आर्थिक या
सांस्कृतिक सुरक्षा के लिए उन्होंने क्या किया। जाहिर तौर पर कंगना बनाम फिल्मोद्योग या शिवसेना कभी भी
हिमाचल बनाम महाराष्ट्र नहीं हो सकता। इसी आमची मुंबई में हिमाचल के सामाजिक व आर्थिक सरोकार अलग
पहचान के साथ जीवंत हैं। फिल्म उद्योग में कई हिमाचली अलग-अलग भूमिकाओं में प्रतिष्ठित हैं, तो कर्मभूमि
को हजार बार नमन करना ही पड़ेगा। अगर कंगना महिलाओं के लिए संघर्ष कर रही है, तो गुडि़या कांड की फाइल
उठा कर मैदान में आए और राज्य सरकार तथा सीबीआई से पूछे कि तीन साल बाद भी चुप्पी क्यों। दूसरी ओर
कंगना के समर्थन में कूदे सांसद अगर उसे कलाकार मानकर सम्मान दे रहे हैं, तो अपने प्रदेश में एक अदद
फिल्मी स्टूडियो खोल कर तो दिखाएं ताकि आने वाली प्रतिभा को मुंबई के धक्के न खाने पड़ें। कंगना के समर्थन
में उनका कलात्मक पक्ष हो सकता है, लेकिन क्या उनके निजी जीवन की झलकियों, ट्विटर पर अभिव्यक्त
जहरीली टिप्पणियों या फिल्मी हस्तियों पर छींटाकशी को क्या राज्य का समर्थन हासिल हो सकता है।