अर्पित गुप्ता
यूपीए सरकार के दौरान देश के वित्त और गृह मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने आईएनएक्स मीडिया मामले में
गिरफ्तारी से बचने के लिए काफी हाथ पैर मारे, लगभग 24 घंटे तक सीबीआई को चकमा दिया, बुधवार
सुबह सुप्रीम कोर्ट में बड़े से बड़े वकीलों की टीम उतार दी, वकीलों ने तर्क पर तर्क दिये लेकिन उन्हें कोई
फौरी सफलता नहीं मिली। दिनभर के ड्रामे के बाद शाम को कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन कर
अपने घर इस उम्मीद के साथ पहुँचे कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं का घेरा सीबीआई को उन्हें ले जाने नहीं
देगा। शायद देश ने पहली बार देखा कि सीबीआई के अधिकारियों को इतने बड़े राजनेता के घर दीवार
फांद कर जाना पड़ा। कानून को चकमा देने का चिदंबरम का कोई प्रयास काम नहीं आया और सीबीआई
उन्हें गिरफ्तार कर ले गयी।
चिदंबरम अदालत से अपने मन मुताबिक फैसले की उम्मीद कर रहे थे लेकिन उन्हें सफलता मिलती भी
कैसे? इस देश की अदालतें यह नहीं देखतीं कि सामने वाला कितना बड़ा आदमी है, इस देश की अदालतें
यह नहीं देखतीं कि कितना बड़ा वकील किसकी पैरवी कर रहा है, इस देश की अदालतें कानून और
सबूतों के आधार पर फैसला देती हैं। चिदंबरम जैसा बड़ा राजनेता जिस तरह जांच एजेंसियों का सामना
करने से भागा है उससे अच्छा संदेश नहीं गया। भाजपा ने तो सवाल भी उठाया है कि क्या फर्क रह गया
है भगोड़े विजय माल्या, नीरव मोदी और चिदंबरम में।
चिदंबरम दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन ऐसा करते वक्त उन्होंने यह
नहीं देखा कि उच्च न्यायालय ने 25 जुलाई, 2018 को उनको गिरफ्तारी से अंतरिम राहत प्रदान की थी
जिसे समय-समय पर बढ़ाया गया था। यानि 1 साल से ज्यादा समय तक उनको गिरफ्तारी से अंतरिम
राहत मिली। चिदंबरम के मामले में मोदी सरकार पर राजनीतिक दुश्मनी, संवैधानिक संस्थाओं के
दुरुपयोग जैसे एक से बढ़कर एक आरोप लगा रही कांग्रेस को जरा दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला
पढ़ना चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि मौजूदा कानून में संशोधन की
आवश्यकता है जिससे अग्रिम जमानत के प्रावधान को सीमित किया जा सके और आईएनएक्स मीडिया
घोटाले जैसे बड़े आर्थिक अपराधों में इसे अस्वीकार्य बनाया जाए। आईएनएक्स मीडिया घोटाले में
चिदंबरम की अग्रिम जमानत इस आधार पर खारिज कर दी गई कि वह मामले में मुख्य कर्ताधर्ता हैं।
न्यायमूर्ति सुनील गौड़ ने साफ कहा कि बड़े आर्थिक अपराधों के लिये अग्रिम जमानत नहीं है और
कानून बनाने वालों को माफी के साथ कानून तोड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती, खास तौर पर बड़े
मामलों में। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि आईएनएक्स मीडिया से जुड़े धनशोधन मामले में चिदंबरम
‘‘सरगना और प्रमुख षड्यंत्रकारी" प्रतीत हो रहे हैं और प्रभावी जांच के लिए उनसे हिरासत में पूछताछ
करने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि अपराध की गंभीरता और अदालत से मिली राहत के दौरान
