-राम पुनियानी-
पिछले नौ सालों से भाजपा हमारे देश पर शासन कर रही है. विपक्षी पार्टियों को धीरे-धीरे यह समझ में आया कि भाजपा सरकार न तो संविधान की मंशा के अनुरूप शासन कर रही है और ना ही उसकी रूचि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित समावेशी भारत के निर्माण में है. भाजपा सरकार ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी पार्टियों को कमज़ोर करने के लिए कर रही है. इसके अलावा, उसकी नीतियाँ सरकार के साथ सांठगाँठ कर अपना उल्लू सीधा करने वाले पूंजीपतियों को बढ़ावा देने वाली हैं. वह प्रजातान्त्रिक अधिकारों को भी कुचल रही है. उसकी राजनीति राममंदिर, लवजिहाद और अन्य अनेक किस्मों के जिहादों, गाय, गौमॉस और पहचान से जुड़े मुद्दों के अलावा, हमारे एक पड़ोसी देश पर अति-राष्ट्रवादी कटु हमले करने पर केन्द्रित है. उसकी नीतियों से आम लोगों, और विशेषकर गरीब और कमज़ोर वर्गों, की परेशानियाँ बढीं हैं. चाहे वह नोटबंदी हो, कुछ घंटो के नोटिस पर देशव्यापी कड़ा लॉकडाउन लगाने का निर्णय हो, बढ़ती हुई बेरोज़गारी और महंगाई हो या दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के दमन में बढ़ोत्तरी हो-इन सबसे आम लोगों को ढेर सारी परेशानियाँ भुगतनी पड़ रही हैं.
भाजपा इस देश की सबसे धनी पार्टी है. उसने इलेक्टोरल बांड्स के ज़रिये अकूत धन इकठ्ठा कर लिया है. पीएम केयर फण्ड भी पार्टी की तिजोरी भरने का साधन बन गया है. इसके अलावा, पार्टी को आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठनों के लाखो कार्यकर्ताओं के रूप में प्रचारकों की एक विशाल फ़ौज उपलब्ध है. ये सभी चुनाव के दौरान और वैसे भी भाजपा के लिए काम करते हैं.
इस पृष्ठभूमि में गैर-भाजपा पार्टियों ने ‘इंडिया’ (भारतीय राष्ट्रीय विकास और समावेशिता गठबंधन) का गठन किया है. इस गठबंधन को बैंगलोर में इन पार्टियों के दूसरे सम्मलेन में आकार दिया गया. बैंगलोर में 26 राजनैतिक दलों ने प्रजातंत्र और संविधान को बचाने और भाजपा, जिसका संगठन मतदान केंद्र से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक फैला हुआ है और जो एक बढ़िया मशीन की तरह काम करता है, से मुकाबला करने के लिए एक साथ मिल कर काम करने का निर्णय लिया है.
इस संगठन के ठोस स्वरुप लेने से भाजपा चौकन्ना और परेशान हो गयी. सबसे पहले उसने एनडीए (राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन) को डीप फ्रीजर से बाहर निकाला. इसमें 38 पार्टियाँ शामिल हैं, जिनमें से कुछ को छोड़कर सभी अनजान हैं. एनडीए के सम्मलेन में जो बैनर लगाया गया था उसमें केवल शीर्ष नेता का चित्र था और बाकी पार्टियों के नेता उनके आगे दंडवत कर रहे थे.
विपक्षी गठबंधन को इंडिया का नाम देने का निर्णय सचमुच बेहतरीन था और इससे भाजपा और उसके साथी बहुत घबरा गए. उन्होंने विपक्षी पार्टियों को भला-बुरा कहने के अलावा यह भी कहा कि इस नाम का इस्तेमाल अनुचित है. उनके अनुसार इससे चुनाव में मतदाता भ्रमित हो सकते हैं. समाचार एजेंसी एएनआई ने खबर दी है कि इस सिलसिले में दिल्ली के बाराखम्बा पुलिस थाने में एक शिकायत भी भाजपा नेताओं ने दर्ज करवाई है.
सरमा पर तीखा पलटवार करते हुए कांग्रेस के जयराम रमेश ने ट्वीट किया: “उनके (सरमा) गुरूजी, श्री मोदी ने पहले से चली आ रही योजनाओं को नए नाम दिए-स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया. उन्होंने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से ‘टीम इंडिया’ के रूप में काम करने को कहा. यहाँ तक कि उन्होंने ‘वोट इंडिया’ की अपील भी की. पर ज्योंही 26 पार्टियों ने अपने गठबंधन को इंडिया का नाम दिया, उन्हें फिट आ गया और वे इंडिया शब्द के इस्तेमाल को ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ का प्रतीक बताने लगे.”
प्रधानमंत्री इससे इतने परेशान हो गये कि उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल को ‘बीजेपी फॉर इंडिया’ से ‘बीजेपी फॉर भारत’ में बदल दिया. प्रधानमंत्री के सभ्यताओं और मूल्यों के टकराव की बात करते ही हिन्दुत्ववादी लेखकों में इस मुद्दे पर लिखने की होड़ मच गयी. जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित ने लिखा, “भारत को मात्र संविधान से बंधे एक राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करना उसके इतिहास, उसकी प्राचीन विरासत, संस्कृति और सभ्यता की उपेक्षा करना है.” इसी गुट के अन्य लेखक तर्क दे रहे हैं कि सभ्यतागत मूल्यों को भारतीय संविधान के मूल्यों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
उनकी राह में मुख्य बाधा है भारत का संविधान. जैसे-जैसे भारतीय राष्ट्रवाद की ताकत और प्रभाव बढ़ने लगा, इन लोगों ने मनुस्मृति और उसके कानूनों का महिमामंडन शुरू कर दिया और वे मुसलमानों, ईसाईयों और साम्यवादियों को देश का ‘आतंरिक शत्रु’ बताने लगे. भारत के संविधान का विरोध उनकी राजनीति का हिस्सा रहा है जिसकी स्पष्ट अभिव्यक्ति पूर्व आरएसएस सरसंघचालक के. सुदर्शन ने की थी. उन्होंने कहा था कि संविधान देश के लोगों के लिए किसी काम का नहीं है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि विपक्षी पार्टियों के इंडिया का विरोध, हमारी सभ्यता के समावेशी मूल्यों का विरोध है. भारत का संविधान भी देश की सभ्यता के विकास का नतीजा है. इंडिया का विरोध सेम्युएल हट्टिंगटन की सभ्यताओं के टकराव के सिद्धांत के अनुरूप है और संयुक्त राष्ट्रसंघ की उस रपट के खिलाफ है जो सभ्यताओं के गठजोड़ की बात करती है और जो नेहरु के ऊपर दिए गए उद्धरण से मेल खाती है. हम केवल उम्मीद कर सकते हैं कि इंडिया, हेमंत सरमा जैसे लोगों की विघटनकारी राजनीति पर भारी पड़ेगा.