-डा. वरिंदर भाटिया-
प्रधानमंत्री ने दो अगस्त को इलेक्ट्रॉनिक वाउचर पर आधारित एक डिजिटल पेमेंट सिस्टम ‘ई-रुपी’ लांच किया है।
यह देश की अपनी डिजिटल करंसी के रूप में भारत का पहला कदम है। ई-रुपी एक कैशलेस और डिजिटल पेमेंट्स
सिस्टम मीडियम है जो एसएमएस स्ट्रिंग या एक क्यूआर कोड के रूप में बेनेफिशयरीज को प्राप्त होगा। यह एक
तरह से गिफ्ट वाउचर के समान होगा जिसे बिना किसी क्रेडिट या डेबिट कार्ड या मोबाइल ऐप या इंटरनेट बैंकिंग
के खास एस्सेप्टिंग सेंटर्स पर रिडीम कराया जा सकता है। कहा जा रहा है की ई-रुपी वाउचर देश में डिजिटल
ट्रांजैक्शन और डीबीटी को बढ़ावा देने में भूमिका निभाएगा। इससे जनता को लक्ष्यपूर्ण, पारदर्शी और लीकेज-फ्री
डिलीवरी में मदद मिलेगी। ई-रुपी इसका उदाहरण है कि भारत कैसे डिजिटल दुनिया में आगे बढ़ रहा है। इस
प्लेटफॉर्म को नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई), डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज,
मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर और नेशनल हेल्थ अथॉरिटी ने लांच किया है। यह सिस्टम पर्सन-
स्पेशिफिक और पर्पज स्पेशिफिक होगा। इस सिस्टम को एनपीसीआई ने अपने यूपीआई प्लेटफॉर्म पर बनाया है
और सभी बैंक ई-रुपी जारी करने वाले एंटिटी होंगे यानी बैंक इसे जारी करेंगे। किसी भी कॉरपोरेट या सरकारी
एजेंसी को स्पेशिफिक पर्सन्स और किस उद्देश्य के साथ भुगतान किया जाना है, इसे लेकर सहयोगी सरकारी या
निजी बैंक से संपर्क करना होगा। बेनेफिशयरीज की पहचान मोबाइल नंबर के जरिए होगी और सर्विस प्रोवाइडर को
बैंक एक वाउचर आवंटित करेगा जो किसी खास शख्स के नाम पर होगा जो सिर्फ उसी शख्स को डिलीवर होगा।
अमरीका में एजुकेशन वाउचर्स या स्कूल वाउचर्स का एक सिस्टम है जिसके जरिए सरकार स्टूडेंट्स की पढ़ाई के
लिए भुगतान करती है।
यह सब्सिडी सीधे माता-पिता को अपने बच्चों को शिक्षित कराने के विशेष उद्देश्य से दिया जाता है। अमरीका के
अलावा स्कूल वाउचर सिस्टम कोलंबिया, चिली, स्वीडन और हांगकांग जैसे देशों में भी है। सरकार के मुताबिक ई-
रुपी के जरिए कल्याणकारी योजनाओं को बिना किसी लीकेज के डिलीवर किया जा सकेगा। इसका इस्तेमाल मदर
एंड चाइल्ड वेलफेयर स्कीम्स, टीबी उन्मूलन कार्यक्रम, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत
दवाइयां और खाद सब्सिडी इत्यादि योजनाओं के तहत सर्विस उपलब्ध कराने के लिए भी किया जा सकेगा। सरकार
के मुताबिक निजी सेक्टर भी अपने एंप्लाई वेलफेयर व कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी प्रोग्राम्स के तहत इन
डिजिटल वाउचर्स का उपयोग कर सकता है। केंद्र सरकार केंद्रीय बैंक आरबीआई की डिजिटल करंसी लाने की योजना
पर काम कर रही है और ई-रुपी की लांचिंग से देश में डिजिटल पेमेंट्स इंफ्रा में डिटिजल करंसी को लेकर कितनी
क्षमता है, इसका आकलन किया जा सकेगा। इस समय जिस रुपए को हम सभी लेन-देन के लिए इस्तेमाल करते
हैं, वह ई-रुपी के लिए अंडरलाइंग एसेट का काम करेगा। ई-रुपी की जो विशेषताएं हैं, वह इसे वर्चुअल करंसी से
भिन्न बनाती है और यह एक तरह से वाउचर आधारित पेमेंट सिस्टम की तरह है। ई-रुपी डिजिटल क्रांति में एक
महत्त्वपूर्ण पड़ाव है जिससे अब हर कोई ऑनलाइन पेमेंट कर सकेगा। इस सिस्टम में आपको न कोई ऐप्लीकेशन