पूछताछ में स्पष्ट जवाब नहीं दिया जाना दो आधार हैं जिनके कारण उन्हें अग्रिम जमानत नहीं दी जा
रही है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद होना यह चाहिए था कि अपने को सभ्य नागरिक, कानून का
पालन करने वाले नागरिक, जनता से जुड़े मुद्दों की चिंता करने वाले नेता और लगभग हर मामले में
खुद को विद्वान समझने वाले चिदंबरम को पूछताछ में जाँच एजेंसियों का सहयोग करना चाहिए था।
जब उनके वकील सर्वोच्च न्यायालय में यह दलील दे रहे हैं कि चिदंबरम सभी समनों पर पेश होते हैं
और कानूनी एजेंसियों को पूरा सहयोग करते हैं तो सवाल उठता है कि वह अब भाग क्यों रहे हैं? दिल्ली
उच्च न्यायालय ने ऐसे ही नहीं कह दिया कि चिदंबरम सरगना और मुख्य षड्यंत्रकारी प्रतीत हो रहे हैं।
कुछ तो बात होगी, कुछ तो सुबूत हमारी जांच एजेंसियों ने अदालत के सामने रखे होंगे। यह सही है कि
चिदंबरम को सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार है लेकिन सीबीआई अधिकारियों को उन्होंने रात भर
जिस तरह परेशान किया वह दर्शाता है कि चिदंबरम के पक्ष में उनके वकील जो तर्क दे रहे हैं, हकीकत
उससे जुदा है।
चिदंबरम जी, आपने अपना तमाशा खुद बनवा लिया। यदि जांच एजेंसी के समक्ष पूछताछ के लिए पेश
हो जाते तो संभव है सिर्फ यही खबर बनती कि चिदंबरम से आईएनएक्स मीडिया केस में पूछताछ हुई।
लेकिन आपने घर से गायब रह कर सीबीआई अधिकारियों को दरवाजे पर खड़ा रहने को मजबूर कर
दिया तो सारा मीडिया आपके घर के बाहर पहुंच गया और देश के कोने-कोने तक आपके कारनामों की
खबरें, विश्लेषण और प्रतिक्रियाएं पहुंचने लगीं। सीबीआई ने आपके आवास पर जो नोटिस चस्पा किया
वह पूरे देश ने पढ़ा। यही नहीं प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से पी. चिदंबरम के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर
जारी कर दिया गया है ताकि अगर वह देश से बाहर जाने की कोशिश करें तो उन्हें हवाई अड्डे पर ही
पकड़ लिया जाये। और तो और चिदंबरम की तलाश में कई जगह दबिश दी गयी। देखा जाये तो
चिदंबरम ने अपने लिए मुश्किलें खुद ही बढ़ाईं क्योंकि सीबीआई के अधिकारी मंगलवार शाम जब उनके
घर पहुँचे थे तो वह नहीं मिले, इसके बाद सीबीआई अधिकारी अपने मुख्यालय लौटे और उन्हें नोटिस
जारी कर दो घंटे में पेश होने का निर्देश दिया। लेकिन इस नोटिस पर चिदंबरम के वकील कह रहे हैं कि
इसमें कानून के उस प्रावधान का उल्लेख नहीं है, जिसके तहत मुवक्किल को आधी रात को दो घंटे के
एक ‘शॉर्ट नोटिस’ पर पेश होने को कहा गया।’’
तर्क वितर्क में तो चिदंबरम माहिर हैं लेकिन जरा उन्हें देश को यह भी बता देना चाहिए कि वित्त मंत्री के
तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की मंजूरी देने में कथित
अनियमितताएं क्यों की गयी थीं? उल्लेखनीय है कि सीबीआई ने 15 मई, 2017 को एक प्राथमिकी दर्ज
की थी और आरोप लगाया था कि वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान 2007 में 305
