-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट-
जब से सन 2022 के विधानसभा चुनाव की सक्रियता शुरू हुई है, तब से भाजपा में रह रहे कांग्रेस के बागियों के
सुर ही बदल गए है।कभी कोई मंत्री गुर्राता है तो कभी कोई।काबीना मंत्री यशपाल आर्य तो अपने विधायक बेटे के
साथ कांग्रेस में पुनः शामिल हो गए है। जिन्होंने लगभग सात साल पहले अपनी ही सरकार को गिराकर भाजपा में
शामिल होकर सत्ता सुख पाया वे अविश्वास के भंवर में फंसकर अब आशंकित है कि कही उनके टिकट न कट
जाए!इसी लिए ये बागी या तो अपने टिकट सुनिश्चित चाहते है या फिर निजी स्वार्थ में पाला बदलकर फिर से
कांग्रेस में जाने की जुगत भिड़ा रहे है। सात साल पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा के हुए इन नेताओ, जिनमें से धामी
सरकार में भी पांच मंत्री (अब चार)और कई विधायक शामिल हैं, अब अपनी एकजुटता दिखाकर दबाव की राजनीति
कर रहे हैं, जिससे ऐसे स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि बागियों की खिचड़ी अलग से पक रही है।पार्टी के अंदर एक
अलग समूह के वजूद में होने की स्वीकारोक्ति स्वयं कैबिनेट मंत्री डा हरक सिंह रावत और विधायक उमेश शर्मा
काऊ कर चुके है। ठीक चुनाव से पहले इन बागी मंत्रियों व विधायकों का यह गुट पार्टी पर दबाव बनाकर अपने
सुरक्षित भविष्य की गारंटी लेने के पक्ष में है,या फिर पाला बदलकर अपना अगला भविष्य सँवारना चाहता है।अतीत
में झांके तो उत्तराखंड कांग्रेस में बिखराव की शुरुआत सन 2014 में पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज के भाजपा का
दामन थाम लेने से हो गई थी। वही सन 2016-17 में कांग्रेस के 11 विधायक हरीश रावत सरकार को गच्चा देकर
भाजपा में शामिल हो गए थे।जो हरीश रावत सरकार के गिरने का कारण भी बने। भाजपा ने कांग्रेस से आए इन
बागियों को पूरा सम्मान दिया और चुनाव में टिकट देने के साथ ही जीतने पर कइयों को मंत्री पद से नवाजा।
हालांकि दो बागी चुनाव हार भी गए थे। इनमें से पांच विधायकों सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य,
सुबोध उनियाल और रेखा आर्य को भाजपा ने मंत्री बनाया।गत मार्च माह में भाजपा ने चार साल तक कुछ भी
करके न दिखाने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर उनके स्थान पर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री
बनाया।लेकिन वे भी कोई करिश्मा नही कर पाए और भाजपा ने बिना देरी किये चार महीने के अंदर ही फिर से
तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुनः नेतृत्व परिवर्तन करते हुए जुलाई 2021 में पुष्कर सिंह धामी को सरकार की
कमान सौंपी दी। नेतृत्व परिवर्तन के इन दोनों अवसरों पर कांग्रेस से भाजपा में आए बागी विधायकों को उम्मीद
थी कि वरिष्ठता के नाते मुख्यमंत्री पद पर उन्हें बैठाया जा सकता है, लेकिन भाजपा हाईकमान ने उन्हें कोई
अहमियत नहीं दी। तभी तो पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण से ठीक पहले इन विधायकों ने
नाराजगी भी दिखाई। जिनमें कांग्रेस पृष्ठभूमि के दो मंत्री सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत भी शामिल थे।तब
इनकी नाराजगी दूर करने के लिए इन्हें व इनके साथ यशपाल आर्य को भी अतिरिक्त विभाग देकर सरकार में
उनका कद बढ़ाया गया। यह पहला अवसर था जब कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं के बीच एकजुटता नजर आई।
हाल ही में देहरादून की रायपुर सीट के विधायक उमेश शर्मा काऊ के अपनी ही पार्टी के नेताओं पर भड़कने के बाद
एक नया विवाद खड़ा हो गया। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत विधायक उमेश शर्मा की पैरवी में उतर आए जिससे
भाजपा के अंदर की खींचतान सड़को पर आ गई। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उत्तराखंड आकर कहा
