अर्पित गुप्ता
हाथरस कांड के बाद कुछ राजनैतिक दलों एवं मीडिया ने ऐसा माहौल बना दिया गया है कि जैसे यूपी सबसे ज्यादा
अपराध वाला राज्य हो। महिलाओं के खिलाफ उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में अपराध का ग्राफ बढ़ा है, तो फिर और
प्रदेशों में महिलाओं के साथ हो रहे अपराध पर चुप्पी साध कर सिर्फ यूपी को क्यों बदनाम किया जा रहा है। पूरे
देश में उत्तर प्रदेश की छवि ऐसी बनाई जा रही है, मानों यह प्रदेश महिलाओं के रहने लायक ही नहीं बचा है,
जबकि कांग्रेस शासित राजस्थान में महिलाओं के साथ यूपी से कहीं अधिक अपराध हो रहे हैं। कांग्रेस शासित
महाराष्ट्र, झारखंड और पंजाब का भी यही हाल है, लेकिन लगता है कि राहुल-प्रियंका ने उत्तर प्रदेश को अपनी
सियासी प्रयोगशाला बना लिया है। उनका हर वार योगी सरकार पर ही होता है, जबकि दोनों राष्ट्रीय स्तर के नेता
हैं।
उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस कांड में भी ऐसा ही हो रहा है, एक बच्ची अपनी जान से चली गई इसकी किसी को
चिंता नहीं है। पूरा ध्यान इस बात पर लगा है कैसे इस कांड को अधिक से अधिक उछाल कर योगी सरकार के
सामने चुनौती खड़ी की जाए। सबसे दुख की बात यह है कि पीड़ित युवती का परिवार भी ओछी सियासत के चपेटे
में आ गया है। ऐसा लग रहा है जैसे हाथरस में पीड़ित युवती जो इस दुनिया में नहीं रही, को इंसाफ दिलाने के
नाम पर ‘गिद्ध भोज’ चल रहा हो। कांग्रेस के राहुल-प्रियंका हों या फिर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, सब
के सब अपने लाव-लश्कर के साथ सियासी मैदान में कूद पड़े हैं। जिस तरह कुछ नेता हाथरस मुद्दे पर राजनीतिक
रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं, वह केवल निंदनीय ही नहीं शर्मनाक भी है। विचलित करने वाली इस घटना पर
कितनी छिछोरी और सस्ती राजनीति हो सकती है, इसका उदाहरण है उन मुख्यमंत्रियों के भी नसीहत भरे बयान,
जिनके अपने राज्य में ऐसी ही घटनाएं घटती रहती हैं। क्या जघन्य अपराध पर चिंता व्यक्त करने के लिए क्षुद्रता
भरी राजनीति जरूरी है?
क्यों कांग्रेस के गांधी परिवार को उत्तर प्रदेश में होने वाले अपराध ही नजर आते हैं। राजस्थान की बेटियों के साथ
बलात्कार होता है तो क्यों गांधी परिवार वहां नहीं जाता है। महाराष्ट्र में बेटियों के साथ जो हो रहा है उससे वह
क्यों आंख मूंदे हुए हैं। एक राष्ट्रीय नेता के लिए यह शोभा नहीं देता है कि वह अपने दामन के दाग को छिपाए
और दूसरे के दामन पर कीचड़ उछाले। इससे अधिक दुखद क्या हो सकता है कि अब तो गांधी परिवार, योगी
सरकार को घेरने के लिए साजिश तक रचने से बाज नहीं आ रहा है। वह पैसा खर्च करके तमाम राज्यों की भाजपा
सरकारों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कराता है ताकि माहौल बिगाड़ा जा सके। हाथरस कांड में भी ऐसा ही होता देखा
जा रहा है। एक वीडियो आडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक कांग्रेसी पीड़ित परिवार वालों को उकसा रहा है कि
योगी सरकार 25 लाख दे रहे हैं, हम तुम्हें 50 लाख देंगे। इसके बदले में यह कांग्रेसी मीडिया के सामने अपनी
मर्जी का बयान पीड़ित परिवार वालों से दिलाना चाह रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि हम कुछ मीडिया कर्मियों
को अरेंज करके भेज रहे हैं ताकि मामले को और ज्यादा तूल दिया जा सके।
समझ में नहीं आता है क्यों हमारे राजनीतिक दल इस ताक में बैठे रहते हैं कि विरोधी दल के राज्य में कोई गंभीर
घटना घटे तो वे वहां दौड़ लगाएं? क्या इस तरह की गिद्ध राजनीति से समाज की उस मानसिकता का निदान हो
जाएगा, जिसके चलते कमजोर तबके हिंसा का शिकार बनाए जाते हैं? हर अपराध को सियासी जामा पहना देने के
चलते अक्सर असली अपराधी छूट जाते हैं। पुलिस को उसका काम नहीं करने दिया जाता है। उसकी सही बात को
भी मिर्च मसाला लगाकर पेश किया जाता है। यह सच है कि हाथरस कांड में पुलिस की भूमिका ठीकठाक नहीं रही।
खासकर, पुलिस ने जिस तरह से परिवार वालों की गैर-मौजूदगी में आधी रात को युवती का अंतिम संस्कार कर
दिया है, उसकी कड़ी से कडी सजा तो दोषी पुलिस वालों को मिलना ही चाहिए, लेकिन यदि योगी सरकार ‘दूध का
दूध और पानी का पानी’ करने के लिए पुलिस सहित सभी पक्षों का नार्को टेस्ट कराने की बात कह रही है तो इसमें
किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
निःसंदेह हाथरस कांड की कड़ी से कड़ी भर्त्सना होनी चाहिए, लेकिन यह बताने के लिए नहीं कि उत्तर प्रदेश को
छोड़कर शेष देश में दलित समुदाय का मान-सम्मान हर तरह से सुरक्षित है या फिर दुष्कर्म की घटनाएं केवल इसी
प्रदेश में घट रही हैं। अपनी राजनीति चमकाने के लिए ऐसा शरारत भरा संदेश देने वालों को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड
ब्यूरो के आंकड़े देखने चाहिए, जो यह बताते हैं कि दलितों के खिलाफ अपराध देश के सभी हिस्सों में हो रहे हैं।
इन आंकड़ों के हिसाब से राजस्थान में दलितों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हो रहे हैं। क्या यह उचित नहीं
होता कि हाथरस जाने की जिद पकड़े राहुल गांधी राजस्थान का भी दौरा करने की जरूरत समझते? दलितों के
खिलाफ अपराध को दलगत राजनीति के चश्मे से देखने वाले दलित समुदाय के हितैषी नहीं हो सकते। आखिर क्या
कारण है कि उत्तर प्रदेश का शासन-प्रशासन तो सबके निशाने पर है, लेकिन उस दलित और स्त्री विरोधी
मानसिकता के खिलाफ मुश्किल से ही कोई आवाज सुनाई दे रही है, जो हाथरस सरीखी घटनाओं के लिए जिम्मेदार
है? यह सही नहीं है कि राजनीतिक दल और कुछ कथित बुद्धिजीवी अपने-अपने संकीर्ण एजेंडे के हिसाब से
दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध पर सड़क पर उतरना पसंद करते हैं। इससे भी खराब बात यह है कि अब यही
काम कुछ सामाजिक संगठन भी करने लगे हैं। इस तरह की भोंडी राजनीति से तो दलित समाज अपने को ठगा
हुआ ही महसूस करेगा।