इजरायल ने प्लाज्मा थैरेपी विकसित की जो एंटी बॉडीज के ब्लड ट्रांसमिशन पर आधारित है। किंतु यह अभी
अंतिम चरण में नहीं पहुंची है। विश्व भर में इस समय 40 दवाएं परीक्षण के अधीन हैं अथवा टेस्टिंग के चरण में
हैं। कोरोना की दवा इजाद करने के लिए विश्व भर के देशों में एक तीव्र दौड़ लगी हुई है, किंतु आम तौर पर दवा
के विकास में दो दशक लग जाते हैं। जल्द से जल्द जो संभावना है, उसके अनुसार अगले साल की पहली तिमाही
में कोरोना के इलाज के लिए कोई दवा उपलब्ध हो जाएगी। यह अद्भुत है कि विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों ने
इस वैज्ञानिक दौड़ को छीन लिया है। वे इसे अपने चुनावी लक्ष्यों के लिए प्रयोग कर रहे हैं। अमरीका ने ऐसा
किया। उधर भारत के कुछ राज्यों में चुनावी दंगल में इस दवा के निशुल्क वितरण का वादा किया गया…
इस समय विश्व कोरोना वायरस नामक विषाणु से हो रही मौतों के कारण इसके आघात के नीचे पिस रहा है।
चिंताजनक यह है कि अब तक यह भारी तबाही मचा चुका है और इसका कोई इलाज ढूंढा नहीं जा सका है। इस
विषाणु की उत्पत्ति चीन के एक छोटे शहर वुहान में हुई मानी जाती है जहां उन्होंने कई प्रकार के वायरस पर
अध्ययन व अनुसंधान किया। इसे नियंत्रित करके गर्म जोन में सीमित किया जा सकता था, जैसा कि बाद में
किया गया, लेकिन चीन ने इस सूचना को दबा दिया। परिणाम यह हुआ कि यह वायरस वहां से पूरे विश्व में फैल
कर अनियंत्रित हो गया। यह वास्तव में एक आपराधिक कार्य था क्योंकि विषाणु के अनुसंधान को छिपाया गया
और इसे नियंत्रित करने के संभावित प्रयास भी नहीं किए गए। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन दोषी देश चीन के
खिलाफ कोई कार्रवाई करने में विफल रहा है। विश्व भर में इस वायरस के कारण हुई मौतों का सर्वाधिक आंकड़ा
अमरीका में रिकार्ड किया गया है। हाल में अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की हार
के मुख्य कारणों में एक यह भी है कि वह इस महामारी को फैलने से रोकने में विफल रहे हैं। हास्यास्पद बात यह
थी कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा निर्मित कोरोना की दवाई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की सप्लाई
अपने देश को न करने पर भारत को धमकी भरे लहजे में इस दवाई की मांग की थी। नीतिगत निर्णय तथा अन्य
प्रतिबद्धताओं के कारण भारत पहले इसकी सप्लाई नहीं कर पा रहा था। भारत के पास क्षमता थी तथा अमरीका
को इसकी जरूरत थी।
भारत में बड़े पैमाने पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का निर्माण संभव था, जबकि उस समय अमरीका के पास ऐसी
क्षमता नहीं थी। इसके कारण ट्रंप इतने परेशान हुए कि उन्होंने भारत को चेतावनी दी कि वह इसकी अमरीका को
सप्लाई करे अन्यथा वह कार्रवाई करेंगे। यह दवा न्यूमोनिया के लिए बनी है, जबकि इसका प्रयोग अन्य इलाजों में
भी किया जा सकता है। आरंभ में ऐसा लगा कि यह दवा कोरोना वायरस के इलाज के लिए सटीक उपचार है,
लेकिन बाद में यह सिद्ध हो गया कि यह दवा केवल इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए ही है। हमें वैक्सीनेशन की जरूरत
थी। इस बीच बाबा रामदेव की एक दवा के रूप में कोरोना के उपचार को लेकर उम्मीद जगी, लेकिन बाद में यह
दवा भी केवल इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में प्रमाणित हुई। इसके बावजूद भारतीय चिकित्सा पद्धति के रूप में
आयुर्वेद विश्व के संज्ञान में आया। बाजार में इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाओं की एक तरह से बाढ़ आ गई। विविध
