-सिद्वार्थ शंकर-
रूस के खिलाफ लामबंद होते हुए बुधवार को संयुक्त राष्ट्र में अधिकतर देशों ने उससे यूक्रेन से बाहर निकलने की
मांग की। रूस ने यह मांग तो नहीं मानी, बल्कि रूसी सेना ने यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर में बमबारी फिर शुरू
कर दी है और इससे देश की राजधानी पर खतरा बढ़ गया है। रूस ने उसके प्रमुख रणनीतिक बंदरगाहों को भी घेर
लिया है। सात दिन से जारी रूसी आक्रमण में 10 लाख से अधिक लोग यूक्रेन छोड़ चुके हैं, जिससे यूरोपीय
महाद्वीप में शरणार्थी संकट बढ़ गया है। यूरोपीय देशों के बीच क्या चल रहा है, यह सभी को दिखाई दे रहा है,
लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच जंग में एशियाई देशों की भूमिका पर भी पूरी दुनिया की नजर है। भारत, चीन और
यूएई भले ही खुलकर अमेरिका और अन्य देशों के साथ न आए हों, मगर यूक्रेन पर रूसी हमले के मुद्दे पर
एशियाई देशों में बड़ा विभाजन देखने को मिला है। जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर आदि जैसे देशों ने
यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस की कड़ी निंदा की है। जापान ने रूस के खिलाफ प्रतिबंध भी लगाए हैं। लेकिन
चीन, भारत, आसियान, पाकिस्तान, और यूईए जैसे देशों ने रूस की निंदा करने से इनकार कर दिया है। दक्षिण-पूर्व
देशों के संघ आसियान में दस देश शामिल हैं। आसियान की तरफ से जारी बयान में यूक्रेन की प्रादेशिक अखंडता
का समर्थन किया गया, लेकिन रूस की निंदा नहीं की गई। आसियान के सदस्यों में से सिर्फ सिंगापुर ऐसा देश है,
जिसने अपने अलग बयान में रूस की निंदा की है। विश्लेषकों का कहना है कि ज्यादातर एशियाई देशों ने रूस से
अपने पुराने संबंधों और अपने हितों का ख्याल करते हुए इस मामले में रुख तय किया है। जापान और दक्षिण
कोरिया हमेशा से अमेरिकी खेमे के देश माने जाते हैं। स्वाभाविक रूप से उन्होंने इस मामले में सख्त तेवर दिखाए
हैं। जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने एलान किया है कि उनका देश रूस के सेंट्रल बैंक से लेन-देन को
सीमित कर देगा। साथ ही जापान ने अंतरराष्ट्रीय भुगतान के नेटवर्क-स्विफ्ट से रूस को निकालने का समर्थन किया
है। दक्षिण कोरिया ने एक करोड़ डॉलर की मानवीय मदद यूक्रेन भेजने की घोषणा की है। इसके पहले दक्षिण
कोरिया के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि व्यापार, उद्योग और ऊर्जा क्षेत्र में रूसी निर्यातों को नियंत्रित
करने के कदम उठाए जाएंगे। रूस को इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर की सप्लाई भी रोक दी जाएगी। दक्षिण
कोरिया ने भी रूस को स्विफ्ट सिस्टम से निकालने का समर्थन किया है। ताइवान हालांकि स्वतंत्र देश नहीं है,
लेकिन वहां की मौजूदा सरकार ने रूस के खिलाफ उठाए जा रहे तमाम कड़े कदमों को समर्थन किया है। ताइवान
के रुख को इसलिए महत्वपूर्ण समझा जा रहा है, क्योंकि वह चिप और सुपरकंडक्टर का सबसे बड़ा निर्माता है। इन
उत्पादों का निर्यात रोक देने के कारण रूस के उद्योग जगत को भारी नुकसान पहुंचेगा। ताइवान ने यूक्रेन के लिए
27 टन मेडिकल सहायता भेजने की घोषणा भी की है। दक्षिण-पूर्व एशिया में सिंगापुर अकेला देश है, जिसने रूस के
खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है। रूस के लिए सबसे बड़ी राहत की बात भारत और चीन का रुख रहा है।
ये दोनों बड़े देश हैं, जिनकी बात दुनिया भर में सुनी जाती है। चीन तो खुल कर इस मामले में रूस का समर्थन
कर रहा है।