और अब बिहार भी जल संकट की चपेट में

asiakhabar.com | May 1, 2019 | 4:42 pm IST
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पूरा देश इस समय चुनावी शोरगुल में डूबा हुआ है। राजनैतिक दलों द्वारा जनता के मध्य तरह-तरह के
मुद्दे उछाले जा रहे हैं। कहीं भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध उन्माद को लेकर वोट मांगे जा रहे हैं तो
कहीं राष्ट्रवादी कौन,इसे लेकर बहस छिड़ी हुई है। कहीं नागरिकता रजिस्टर को लेकर वोट मांगे जा रहे हैं
तो कहीं धर्म-जाति यहां तक कि महापुरुषों को भी बांटकर वोट की भीख मांगी जा रही है। परंतु इन सब
बातों के मध्य मानव के लिए सबसे आवश्यक समझी जाने वाली चीज़ का जि़क्र कहीं गुम हो गया है।
एक ऐसी चीज़ जिसके बिना किसी भी प्राणी खासतौर पर मानव जीवन की तो कल्पना ही नहीं की जा
सकती। जल ही जीवन है और बिन पानी सब सून जैसे नारे निश्चित रूप से हमें यदा-कदा लिखे तो
ज़रूर दिखाई देते हैं परंतु जल संरक्षण के पक्ष में अब तक किसी भी सरकार द्वारा गंभीर रूप से
संभवत: कोई प्रयास नहीं किए गए। सांप्रदायिकता,जातिवाद तथा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी भारतीय
राजनीति ने लगता है जल जैसे सबसे गंभीर संकट से अपना मुंह फेर लिया है। ऐसा हो भी क्यों न? देश
को लूटकर खाने वाला नेता तथा जनता के खून-पसीने की कमाई से इकट्टा होने वाले टैक्स को अपने व
अपने परिवार के पालन-पोषण का माध्यम बना चुका नेता वर्ग स्वयं तो अपने लिए प्रतिदिन हज़ारों रूपये
के स्वच्छ जल की बोतलें खरीद लेता है परंतु उन गरीब भूखे व प्यासे मतदाताओं के लिए इन
राष्ट्रवादियों द्वारा आखिर क्या किया जा रहा है जो बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं और भविष्य में
यह संकट और गहराता जा रहा है?

बिहार की गिनती देश के उन गिने-चुने राज्यों में हुआ करती थी जिसने अपने भूगर्भीय जल स्तर को
काफी हद तक नियंत्रित कर रखा था। हालांकि बिहार का जलस्तर भी नीचे तो ज़रूर गिर रहा था परंतु
हरियाणा व पंजाब जैसे राज्यों की तुलना में इसकी गति बहुत धीमी थी। इसके मु य कारण यह थे कि
एक तो बिहार राज्य में पोखरों तथा तालाबों की भरमार है। यह तालाब भूगर्भीय जलस्तर को नियंत्रित
रखने में अपनी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। परंतु गत् कुछ वर्षों से सरकार की लापरवाहियों के चलते तथा
जनता की गैरजि़ मेदाराना हरकतों की वजह से धीरे-धीरे यह तालाब गंदगी इकट्टा होने का गड्ढा मात्र
बन कर रह गए हैं। तालाब के चारों ओर रहने वाले वे लोग जिनपर तालाब की सुरक्षा तथा साफ-सफाई
की पहली जि़ मेदारी है वही लोग इसी तालाब में अपने घर की गंदी नाली यहां तक कि मलमूत्र भी इन्हीं
तालाबों में प्रवाहित करने लगे हैं। दूसरी ओर छिछले होते जा रहे इन तालाबों को गहरा करने के लिए
सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। हां अगर सरकार द्वारा कहीं कुछ किया भी जाता है तो
वह सूखे तालाबों के किनारे घाट निर्माण जैसा गैर ज़रूरी कार्य ज़रूर किया जाता है क्योंकि इस प्रकार के
निर्माण कार्य दूर से दिखाई भी देते हैं, इनमें उद्घाटन कर्ता के नाम के पत्थर लगने की संभावना भी
रहती है और सबसे बड़ी बात यह है कि इस प्रकार के कार्यों से नेता,अधिकारी तथा ग्रामीण स्तर के भ्रष्ट
छुटभय्यै नेताओां की गुज़र-बसर भी इसी भ्रष्टाचार के माध्यम से होती है।
बिहार में तेज़ी से गिरते भूतलीय जलस्तर का एक कारण राज्य के लोगों में तेज़ी से आ रही आर्थिक
संपन्नता भी है। निश्चित रूप से हरियाणा व पंजाब जैसे संपन्न राज्यों में जलस्तर तेज़ी से गिरने का
कारण भी काफी हद तक यहां के किसानों की आर्थिक संपन्नता ही मानी जाती है। हरियाणा व पंजाब में
जहां भी देखिए किसानों ने अपने खेतों में शक्तिशाली सबमरसीबल पंप लगवा रखे हैं और इस समय चार
सौ से लेकर सात सौ व आठ सौ फिट की गहराई तक के पानी का खुला दोहन किया जा रहा है। केवल
15-20 वर्ष पहले इसी धरती से डेढ़ सौ-दो सौ फिट की गहराई से जल दोहन किया जाता रहा है। आर्थिक
संपन्नता के चलते बिहार भी अब उसी राह पर चल पड़ा है। गांवों में जिन घरों में हैंड पंप चलाकर
ज़रूरत के अनुसार पानी निकाला जाता था उन्हीं घरों में अब मोटर से पानी निकाला जा रहा है तथा
पानी की टंकियां लगाई जा रही हैं। पिछले 15-20 वर्षों के दौरान हुए इस विकास का परिणाम यह हुआ
है कि अब बिहार के शहरी क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी भूगर्भीय जल संकट गहरा गया
है। ऐसी स्थिति में इन क्षेत्रों के और अधिक संपन्न लोगों ने अपने घरों में भी कम पॉवर की
सबमरसीबल पंप लगवाने शुरु कर दिए हैं। अर्थात् जल दोहन और अधिक बेदर्दी से किए जाने की राह
पर हरियाणा व पंजाब की तरह बिहार की जनता भी चल चुकी है।
पिछले दिनों बिहार के दरभंगा जि़ले के हायाघाट क्षेत्र में पडऩे वाले गांव चंदनपट्टी में एक ऐसे विशाल
पोखर की दुर्दशा देखकर बेहद आश्चर्य हुआ। महदई नाम का यह पोखर अथवा तालाब किसी समय में
एक विशाल झील होने का एहसास कराता था। तालाब के चारों ओर नहाने-धोने,मछली पकडऩे तथा
पशुओं के पानी पीने जैसा दृश्य एक सामान्य बात थी। इस पोखर की वजह से आसपास के इलाकों में
ठंडी हवाएं भी चला करती थीं। परंतु आज लगभग दो वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला महदई पोखर इस