रूपों में अश्वगंधा व गिलोय तेजी के साथ बिकने लगे। काढ़ा और जूस पीने का एक फैशन सा चल निकला। भारत
के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशी प्रणाली के प्रचार में अपने आपको झोंक दिया। मैंने भी एसिड रिफलक्स का प्रयोग
किया। इससे इलाज तो नहीं हो पाया, किंतु डा. वीरेंद्र शर्मा की सलाह पर मैंने इसका इस्तेमाल किया और इसे
बहुत प्रभावकारी पाया। यह एक चमत्कार था। देशी दवा प्रणाली में अनुसंधान बड़े स्तर पर होना चाहिए।
दवाओं की वैज्ञानिक वैधता ली जानी चाहिए तथा परिणाम घोषित किए जाने चाहिएं। देशी दवा प्रणाली में आधुनिक
विज्ञान के सिद्धांतों का प्रयोग संभव क्यों नहीं है? आयुर्वेदिक प्रणाली ने कोरोना के इलाज में भी मदद की है,
लेकिन वैक्सीन अंतिम लक्ष्य है। अमरीका के मंत्री माइक पोंपियो पहले ही संकेत दे चुके हैं कि दवा के विकास में
भारत और अमरीका मिलकर सहभागिता कर सकते हैं। भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। बड़ी
संख्या में भारतीय कंपनियां वायरस से लड़ने के प्रयासों में लगी हुई हैं। अमरीका व यूरोपियन देशों को दवाओं की
जितनी कुल सप्लाई होती है, उसका आधा भाग अकेले भारत अपने उत्पादों के रूप में सप्लाई करता है। भारत
ब्रिटिश आक्सफोर्ड वैक्सीन प्रोजेक्ट से भी एसोसिएट है। हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक परीक्षण कर रही है।
यह काम विसकोंसिन विश्वविद्यालय के सहयोग से किया जा रहा है।
इजरायल ने प्लाज्मा थैरेपी विकसित की जो एंटी बॉडीज के ब्लड ट्रांसमिशन पर आधारित है। किंतु यह अभी
अंतिम चरण में नहीं पहुंची है। विश्व भर में इस समय 40 दवाएं परीक्षण के अधीन हैं अथवा टेस्टिंग के चरण में
हैं। कोरोना की दवा इजाद करने के लिए विश्व भर के देशों में एक तीव्र दौड़ लगी हुई है, किंतु आम तौर पर दवा
के विकास में दो दशक लग जाते हैं। जल्द से जल्द जो संभावना है, उसके अनुसार अगले साल की पहली तिमाही
में कोरोना के इलाज के लिए कोई दवा उपलब्ध हो जाएगी। यह अद्भुत है कि विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों ने
इस वैज्ञानिक दौड़ को छीन लिया है। वे इसे अपने चुनावी लक्ष्यों के लिए प्रयोग कर रहे हैं। अमरीका ने ऐसा
किया। रूस ने भी निशुल्क वैक्सीन की घोषणा की। उधर भारत के कुछ राज्यों में चुनावी दंगल में इस दवा के
निशुल्क वितरण का वादा किया गया। इस दवा के दाम इतने ऊंचे हैं कि राजनेता सोचते हैं कि अगर यह जनता
को निशुल्क दी जाए तो वे अपने वोट पक्के कर सकते हैं। अभी कोरोना की दवा का निर्माण नहीं हुआ है, लेकिन
इसकी मांग निश्चित रूप से एक बड़ा आकर्षण बनी रहेगी।
मानवजाति का भविष्य वैक्सीन तथा इसके प्रयोग पर निर्भर करेगा। इसी के साथ हमें यह बात नहीं भूलनी है कि
अभी सिर्फ लॉकडाउन हटा है, कोरोना वायरस अभी खत्म नहीं हुआ है। यह किसी पर भी अटैक कर सकता है।
अमरीका का उदाहरण हमारे सामने है। पूरी तरह विकसित देश होने के बावजूद वहां स्थिति इस कदर खराब हो
चुकी है कि डोनाल्ड ट्रंप को चुनाव तक हारना पड़ा। सौभाग्य से भारत इससे निपटने में काफी हद तक सफल रहा
है। पूरी सजगता व सतर्कता के बल पर ही ऐसा परिणाम हासिल किया जा सकता है। इसलिए हमें अभी भी सतर्क
रहने की सख्त जरूरत है। विशेषकर इसलिए कि अगले कुछ दिन त्योहारों के हैं। ऐसे अवसरों पर बाजारों में भीड़
उमड़ आती है। इस तरह की भीड़ से हमें बचना है। जब भी घर से बाहर निकलें तो मास्क जरूर लगाएं। बार-बार
साबुन अथवा सेनेटाइजर से अपने हाथ साफ करते रहें। कोरोना वायरस से बचने का यही एकमात्र उपाय है।