करोड़ रुपये की विदेशी धनराशि प्राप्त करने के लिए आईएनएक्स मीडिया समूह को विदेशी निवेश
संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) मंजूरी दिये जाने में अनियमितताएं हुयीं थीं। इसके बाद, ईडी ने 2018 में इस
संबंध में धनशोधन का मामला दर्ज किया था। आईएनएक्स मीडिया का मालिकाना हक रखने वाली
इंद्राणी मुखर्जी को इस केस में गवाह बनाया गया और इसी साल उनका बयान भी रिकॉर्ड किया गया।
इस तरह की रिपोर्टें हैं जिनमें कहा जा रहा है कि CBI के मुताबिक इंद्राणी मुखर्जी ने गवाही दी है कि
उसने कार्ति चिदंबरम को 10 लाख डॉलर की रिश्वत दी थी।
अब जरा कांग्रेस की प्रतिक्रियाओं को देखिये। पार्टी का आरोप है कि नरेंद्र मोदी सरकार विरोधी नेताओं
को चुन चुनकर निशाना बना रही और यही उसकी कार्यशैली बन चुकी है। कांग्रेस का कहना है कि जो
कुछ हो रहा है उससे भारत के प्रजातंत्र की छवि अच्छी नहीं बनती है। कांग्रेस यहां शायद यह भूल गयी
कि भ्रष्टाचार के जिन मामलों पर कार्रवाई हो रही है उनमें सुबूतों के आधार पर अदालती कार्यवाहियां
आगे बढ़ रही हैं और फैसले आ रहे हैं। इसमें कहां से राजनीति हुई। यह बात समझ से परे है कि यदि
भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई हो रही है तो देश की छवि अच्छी नहीं बनेगी। कांग्रेस महासचिव प्रियंका
गांधी वाड्रा ने आरोप लगाया है कि सरकार 'शर्मनाक तरीके से' चिदंबरम के पीछे पड़ी है क्योंकि वह
बेहिचक सच बोलते हैं और सरकार की नाकामियों को सामने लाते हैं। कमलनाथ कह रहे हैं कि उनके
भतीजे रतुल पुरी समेत जो भी गिरफ्तारियां या कार्रवाइयां हो रही हैं वह गलत है। तो कमलनाथ जी जरा
इस बात का जवाब दे दीजिये कि ईडी ने जिस 354 करोड़ रुपये के बैंक लोन धोखाधड़ी मामले में रतुल
पुरी को गिरफ्तार किया है क्या वह फर्जी है। राहुल गांधी कह रहे हैं कि यह चिदंबरम के चरित्र हनन का
प्रयास है, यदि ऐसा है तो चिदंबरम के मामले पर कांग्रेस को अन्य पार्टियों का सहयोग क्यों नहीं मिल
पा रहा है?
बहरहाल, पी. चिदंबरम अपने कार्यकाल के दौरान लिये गये फैसलों पर घिरते जा रहे हैं। आईएनएक्स
मीडिया मामले के बाद अब एक और खुलासा हुआ है। प्रवर्तन निदेशालय ने यूपीए सरकार के कार्यकाल
में कथित तौर पर हुये विमानन घोटाले में धनशोधन रोधी मामले में जांच के सिलसिले में चिदंबरम को
समन जारी कर 23 अगस्त को पेश होकर बयान दर्ज कराने के लिए तलब किया है। यह मामला करोड़ों
रुपये के विमानन घोटाले से जुड़ा है जिसमें अंतरराष्ट्रीय एयरलाइनों के लिये उड़ान समय निर्धारित करने
में अनियमिततायें बरतीं गईं। इससे एअर इंडिया को भारी नुकसान हुआ। इस मामले में ईडी पूर्व विमानन
मंत्री प्रफुल्ल पटेल से पूछताछ कर चुकी है। माना जा रहा है कि मामले में पटेल से मिली जानकारी के
आधार पर ही अब एजेंसी चिदंबरम से पूछताछ करना चाहती है। उल्लेखनीय है कि प्रवर्तन निदेशालय
पहले से ही एयरसेल-मेक्सिस और आईएनएक्स मीडिया से जुड़े दो अलग-अलग धनशोधन मामले में भी
चिदंबरम की भूमिका की जांच कर रही है।