विकास गुप्ता
एक बेहद खतरनाक और चुनौतीपूर्ण खबर आई है। हमारे देश में देशद्रोहियों और गद्दारों का इतिहास भी रहा है।
बड़ी लड़ाइयां अचानक पराजय में तबदील भी हुई हैं। एक मजहबी तालीम और रस्मअदायगी के लिए पूरे देश को
ताक पर रख दिया गया है। देश की राजधानी दिल्ली के संभ्रांत इलाके निजामुद्दीन में एक महजबी मरकज में
करीब 3000 लोग जमा थे, जबकि कानूनन पांच लोग भी एक साथ जमा नहीं हो सकते थे। यह तबलीगी जमात
थी, जो इस्लामी तालीम के लिए जमा होती है। मरकज का यह भवन और निजामुद्दीन औलिया की दरगाह से
करीब 100-150 मीटर की दूरी पर ही है। मलेशिया, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, किर्गिस्तान और श्रीलंका,
नेपाल, थाईलैंड, दिजीबुती आदि देशों के जमाती यहां ठहरे हुए थे और जमाती जाते भी रहते हैं। देश के कई राज्यों
से भी जमाती आए हुए थे। उत्तर प्रदेश से ही 157 जमाती गए थे। यह भारी-भरकम जमावड़ा जारी रहा, लेकिन न
तो उनकी ट्रेवल हिस्ट्री बताई गई थी और न ही यह जांच की गई कि ये कोरोना वायरस से संक्रमित थे या नहीं।
इस बीच अंडेमान प्रशासन ने 24 मार्च को खुफिया सूत्रों के जरिए केंद्र सरकार को रपट दी कि 9 जमाती भी
संक्रमित पाए गए थे। वे मरकज में गए हैं। उनमें कुछ लोगों को बुखार था। यह रपट और लक्षण ही पर्याप्त थे कि
कोई सरकार सचेत हो सके। प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद 25 मार्च को लॉकडाउन भी लागू कर दिया गया, लेकिन
मरकज की खबर 30 मार्च को सनसनी के तौर पर सामने आई, तो हड़कंप मच गया। दुखद यह है कि मरकज से
अपने घरों को लौटे 9 जमातियों की मौत भी हो गई। जब सब कुछ बेनकाब हो गया, तब भी करीब 1400-
1500 जमाती निजामुद्दीन मरकज में ठहरे थे। उनमें करीब 300 विदेशी थे। सरकारी सूत्रों ने खुलासा किया है
कि उन करीब 800 इंडोनेशिया नागरिकों ने जमात में शिरकत की थी, जो टूरिस्ट वीजा पर भारत में आए थे।
बहरहाल दिल्ली सरकार ने खुलासा किया है कि दोपहर 12.30 बजे तक 24 जमाती कोरोना पॉजिटिव पाए गए
थे। विभिन्न अस्पतालों में 300 से अधिक संदिग्ध भर्ती हैं और 700 से अधिक को फिलहाल क्वारंटीन में रखा
गया है। मरकज से निकाल कर सभी की जांच की गई है और पूरे इलाके को दोबारा लॉकडाउन करके सेनिटाइज
किया गया है। तुरंत दो सवाल मस्तिष्क में कौंधते हैं- यदि इनमें से आधे भी कोरोना संक्रमित निकले, तो क्या
होगा? दूसरे मजहबी जमात या तालीम जरूरी है अथवा राष्ट्रीय संकट के इस दौर में देश का अस्तित्व महत्त्वपूर्ण
है? यह सोचकर कंपकंपी छूटने लगती है कि जमात के संक्रमित लोग न जाने कितनों के संपर्क में आए होंगे और
न जाने संपर्क वाले भी कितनों से मिलते रहे होंगे? यही कयामत की घड़ी लगती है, जिससे बचाने की कोशिशें
हमारे काबिल डाक्टर, नर्सें, मेडिकल स्टाफ रात-दिन कर रहे हैं। लॉकडाउन का मकसद भी यही है कि सामाजिक
दूरी बनाए रखें, ताकि कोरोना का सामुदायिक प्रसार न हो सके, लेकिन इस्लामी मरकज की एक जमात तमाम
कोशिशों को पलीता लगाती रही। अरे मजहब के ठेकेदारो, तुम्हारा मक्का-मदीना और ज्यादातर मस्जिदें बंद हैं।
अन्य धार्मिक संस्थान मंदिर, मठ सभी कुछ पर ताले लटके हैं। श्रद्धालु घरों में बंद हैं, तो इस मरकज में जमावड़े
को जारी रखना कौन सी इस्लामी हिदायत थी। आशंकाएं और सवाल देवबंद को लेकर भी हैं। वहां भी करीब 40
विदेशी जमाती ठहरे थे। रांची की एक मस्ज्दि में 22 विदेशी थे। देवबंद में कई छात्र संक्रमित पाए गए हैं और 11
को क्वारंटीन में भेजा गया है। यह क्या हो रहा है? इन जमातियों और मजहबियों को कोरोना की जानकारी और
महासंकट का आभास है या नहीं? बेशक गलतियां हुई और कई स्तरों पर हुई हैं। आसन्न खतरे तीन महीने से
जारी हैं, लेकिन किसी भी स्तर पर कोई भी सावधानी नहीं बरती गई। कमोबेश विदेश से आने वालों की तो पूरी
तरह जांच की जानी चाहिए थी। स्थानीय स्तर पर पुलिस और सरकार भी टोपियां बदलने में लगी है। यदि अब
मौलानाओं को जेल में भी डाल दिया जाता है तो उससे हासिल क्या होगा? वायरस तो फैल ही चुका है। ये
लापरवाहियां ही गद्दारियां हैं। ये ही राष्ट्रीय अपराध है। हम तो इस भयंकर लापरवाही के नतीजों की प्रतीक्षा ही कर
सकते हैं।