उत्तर प्रदेश में कई वर्षों से शस्त्र लाइसेंसों पर रोक लगी हुई थी। हाल ही में प्रदेश सरकार ने यह रोक हटाई है। जिसपर जनता सरकार को बधाई दे रही है। लेकिन लगता है के जल्द ही जनता सरकार की इस नीति पर सरकार को बधाई देने के बजाये बधिया करने पर उतारू हो जायेगी। सन 2019 के आम चुनावों में सरकार को बधिया करने के अन्य कारणों के साथ साथ यह भी एक मुख्य कारण होगा। क्यों?
क्यूंकि उत्तर प्रदेश में लम्बे अरसे के बाद भाजपा की सरकार आई है। इससे पहले सपा, बसपा की सरकारें थी। यह कोई छिपा हुआ तथ्य नहीं है की उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं, जनप्रतिनिधियों की सिफारिश पर ही सश्त्र लाइसेंस बनते हैं। अतः सपा, बसपा की सरकारों में सब गुंडे, मवालियों, बवालियों ने अपने लाइसेंस बनवा लिए। यूं वो जुगाड़ू सरकारें थी, अतः कुछ भाजपा से जुड़े गुंडे बदमाशों ने भी जुगाड़ करके उन सरकारों में लाइसेंस बनवा लिए होंगे। भले व्यक्ति टापते रह गए। अब जब प्रदेश में भाजपा की सरकार आई और शस्त्र लाइसेंस खुले तो भले लोगों ने सोचा के कुछ दिनों बाद चुनाव आचार संहिता में लाइसेंसों पर फिरसे रोक लग जायेगी। इसके बाद जब तक यह रोक हटेगी तब तक पता नहीं दोबारा सपा, बसपा की सरकार न आजाये, और तुम फिर टापते न रह जाओ, तो उन्होंने लाइसेंस खुलने के इस अवसर को कुम्भ स्नान की परभी लुटने जैसा अवसर समझकर लाइसेंस के फार्म भरने का पापियों के पाप धुलने जैसा हल्ला बोल दिया। जिनमें से 31 दिसंबर 2018 तक महज़ लगभग एक दर्जन लाइसेंस बने हैं।
हमारे जपद गौतम बुद्ध नगर में ही लगभग दस हज़ार लोगों ने फार्म भरे हैं। यूं हमारी केंद्र सरकार ने रिश्वत लेने के साथ साथ रिश्वत देना भी कानूनन अपराध घोषित कर दिया है, मगर हम इस कानून से सहमत नहीं हैं। वस्तुतः रिश्वत दी नहीं जाती, बल्कि रिश्वत देने के लिए मजबूर किया जाता है। और इसी मजबूरी के तहत हर फार्म भरने वाले के विभिन्न स्थानों से जांच होकर फार्म कम्पलीट होने तक, लगभग पच्चीस हज़ार रुपए खर्च होते हैं। महीनों की भागदौड़ अलग से। इतनी मशक्कत के बाद ऊँगली पर गिनने लायक लोगों को ही लाइसेंस दिए जायँगे। इसके बाद आचार संहिता लागू हो जायेगी। अतः शेष लोग कुछ इस तरह देखते रह जाएंगे जैसे आंधी में गधा। तब क्या वो आगामी चुनाव में भाजपा पर खुन्नस निकालते हुए अपनी गधे जैसी दुल्लत्ती नहीं चलाएंगे? गौर परक है के लाइसेंस ऐरे – गैरे लोग नहीं बनवाते, प्रभावशाली लोग ही बनवाते हैं जो अच्छे वोट कटवा साबित हो सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक भले ही हाल में हुए चुनाव में तीन राज्यों में भाजपा की हार के उल जलूल कारणों पर अपने कुलाबे भिड़ाते रहें। जिनमें मुख्य कारण वो राफेल में घपले के कांग्रेसी बलवे को मान रहे हैं। लेकिन यह कोई बड़ा कारण नहीं था। क्यूंकि जिस तरह एक ज़माने में अटल, अडवाणी, वी पी सिंह, एक अंटोनी जैसे गिने चुने नेताओं की ईमानदारी पर जनता शक नहीं कर सकती थी, उसी तरह कांग्रेस के बड़े नेता, चाहे नंगा होकर नाचे, अथवा तत्ते तवे पर चूतड़ रख कर शपथ खाएं तब भी आम जनता मोदी, योगी, पर्रिक्कर जैसे नेताओं की ईमानदारी पर शक नहीं कर सकती। न ही कर्जमाफी जैसा झांसा कोई बड़ा गुल खिला सकता था। वस्तुतः भाजपा की हार का मुख्य कारण इस एससी/एसटी एक्ट में संशोधन ही था। हमारे न्याय तंत्र की मूल धरना है के ‘भले ही सौ अपराधी बच कर निकल जाएँ, लेकिन एक भी निरपराध को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए।’ माननिय सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय की इसी मूल धारणा को मज़बूत करते हुए उस ‘काले कानून’ को समाप्त करने की तरफ कदम बढ़ाया था। जिसमें रिपोर्ट दर्ज़ होते ही बिना जांच किसी निरपराध को भी जेल में ठूंसने का ‘अंधेर नगरी’ जैसा प्रावधान था। मगर हमारी केंद्र सरकार ने ऐंवे ही पड़ा हुआ डंडा उठा कर स्वयं अपने ही पिछवाड़े सरका लिया और अब करहा रही है। पर कहावत है न की ‘अपने द्वारा किये हुए ऐब का कोई इलाज नहीं।’
इसी तरह उत्तर प्रदेश सरकार ने बेमतलब का पंगा यह लाइसेंस खोलने का ले लिया। यूं समझो की पड़ा हुआ डंडा……… किसी ने कहा है के ‘कभी कभी कुछ करने से बेहतर कुछ ना करना होता है।’ अरे इससे तो यदि सरकार आम चुनावों तक इन लाइसेंसों को नहीं खोलती तभी अच्छा रहता। लोगों की लाइसेंस की इच्छा यूं ही दबी रह जाती। अब एक तो लोगों की बलवती इच्छा पर कुठाराघात हुआ दूसरे उनकी चप्पल घिसाई और खीसा साफ़ हुआ। भला वह अपनी इस बिलबिलाहट को चुनाव तक कैसे भूल पाएंगे? वो अपनी इस खीज को चुनावों में ही मिटायेंगे। यह तो सरकार ने कुछ ऐसा वोट कटवा कदम उठाया है के – ‘जान पूछ अवगुण करे, तो कुशल कहाँ से होये।’ या फिर कहते बनता है के –
‘खार निकाले पाँव से अपने, और आगे आगे डालते जाएँ।
फिर कहते हैं कौन हमारी, राह में कांटे बोता है।’
उधर यदि लोगों के पर्याप्त संख्या में लाइसेंस बन जाते हैं तो ‘हल्दी लगे न फिटकरी रंग भी आये चोखा’ की तर्ज़ पर सत्ताधारी भाजपा को इससे दोहरा लाभ होगा। एक तो जिन लोगों के लाइसेंस बनेंगे वो सत्ताधारी पार्टी के एहसान का बदला चुनाव में वोट के रूप में देंगे। दूसरे सरकार को अच्छा ख़ासा आर्थिक लाभ भी होगा। दो चार हज़ार लाइसेंस फीस के साथ साथ सरकार ने शर्त रखी है के नए लाइसेंस धारक को पचास हज़ार रुपए डाकखाने में फिक्स्ड डिपाजिट में जमा करने होंगे। जो प्रदेश के विकास कार्यों में काम आएंगे। यदि हमारे ज़िले गौतम बुध नगर जैसे व्यापारियों, उद्योगपतियों से भरे ज़िले में दस हज़ार लाइसेंस बनते हैं तो सरकार को घर बैठे पचास करोड़ रुपए विकास के लिए मिल जाएंगे। इस संपन्न जनपद में यदि एफडी की सीमा एक लाख भी कर दी जाए तो लोग उतना भी जमा करने से पीछे नहीं हटेंगे। तब सरकार को सौ करोड़ रुपए विकास के लिए मिल जाएंगे एवं सरकारी आर्डिनेंस फैक्ट्री के असलहों की बिक्री का लाभ अलग से। अतः हमारे जनपद के सत्ताधारी पार्टी के जन प्रतिनिधियों को यदि आगामी चुनाव में अपनी इज़्ज़त और सरकार की लुटिया डूबने से बचानी है, उधर अपने वर्तमान एम पी डॉक्टर महेश शर्मा जी को चुनाव बाद अपनी ही नब्ज़ देखने से बचाना है तो माननीय मुख्य मंत्री जी से मिलकर लाइसेंस पात्रता की जो आठ श्रेणियां सरकार ने निर्धारित की है, इनके इच्छित व्यक्तियों के कम से कम आधे तिहाई लोगों के लाइसेंस बनवाने के लिए तो आदेश करवा ही दें। वर्ना कोई बहाना नहीं चलने वाला ‘ये जो पब्लिक है यह सब जानती है।’ तुम्हारी तो ‘गई भैंस पानी में’ फिर चुनाव बाद हमसे यह मत कहना के -‘पत्रा बोला यूं, फिर कुनबा डूबा क्यों’। यदि तुम बिना विचारे ऐसे ही ऊल जलूल काम करते रहे तो जनता यूं ही कहेगी के यह भगवा वाले मुश्टण्डे राजनीति के हथकंडे नहीं जानते। अतः इन्हे धूनी रमाकर बैठ जाना चाहिए।