एक बवाल, कई सवाल…?

asiakhabar.com | July 5, 2020 | 2:19 pm IST
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शिशिर गुप्ता

एक बहुत बड़ा सवाल है कि आखिर विकास का कैसे हुआ विकास…? सिर पर है किसका हाथ? किसके साए में
यह अपराधी अब तक फला-फूला। यह एक बड़ा एवं अनसुलझा सा सवाल है। जिसे समझने की जरूरत है। इस
सवाल को नजर अंदाज करने की कदापि जरूरत नहीं। आज का समय एवं आज की परिस्थिति में जो कुछ दृश्य
दिखाई दे रहा है वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। उत्तर प्रदेश के इतिहास में इतनी बड़ी सामूहिक घटना शायद
ही कभी घटी हो। अपराध के क्षेत्र की एक ऐसी घटना जिसने पूरे समाज को झिझोंड़ कर रख दिया। यह एक ऐसी
घटना है जिसने एक साथ अनेकों सवालों को जन्म दिया। जिसका उत्तर खोज पाना आसान कार्य नहीं है। एक
साधारण परिवार में जन्मा हुआ व्यक्ति अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाता है। उसके बाद दिन प्रतिदिन अपराध
की दुनिया में आगे बढ़ता रहता है। और एक दिन अपराध के शिखर पर विराजमान हो जाता है। यह कैसे संभव हो
सकता है क्योंकि यह कार्य एक दो दिन का नहीं है। यह गतिविधि दशकों से चल रही थी। एक अपराधी इतना बड़ा
अपना रसूख कैसे स्थापित कर सकता है। यह एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर आसानी के साथ खोज पाना
मुश्किल है। क्योंकि, जिस व्यक्ति के ऊपर इतने गम्भीर मुकदमें हों वह खुलेआम एक राजनेता की भाँति कैसे
अपना जीवन जी सकता है। क्या एक अपराधी इतना बड़ा रसूख बिना किसी बड़े सहयोग के स्थापित कर सकता है।
कदापि संभव नहीं। इसके पीछे कौन-कौन माननीय हैं इसका खुलासा होना नामुमकिन है। क्योंकि, जब एक
अपाराधी राजनेताओं के दम पर पुलिस पर रोब गाँठ कर अपना रसूख स्थापित कर सकता है साथ ही अपराध की
दुनिया में दिन प्रतिदिन एक के बाद दूसरा अपराध करता है और पुलिस किसी बड़े दबाव वश उस पर अंकुश लगाने
में विफल हो तो भला वही पुलिस उन बड़े हाथों का नाम कैसे उजागर कर सकती है। यह भी संभव नहीं कि बिना
किसी के दबाव वश किसी बड़े अपराधी को जेल से जमानत मिल जाए। किसी न किसी का दबाव होना स्वाभाविक
है। जबकि मौजूदा सरकार के मुखिया अपने भाषणों में जघन्य अपराधियों को उनके सही ठिकाने पर भेजने की बात
करते हैं। लेकिन यहाँ सही ठिकाना तो दूर जेल से भी ऐसे अपराधी को जमानत मिल जाती है। यह एक बड़ा सवाल
है। जब एक ऐसा अपराधी जिसने उस समय के दर्जा प्राप्त मंत्री की हत्या कर दी वह पुलिस बल के सामने।
अपराध की पराकाष्ठा यह रही कि इतना बड़ा अपराध वह भी थाने के अंदर अंजाम दिया गया था। और पुलिस
विभाग तब मूकदर्शक बना हुआ तमाशा देखता रहा। संदेह इस बात से पैदा होता है कि जब गवाही का विषय आया
तो किसी पुलिस वाले ने थाने के अंदर हुई हत्या की गवाही तक नहीं दी। जबकि इतना बड़ा अपराध थाने के अंदर
अंजाम दिया गया था। इसलिए यह सवाल पुलिस पर खड़ा होता है। यदि पुलिस इतनी ढ़िलाई न बरतती तो आज
यह दिन नहीं आता। आज इतनी बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों की जाने नहीं जाती। कुछ पुलिस वालों के ढुलमुल
रवैए के कारण ही आज पुलिस कर्मी हताहत हुए।
एक बड़ा सवाल चट्टान की भांति सामने आकर खड़ा हो गया है। पुलिस के आने की सूचना। साथ ही दबिश डालने
की सूचना। पुलिस संख्या की सूचना यह सब कैसे अपराधी तक पहुँच गई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि
पुलिस के द्वारा निर्धारित किए गए समय की सही और सटीक जानकारी एक अपराधी तक पल-पल कैसे पहुँचती
रही। इधर पुलिस अपनी योजना बनाती रही उधर अपराधी पुलिस की योजना के अनुसार अपना बल जुटाता रहा

