शिशिर गुप्ता
कोरोना संकट से निपटने के लिए पूरा देश एकजुट हो चुका है। सभी नागरिक अपने अपने स्तर पर इस महामारी से
लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। आम जनता जहां लॉक डाउन का पालन करते हुए स्वयं को घरों तक सीमित रखे हुए
है तो वहीं स्वास्थ्यकर्मी और प्रशासन भी एक योद्धा की तरह इस संकट को दूर करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान
दे रहा है। कोरोना मरीजों की लगातार बढ़ती संख्या के बावजूद देश भर के स्वास्थ्यकर्मी जान जोखिम में डाल कर
पीड़ितों का इलाज करने में जुटे हुए हैं।
देश के रेगिस्तानी इलाका राजस्थान में भी कोरोना एक गंभीर संकट बनता जा रहा है। बावजूद इसके मेडिकल टीम
के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्त्ता तक अपना फर्ज बखूबी निभा रही हैं। बाड़मेर जिले की पाटोदी
पंचायत समिति के ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रही आशा स्वास्थ्य वर्कर कोरोना को हराने में समाज के साथ कंधे से
कंधा मिलाकर जुटी हुई हैं। एक तरफ जहां लोग कोरोना के कहर से चिंतित हैं और अभाव से उत्पन्न कष्टों को
झेलते हुए घरों की सीमाओं में बंधे हैं, वहीं आशा कार्यकर्त्ता अपने हुनर, ज्ञान और क्षमता के अनुसार लोगों की
मदद करने में जुटी हुई हैं। जननी एवं शिशु सुरक्षा की सेवाएं घर-घर पहुंचाने तथा मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम
करने में स्वास्थ्य विभाग और समुदाय के बीच मजबूत कड़ी का काम करने वाली आशा वर्कर कोरोना उन्मूलन की
जंग में भी दिन-रात सेवाएं दे रही हैं।
पाटोदी पंचायत समिति के गांवों में संस्थागत प्रसव और टीकाकरण, परिवार नियोजन, किशोरी स्वास्थ्य संबंधी
राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मिली उपलब्धियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली आशा वर्कर कोरोना जैसी महामारी को
मात देने के लिए अतिरिक्त सेवाएं देने के लिए स्वप्रेरणा से जुट गई हैं। इस दौरान वह गांव के एक-एक परिवार
पर नजर रखती है, बाहर से आने वाले व्यक्तियों का सर्वे कर विभाग को अवगत कराने, नागरिकों को स्वास्थ्य
संबंधी मुश्किलें आने पर उपचार के लिए अस्पताल तक पहुंचाने की व्यवस्था करवाने, लगातार साबुन से हाथ धोने
और बचाव के लिए व्यक्ति से व्यक्ति के बीच दूरी बनाए रखने के लिए लोगों को जागरूक करने जैसे महत्वपूर्ण
कार्यों को अंजाम दे रही हैं।
लॉक डाउन जैसी स्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी पर टिके जीवन में इस समय कई प्रकार के संकट उत्पन्न हुए
हैं। खासतौर पर राशन, सब्जियां, दूध, फल आदि की पहुंच कम होने का असर महिलाओं और बच्चों की सेहत पर
पड़ सकता है। विशेषकर यह समय गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए
सबसे मुश्किल घड़ी है। वहीं दूसरी ओर पहले से कुपोषण के चक्र में फंसी महिलाओं और बच्चों के लिए भी कोरोना
एक बड़ा संकट बन कर आया है। जिसके खिलाफ यह आशा कार्यकर्त्ता दिन रात एक करते हुए अपने कार्यों को
अंजाम दे रही हैं। इनकी सेहत को बनाये रखने और कुपोषण से इन्हें बचाने के लिए आशा वर्कर इनके परिवारों को
खान-पान की विशेष हिदायतें देकर कारोना की जंग में जीत हासिल करने के लिए अतिरिक्त कार्य कर रही हैं।
इसके अलावा अपने पारिवारिक कार्यों से निवृत हो कर दिन भर जागरूकता और सेवाएं देने के बाद बचे हुए
अतिरिक्त समय में क्षेत्र की अधिकांश आशा वर्कर इन दिनों सिलाई मशीन एवं हाथ से सिलाई कर मास्क बना कर
समुदाय को निःशुल्क उपलब्ध करा रही हैं। इस संबंध में पाटोदी के आशा सुपरवाइजर भगवान चंद परिहार ने
बताया कि अधिकांश आशा कार्यकर्त्ता अपने सरकारी कार्यक्रमों की जिम्मेदारी निभाने के अलावा घर में सिलाई के
लिए लाई गई मशीन का उपयोग कर स्वयं कपड़ा खरीद कर मास्क बना रही है तथा गांव वालों को निःशुल्क
वितरित कर रही हैं।
कुछ आशा वर्कर केे पास अपनी सिलाई मशीन नहीं है, ऐसे में वह हाथ से ही सिलाई कर मास्क बना रही हैं और
लोगों को उपलब्ध करा रही हैं। उन्होंने बताया कि नवोड़ाबेरा की आशा कार्यकर्त्ता श्रीमती फातिमा, जिन्हें उत्कृष्ट
सेवाएं देने के लिए ब्लाॅक स्तर पर सम्मानित किया गया था, उन्होंने अब तक 75 मास्क बना कर वितरण किए
हैं। इसी प्रकार हड़मतनगर की रसाल ने 25, कालाथल की हेमीदेवी ने 35, पाटोदी की नर्मदा ने 75, भगवानपुरा
की रिंकु ने 100, पाटोदी की ही रेवती ने 25, ढाणी नवोड़ाबेरा की धन्नीदेवी ने 45, पाटोदी की संगीतकंवर ने
25, भगवानपुरा की खाम्मादेवी ने 50, रेखा जीनगर, रेवंती पाटोदी ने 50 व शांति भाखरसर जैसी कर्मठ आशा
वर्कर ने 25 मास्क बनाकर बांटे हैं और मास्क बनाने का यह काम निरंतर जारी है। उन्होंने बताया कि बाड़मेर
जिले में आशा स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा मास्क बनकार वितरण किये जा रहे इस कार्य की केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने
भी सराहना की है।
याद रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश के नाम अपने संबोधन में देशवासियों से संकट की इस घड़ी में
जरूरतमंदों की मदद करने की लगातार अपील करते रहे हैं। अपने स्तर पर देसी मास्क बनाने और अधिक से
अधिक लोगों को पहुंचाने पर जोर देते रहे हैं। मुश्किल की इस घड़ी में कोरोना को हराने में स्वास्थ्य टीम के साथ
साथ आशा वर्कर्स भी अपनी क्षमताओं के अनुसार हर संभव प्रयास कर रही हैं। ऐसे में मौजूदा समय में जमीनी
स्तर पर इनकी भूमिका बहुत अहम हो गई है। जिसे यह बखूबी अंजाम दे रही हैं।