समय महदई का मैदान बन चुका है। तालाब की पूरी ज़मीन पर पानी का एक क़तरा भी नज़र नहीं
आता। हां इस पोखर पर वह टूटा हुआ क्षतिग्रस्त घाट ज़रूर मौजूद है जिसके निर्माण की आड़ में अनेक
लोगों ने अपने बच्चों को भ्रष्टाचार से डूबी हुई रोटी ज़रूर खिलाई होगी। इस तालाब के चारों ओर मंदिर-
मस्जिद,करबला,कब्रिस्तान व स्कूल आदि भी मौजूद हैं। गोया तालाब के चारों ओर धर्म व ज्ञान की जय-
जयकार तो सभी करते हैं परंतु तालाब के अस्तित्व को बचाने की चिंता किसी को भी नहीं है। छठ व
शब-ए-बारात जैसे कई त्यौहारों की यह पोखर शोभा तो ज़रूर बढ़ाया करता था परंतु अब यह सब कुछ
इतिहास बन चुका है। इसी गांव में तेलिया व चभच्चा नामक दो और छोटे व गहरे तालाब थे। इन
तालाबों को भी अब ढूंढना मुश्किल हो गया है। कोई तालाब कूड़े का ढेर बन चुका है तो किसी पर लोगों
ने कब्ज़ा कर लिया है। बिहार में इस समय जो तालाब नज़र भी आ रहे हैं वे अत्यंत प्रदूषित हो चुके हैं
तथा उनका जलस्तर भी काफी नीचे चला गया है। घर-घर मोटर व टंकी लग जाने के कारण तालाबों पर
लोगों की भीड़ भी कम होने लगी है।
सरकार तथा जनता की गैरजि़ मेदारी के अलावा प्रकृति भी संभवत: मानव से नाराज़ चल रही है। शायद
यही वजह है कि पिछले कई वर्षों से बारिश भी लगातार कम होती जा रही है। वर्षा ऋतु में अपेक्षाकृत
कम होती जा रही बारिश की वजह से भी तालाब भर नहीं पाते। परिणामस्वरूप आस-पास का जलस्तर
पुन: अपने पिछले स्तर तक वापस नहीं लौट पाता। ऐसे में सरकार तथा जनता दोनों का ही यह परम
कर्तव्य है कि देश के भविष्य तथा अपनी संतानों के अस्तित्व को बचाने के लिए न केवल नए तालाब
बनाए जाएं बल्कि पुराने तालाबों पर होने वाले अवैध कब्ज़ों को भी हटाया जाए। सभी तालाबों को पुन:
गहरा किया जाए। इनके किनारे बसे लोगों को अपने घर की हर प्रकार की गंदगी को तालाब में डालने से
रोका जाए। पोखर व तालाब जैसे प्राकृतिक सोख़ते के प्रति जनता को दया व सहानुभूति की दृष्टि रखनी
होगी न कि इस पर ज़ुल्म व अत्याचार करने की। यदि हम तालाबों की रक्षा करेंगे,इसे साफ-सुथरा रखेंगे
तो यही तालाब हमारे भविष्य के लिए तथा हमारी आने वाली नस्लों के लिए जीवनदायी साबित होगा।
अन्यथा इस प्रकार से गहराता जा रहा जल संकट भविष्य में लोगों के प्यासे मरने का सबब भी बन
सकता है।


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