विकास गुप्ता
संसद में केंद्र सरकार द्वारा कृषि से जुड़े तीन विधेयक पास करने का लगातार विरोध हो रहा है। विरोधी राजनीति
दलों समेत कई किसान संगठन इसका विरोध कर रहे है। 25 सितंबर को इसी सिलसिले में किसान संगठनों द्वारा
पूरे देश में बंद का आह्वान किया गया है। चूँकि कृषि से जुड़े तीन विधेयक का विरोध कर रहे किसान संगठन
किसी न किसी राजनैतिक दलों से जुड़े है तो यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने बैठे बिठाए विरोधी दल को
विरोध करने व न चाहते हुए भी एक दूसरे को गले मिलाने का मौका दे दिया। किसानों के मुद्दे पर जिस तरह
विपक्ष एकजुट नजर आ रहा है वो एकता तो अरसे बाद नजर आ रही है। अब तक तो यही नजर आया है कि धारा
377 का मुद्दा हो, सी ए ए का मुद्दा हो या फिर चीन के साथ सीमा विवाद का, राहुल गांधी और सोनिया गांधी
जरूर मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाती रही है, लेकिन विपक्षी खेमे से कोई न कोई राजनीतिक दल कांग्रेस
नेतृत्व के खिलाफ ही खड़ा देखा गया है।
कृषि बिलों को लेकर कांग्रेस ने तो पहले से ही तय कर लिया था कि विरोध करना है, वैसे भी किसानों का मुद्दा
राहुल गांधी का सबसे पसंदीदा मसला रहा है। किसान यात्रा और खाट सभा से लेकर कर्जमाफी की मांग तक. संसद
में भी राहुल गांधी के शुरुआती भाषणों में कलावती प्रसंग ही याद किया जाता है और भट्टा परसौल गांव का
साथियों के साथ राहुल गांधी का दौरा भी खास तौर पर दर्ज है। कांग्रेस के साथ साथ बीएसपी नेता मायावती, आप
नेता अरविंद केजरीवाल ने भी विपक्षी दलों से इस मुद्दे पर मोदी सरकार के विरोध की अपील की थी। ममता
बनर्जी तो खैर शुरू से ही आक्रामक रूख अपनाये हुए हैं। राज्य सभा में हंगामे के चलते सस्पेंड किये गये 8 सांसदों
को एनसीपी नेता शरद पवार का साथ मिला है। सभापति एम. वेंकैया नाडयू ने तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन,
आप के संजय सिंह और कांग्रेस रिपुन बोरा और सीपीएम नेताओं सहित 8 राज्य सभा सांसदों को मॉनसून सत्र
तक निलंबित कर दिया है। विपक्ष ने सासंदों का निलंबन वापस लेने की मांग के साथ सदन की कार्यवाही का
बहिष्कार किया।
ये किसानों का ही मुद्दा है जब कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस साथ खड़े देखने को मिल रहे हैं। सोनिया गांधी की
तरफ से गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में ममता बनर्जी के साथ सम्मान भाव देखने को जरूर मिला था,
लेकिन तभी कांग्रेस की तरफ से अधीर रंजन चौधरी को पश्चिम बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया।
अधीर रंजन चौधरी तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी माने जाते हैं। कांग्रेस के तृणमूल कांग्रेस
के साथ गठबंधन न करने और लेफ्ट के साथ जाने के भी पक्षधर रहे हैं. ये नियुक्ति तो ममता बनर्जी को फूटी
आंख नहीं सुहा रही होगी.
बावजूद ये सब होने के जब कृषि बिलों के विरोध में जो सांसद सभापति के करीब पहुंचे, माइक तोड़े और रूल बुक
फाड़े उनमें तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह साथ साथ डटे रहे। हो सकता है विरोध
का मुद्दा एक होने और सभी के उग्र रूप धारण कर लेने के कारण अलग अलग दलों के ये सांसद साथ खड़े नजर
आये हों, लेकिन आठों को एक साथ सस्पेंड कर सबको एक साथ संसद परिसर में धरना देने का मौका दे दिया
गया। ममता बनर्जी ने बहुत कोशिश की कि कांग्रेस सरकार के खिलाफ अपनी मुहिम में आम आदमी पार्टी को भी
शुमार कर ले, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को एक दो मौकों को छोड़ दें तो हमेशा ही इस बात से परहेज रहा, लेकिन
किसानों का मुद्दा ऐसा हो गया कि सभी साथ देखे जा सकते हैं। सांसदों के व्यवहार के खिलाफ उप सभापति
हरिवंश ने एक दिन का उपवास रखा तो उनके काउंटर में एनसीपी नेता शरद पवार ने भी एक दिन का उपवास रख
कर विपक्ष के आठों सांसदों का सपोर्ट किया है। ये भी देखना काफी दिलचस्प है कि ये विपक्षी एकता भी तभी
देखने को मिली है जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों ही देश से बाहर हैं ,क्या ये महज संयोग है? कहीं
ऐसा तो नहीं विपक्षी दलों के एकजुट होने में कांग्रेस नेतृत्व ही बाधक बन रहा हो?