कि जो विधायक परफार्मेंस के पैमाने पर खरा नहीं उतरेंगे, उनका टिकट काटा भी जा सकता है। कांग्रेस पृष्ठभूमि
के विधायकों को कहीं न कहीं टिकट कटने का भय सता रहा है । कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने पर उनसे किया गया
वादा हालांकि भाजपा ने निभाया था, मगर यह वायदा आगे भी कायम रहेगा, ऐसा नही लगता, ये नेता इसी बात
का विश्वास चाहते हैं।उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने चुनाव प्रभारी एवं सह
प्रभारी नियुक्त कर ही दिए हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रल्हाद जोशी को चुनाव प्रभारी, लाकेट
चटर्जी और सरदार आरपी सिंह को चुनाव सह प्रभारी नियुक्त किया है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी कर्नाटक से
लोकसभा की धारवाड़ सीट से सांसद हैं। वह सन 2004 से लगातार इस सीट का प्रतिधिनिधित्व कर रहे हैं। सह
प्रभारी लाकेट चटर्जी बंगाल की हुगली सीट से सांसद हैं। सन 2019 में वे पहली बार लोकसभा के लिए चुनी गईं ।
चटर्जी बंगाल भाजपा की महासचिव भी हैं और उन्हें ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवरों के लिए
जाना जाता है। दूसरे सह प्रभारी सरदार आरपी सिंह पंजाब से हैं,जो भाााज के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं।
कांग्रेस की तुलना में अब भाजपा में जाति और क्षेत्रीय संतुलन गड़बड़ा गया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन
कौशिक मैदान से हैं। वही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कर्मस्थली तराई क्षेत्र है। हरिद्वार से सांसद रमेश
पोखरियाल निशंक भी केंद्रीय कैबिनेट से बाहर हो गए। जिससे गढ़वाल , कुमाऊं, मैदान और पहाड़ में एक
राजनीतिक असंतुलन सा पैदा हो गया है, जो इस चुनाव में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
इसी कारण भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को बदलने की भी अटकलें चलती रही।दरअसल पर्वतीय मूल के
भाजपाई उन्हें मैदानी होने के कारण ज्यादा हजम नही कर पा रहे है। जातिगत समीकरणों में मुख्यमंत्री के ठाकुर
होने के कारण संगठन में ब्राह्मण चेहरा नेतृत्व कर रहा है।लेकिन पर्वतीय मूल के भाजपाई चमोली विधायक महेंद्र
भट्ट, धर्मपुर सीट से विधायक विनोद चमोली, पूर्व दायित्व ज्योति गैरोला और तीन बार के दायित्व वाले बृजभूषण
गैरोला का नाम मदन कौशिक के स्थान पर उछाल रहे है।भाजपा के भीतर शह मात का यह ऐसा खेल खेला जा
रहा है,जिससे भाजपा में तीन धड़े साफ दिखाई दे रहे हैं। एक धड़ा जो कांग्रेस से आये लोगों का है तो दूसरा पुराना
भाजपाइयों का और तीसरा पर्वतीय व मैदानियो का, ऐसे में आपसी कलह सबके सामने आ रही है।कांग्रेस से भाजपा
में आये विधायक पार्टी में कुछ लोगों पर उपेक्षा का आरोप लगाकर और उनको पार्टी से निकालने की साजिश के
तहत उनके खिलाफ माहौल बनाने का आरोप लगा रहे हैं।वे स्पष्ट कह रहे है कि अगर उनकी समस्याओं का हल
नहीं निकलता है तो वे कुछ ठोस कदम उठाने को मजबूर हो जाएंगे।भाजपा में एक ऐसा भी धड़ा है जो भाजपा में
शामिल हुए कांग्रेसियों को बाहर करने की जुगत में लगा है। यह हालत तब है जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी
नड्डा और राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष हर महीने उत्तराखंड का दौरा कर संगठन और सरकार की लगाम
कस रहे हैं। मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस से भाजपा में आये उमेश शर्मा काऊ एक बीजेपी कार्यकर्ता
वीर सिहं पर भड़क गए थे, दोनों में काफी देर गर्मागर्मी होती रही और हाथापाई तक की नौबत आ गयी थी।
विधायक ने जिला पंचायत सदस्य पर उनके खिलाफ माहौल बनाने और उनका दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया
था।वहीं जिला पंचायत सदस्य का आरोप है कि विधायक किसी कार्यकर्ता को कुछ नही समझते और उनका ये