और रणनीति तैयार करता रहा। क्योंकि, मार्ग में जेसीबी खड़ी कर देना पूरे मार्ग को बाधित कर देना। आसपास की
कई छतों के ऊपर अपने शातिर शूटरों को असलहों के साथ लैस करके सही स्थान पर पोजीशन के साथ बैठाल
देना। यह पूरा दृश्य अपने आपमें बहुत कुछ कहता है। यह कोई साधारण व्यक्ति की क्षमता का विषय नहीं है। इस
घटना को बहुत ही बड़े पैमाने पर अंजाम दिया गया। एक अपराधी का मनोबल बिना किसी बड़े सहयोग के कदापि
नहीं बढ़ सकता। इतना बड़ा अपराध इस ओर इशारा करता है कि अपराधी का मनोबल किस चरम पर विराजमान
है। ऐसा मनोबल बिना किसी बड़े हाथ के आशिर्वाद के बिना संभव ही नहीं है। किसी न किसी का सिर पर
आशिर्वाद होना तो तय है। यह अलग बात है कि नाम न उजागर हो सके।
घटना की रिपोर्ट के मुताबिक सिपाही जितेंद्र पाल के पैर, हाथ, सीने, कमर में पांच गोलियां मारी गई थीं। दो
गोलियां आर-पार निकल गई थीं। चौकी प्रभारी अनूप सिंह को सात गोलियां मारी गई थीं। उनके सीने, पैर और
बगल में गोली लगी थी। थाना प्रभारी महेश के चेहरे, पीठ और सीने पर पांच गोली और दारोगा नेबूलाल के चार
गोलियां लगी थीं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक थाना प्रभारी महेश यादव, चौकी प्रभारी मंधना अनूप सिंह, दारोगा
नेबूलाल और सिपाही जितेंद्र पाल के शरीर से ही गोलियां व उनके टुकड़े बरामद हुए हैं। सीओ देवेंद्र मिश्रा, सिपाही
राहुल, बबलू और एक अन्य को गोलियां छेदती हुई पार कर गई। सिपाही बबलू की कनपटी, चेहरे, सीने पर गोली
लगी और सिपाही राहुल के पसली, कमर, कोहनी और पेट में चार गोली लगीं जो आरपार निकल गईं। सुल्तान के
कमर, कंधे व सीने पर पांच गोलियां मारी गईं। बिकरू गांव में हमलावरों ने पुलिस टीम पर तमंचों के साथ एके-
47 से भी गोलियां बरसाई थीं। रीजेंसी अस्पताल में एक्सरे से पहले शहीद सिपाही जितेंद्र पाल के शरीर से एके-47
की एक गोली बरामद हुई। यही नहीं, पोस्टमार्टम के दौरान यह पता चला कि चार जवानों के शरीर से गोलियां
आरपार निकल गई थीं। अन्य चार जवानों के शरीर से 315 और 312 बोर के कारतूस के टुकड़े बरामद हुए हैं।
दारोगा अनूप को सबसे ज्यादा सात गोलियां मारी गईं। वहीं सीओ देवेंद्र मिश्रा के चेहरे, सीने व पैर पर सटाकर
गोली मारी गई। यह एक ऐसी घटना है जिसने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या पुलिस के सहयोग के
बिना अपराधी अपराध के चरम सीमा पर पहुँच सकता है…? क्या किसी विश्वासाघाती के बिना एक-एक सेकेण्ड की
सूचना प्राप्त होना संभव है..? क्या सिर पर किसी बड़े हाथ के बिना सत्ता के गलियारों में रसूख कायम होना संभव
है..? यह ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर मिल पाना नामुमकिन है। क्योंकि, यह उत्तर कौन देगा…? क्योंकि, बिना
समर्थन और सहयोग तथा क्षत्रछाया के बिना आज के युग में कुछ भी संभव नहीं है। यह सब कुछ तभी सुलभ एवं
संभव हो पाता है जब आशिर्वाद प्राप्त हो। इस घटना ने जहाँ पूरे प्रदेश की जनता को भयभीत कर दिया वहीं
कानून व्यवस्था के परखच्चे उड़ा दिए कि जब पुलिस विभाग और पुलिस अधिकारी ही सुरक्षित नहीं तो आम-
जनमानस अपनी सुरक्षा की गुहार किससे लगाए। साथ ही अपराधियों की सिस्टम में पहुँच की भी शंका पैदा करता
है। जिस प्रकार से पुलिस विभाग की गोपनीय सूचना लीक हुई वह अपने आपमें एक बहुत बड़ा सवाल है।


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