डाउनलोड करना है, न ही स्मार्टफोन की जरूरत है और आप आसानी से पेमेंट कर सकते हैं।
यानी आप बिना इंटरनेट के भी किसी के अकाउंट में पैसे भेज सकेंगे। यह एक तरह से ऑनलाइन चेक की तरह ही
बताया जा रहा है, जिसमें आप वाउचर किसी दूसरे शख्स को अमाउंट के रूप में भेजते हैं। जिसे वो शख्स अपने
रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर के जरिए अपने अकाउंट में ट्रांसफर कर लेता है। इसे सरकारी सब्सिडी या योजनाओं का
फायदा उठाने के लिए किया जाएगा। यह प्रीपेड होगा और इसके जरिए सीधे प्राप्तकर्ता के अकाउंट में पैसे ट्रांसफर
हो जाएंगे। माना जा रहा है कि कल्याणकारी सेवाओं की लीक-प्रूफ डिलीवरी सुनिश्चित करने की दिशा में यह एक
क्रांतिकारी पहल होने की उम्मीद है। इसका उपयोग मातृ एवं बाल कल्याण योजनाओं के तहत दवा व न्यूट्रीशनल
सपोर्ट उपलब्ध कराने वाली स्कीम्स या फिर अन्य सब्सिडी योजनाओं में सेवाएं देने के लिए भी किया जा सकता
है। ये प्रणाली पैसा भेजने वाले और पैसा वसूल करने वाले के बीच ‘एन्ड टू एन्ड एन्क्रिप्टेड’ है यानी दो पार्टियों के
बीच किसी तीसरे का इसमें दख़ल नहीं है। इस ई-रुपी को आसान और सुरक्षित माना जा रहा है क्योंकि यह
बेनेफिशियरीज़ के विवरण को पूरी तरह गोपनीय रखता है। इस वाउचर के माध्यम से पूरी लेन-देन प्रक्रिया
अपेक्षाकृत तेज़ और साथ ही विश्वसनीय मानी जाती है, क्योंकि वाउचर में आवश्यक राशि पहले से ही होती है।
सरकार अपनी कई योजनाओं के तहत ग़रीबों और किसानों को सहायता के रूप में कैश उनके बैंक खातों में ट्रांसफर
करती रही है, जैसा कि कोरोना काल में दिखा। इस सिस्टम में कुछ कर्मचारियों का काफी दखल होता है। कई बार
लोगों को इसमें काफी परेशानी भी होती है। आरोप ये भी लगते हैं कि कुछ कर्मचारी रिश्वत भी लेते हैं।
यह कुछ हद तक काबू किया जा सकता है। ई-रुपी बिना किसी फिजिकल इंटरफेस के डिजिटल तरीके से लाभार्थियों
और सेवा प्रदाताओं के साथ सेवाओं के प्रायोजकों को जोड़ता है। इसके तहत यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि
लेन-देन पूरा होने के बाद ही सेवा देने वाले को भुगतान किया जाए। प्री-पेड होने की वजह से सेवा प्रदाता को किसी
मध्यस्थ के हस्तक्षेप के बिना ही सही समय पर भुगतान संभव हो जाता है। ई-रुपी का इस्तेमाल सरकार की विशेष
मुद्रा मदद के दौरान किया जा सकता है। इसे निजी कंपनियां भी अपने कर्मचारियों के लिए इस्तेमाल कर सकती
हैं। मिसाल के तौर पर अगर आपकी कंपनी ने आपके वेतन के अलावा सितंबर के महीने में 800 रुपए प्रति
कर्मचारी एक्स्ट्रा पेमेंट के तौर पर देने का फैसला किया तो ई-रुपी वाउचर के ज़रिए किया जा सकता है, जिसके
अंतर्गत कंपनी आपके मोबाइल फोन पर मैसेज या क्यूआर कोड की शक्ल में भेज सकती है। इसमें वाउचर का
इस्तेमाल हुआ या नहीं, ये भी ट्रैक किया जा सकता है। लेकिन डेलॉइट की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2020
में भारत के कुल ट्रांजैक्शन का 89 फीसदी कैश में हुआ, जबकि चीन में 44 फीसदी ट्रांजैक्शन कैश में हुआ। देश में
डिजिटल पुश कामयाब बनाने के लिए तेजी की जरूरत है। मुद्रा और भुगतान का भविष्य डिजिटल है। ई-रुपी इस
दिशा में एक सकारात्मक कदम है और इसे रुपए के डिजिटल रूप को लॉन्च करने की दिशा में एक कदम के रूप
में भी देखा जा रहा है।