व्यवहार कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ता है। विधायक काऊ का कहना है किस तरह से उनको सीट से बेदखल किया
जाए ,इसके लिए उनके ही विधानसभा क्षेत्र रायपुर में उनके ख़िलाफ़ माहौल बनाया जा रहा है।इसी मुद्दे पर उमेश
शर्मा काऊ दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी से
मिले। उन्होंने साफ कहा कि अगर उनकी समस्या का हल नही किया गया तो उनका भी संगठन है और वो उनसे
बात करके आगे का निर्णय लेंगे। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत भी इस मामले को लेकर बहुत नाराज हैं और
उन्होंने कहा कि जब हमें बीजेपी में लाया गया था तो अमित शाह द्वारा सम्मान की सुरक्षा की पूरी गारंटी दी गयी
थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं।हरक सिंह रावत ने कहा कि पार्टी के भीतर एक धड़ा ऐसा है जो यह चाहता है कि हम
सब बीजेपी छोड़ कर चले जाएं। मंत्री हरक सिंह रावत ने यह मामला राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने भी
उठाया था।उन्होंने ये बातें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी बता दी हैं कि हमें कुछ लोग पार्टी छोड़ने के लिए
मजबूर कर रहे हैं और अगर ऐसे ही चलता रहा तो ये पार्टी के लिए अच्छा संकेत नही हैं।सन 2011 में भाजपा
सरकार में मुख्यमंत्री रहे डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने 4 नए जिलो की घोषणा की थी, लेकिन 10 साल बाद भी
ये नए जिले अस्तित्व में नहीं आ पाए हैं। चुनावी साल में एक बार फिर स्थानीय लोग नए जिलों की मांग कर
रहे हैं। स्थानीय लोगों के अलावा इन क्षेत्रों के विधायक भी पृथक जिले बनाने की मांग को लेकर विधानसभा में
सरकार की मुश्किलें बढ़ाने का काम कर रहे हैं।जिन 5 जिलो उत्तरकाशी से यमुनोत्री, गढ़वाल से कोटद्वार, अल्मोड़ा
से रानीखेत ,हरिद्वार से रुड़की और पिथौरागढ़ से डीडीहाट की मांग हो रही है, उनमे 4 क्षेत्र से वर्तमान में बीजेपी
के ही विधायक चुनकर आए हैं। यमुनोत्री, कोटद्वार, रुड़की ,डीडीहाट सीट पर बीजेपी के ही विधायक प्रतिनिधित्व
कर रहे हैं। जबकि रानीखेत सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में बीजेपी के सामने चुनाव में जाने से पहले इन
विधायकों की साख जो दांव पर लगी है,को बचाने की मुश्किले बढ़ गई है। अगर बीजेपी इन जिलों को लेकर स्थिति
स्पष्ट नहीं करती तो इन क्षेत्रों में विधायकों को चुनाव के दौरान जनता के विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
इस तरह से विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को इन चारों सीटों पर हार-जीत का गणित भी बिठाने की चुनौती
सामने है।रानीखेत से कांग्रेस विधायक करन माहरा ने बताया कि क्षेत्र में जनपद की मांग को लेकर लोग सड़कों पर
उतर गए हैं। उन्होंने कहा कि वे जिलों की मांग को लेकर विधानसभा में भी सवाल उठा रहे हैं। जिसमें सबसे अहम
जिले का सीमाकंन और मुख्यालय तय करना भी है। करन माहरा ने आरोप लगाया कि तत्कालीन सरकार ने चुनावी
फायदे के लिए पृथक जिलों की घोषणा तो कर दी लेकिन न तो इसका सीमांकन और नहीं मुख्यालय तय किया
जिसको लेकर स्थानीय लोगों में विरोध है। उन्होंने इस मुद्दे पर सरकार से तुंरत निर्णय लेने की मांग की। यमुनोत्री
विधायक और भाजपा नेता केदार सिंह रावत ने स्थानीय जनता की भावनाओं को देखते हुए नए जिले का समर्थन
किया। और विधानसभा में इस मसले पर समर्थन करने की बात की है।वही रुड़की को जिला बनाने का मुद्दा भी
समय समय पर गूंजता रहा है। लेकिन सवाल ये भी उठ रहा है कि जब 5 में से 4 विधायक सत्ताधारी दल के ही
इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तो बीजेपी अब तक इस मुद्दे पर कोई फैसला क्यों नहीं ले पाई हैा जिसका
नुकसान भाजपा को इस चुनाव में उठाना पड़ सकता है।