आफत की घड़ी में छात्र

asiakhabar.com | March 2, 2022 | 3:30 pm IST
View Details

यूक्रेन युद्ध के बीच हिमाचल का सामाजिक पक्ष भी आहत है और ऐसे कई अभिभावक मिल जाएंगे, जो अपने
बच्चों के मार्फत एक घोर संकट का मुकाबला कर रहे हैं। अब कुछ सुरक्षित रास्ते बने हैं और रोमानियां-पोलैंड जैसे
देशों के जरिए भारत लौट रहे बच्चों को कुशल पाकर राहत मिल रही है। पहली खेप में हिमाचल के भी 42 छात्र
घर लौटे हैं, जबकि कुछ इससे पूर्व आए थे और कई अभी भी वहीं फंसे हैं। यूक्रेन में करियर की धूप सेंक रहे छात्रों
के लिए यह दौर अति वेदना और पीड़ा का है। कई अमानवीय परिस्थितियों के बीच और युद्धक माहौल के अति
कठोर, अनिश्चित और मारक लम्हों से खुद को बचा कर जो लौट पा रहे हैं, उनके लिए यह पुनर्मिलन का सबब है।
ऐसे में अगर एक पक्ष किसी तरह की आलोचना में सरकार से शिकायत कर रहा है, तो यह जितना गैर जरूरी है
उतना ही संवेदनशील भी। अगर प्रश्न उठ भी रहे हैं, तो यह हैरानी हो रही है कि भारत का चिकित्सा क्षेत्र किस कद्र
यूक्रेन की शिक्षा का मोहताज बन चुका है या जो शिक्षा के पात्र यहां नहीं बन पा रहे, वे वहां शिक्षा की शरण में

भाग्य आजमा रहे हैं। मौटे तौर पर बीस हजार भारतीयों में कितने हिमाचली रहे होंगे, लेकिन इस आंकड़े को चार
सौ भी मान लें, तो इस जरूरत का आलम एक विशिष्ट समाज की संरचना करता है।
यह शिक्षा का नया प्रचलन या उपाधियों का ऐसा आखेट है जो एक साथ कई अभिभावकों की महत्त्वाकांक्षा को पूरा
कर रहा था। हर साल कितने भारतीय वाया यूक्रेन डाक्टर बनते हैं या इस शिक्षा के बरअक्स देश के मेडिकल शिक्षा
कितनी कठिन है, इसका भी खुलासा हो रहा है। हमें यह तो नहीं लगता कि किसी सस्ते रेट की बजह से बच्चे
यूक्रेन का टिकट ले रहे थे, लेकिन यह जरूर है कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में मेडिकल पढ़ाई का विकल्प यूक्रेन ने इतना
विस्तृत कर दिया कि हर साल हजारों बच्चे वहां का रुख करते देखे गए। हिमाचल भी इस दिशा में अग्रणी राज्य
बना है। व्यक्तिगत उपलब्धियों के लिहाज से यूक्रेन के पैमाने में फंसे बच्चांे के लिए अब आफत की कितनी
घडि़यां बची हैं, इसका फैसला शीघ्रता से हो रहा है। सर्वप्रथम सभी की सकुशल घर वापसी वांछित है। इस दृष्टि से
काफी प्रयत्न हो चुके हैं और जिनके सार्थक नतीजे सामने आ रहे हैं, लेकिन यूक्रेन में इंडियन छात्रों के प्रति नफरत
से त्रासदी बढ़ जाती है।
उम्मीद है अगले कुछ दिनों में सभी लोग लौट आएंगे। यह दीगर है कि सकुशल वापसी के बाद छात्रों की चिंताएं
समाप्त हो जाएंगी, बल्कि सरकार को अपने अगले कदम में यह फैसला भी लेना होगा कि इन बच्चों के करियर में
आए इस मध्यांतर को फिर से कैसे पूरा कराया जाए। हो सकता है यह एक लंबी प्रक्रिया के तहत ही संभव हो या
किसी तरह के मूल्यांकन से इसकी अहर्ता पूरी होगी, लेकिन बीस हजार छात्रों के सपने बचाने होंगे। हिमाचल भी
अपने तौर पर कुछ पहल कर सकता है। दूसरी ओर यूक्रेन के सबक न केवल राष्ट्रीय फलक पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों,
दबावों व परिस्थितियों के घनघोर अनिश्चिय में नए रास्ते खोज रहे हैं, बल्कि इस एहसास से गुजरे अभिभावकों के
लिए भी कानों को हाथ लगाने की नौबत आई है। बच्चों का करियर बनाने की दौड़ न तो अधूरी छोड़ी जा सकती है
और न ही इसका कोई अंतिम विकल्प है। ऐसे में हम यह तो नहीं कहेंगे कि अभिभावकों ने बच्चों को यूक्रेन भेज
कर कोई गलती की या ये छात्र अपनी क्षमता में कम थे, लेकिन हम भारतीय यह क्यों समझ रहे हैं कि सबसे
श्रेष्ठ उपाधि केवल चिकित्सा विज्ञान के मार्फत ही मिलेगी। करियर को श्रेष्ठ बनाने के लिए कोई भी विषय या
संस्थान छोटा नहीं हो सकता, लेकिन आज भी अपने देश में शिक्षा का मूल्यांकन केवल नौकरी ही कर रही है।
भविष्य के डाक्टरों की जो पौध यूक्रेन में पल रही थी, उसके लिए अब आसमान से गिरे और खजूर में लटके जैसी
स्थिति होने जा रही है, अतः केंद्र सरकार बचाव व राहत के साथ-साथ इनके करियर के समक्ष आए अवरोध को भी
हटाने का त्वरित फैसला ले।

क्या परमाणु हमला होगा?
हमारा मानवीय भरोसा है कि रूस परमाणु हमला नहीं करेगा। राष्ट्रपति पुतिन उसके व्यापक और विध्वंसक नतीजों
को जानते हैं। करीब 77 सालों के बाद एक बार फिर परमाणु युद्ध का खौफ सामने है, लिहाजा हड़कंप स्वाभाविक
है। यदि इस दौर में परमाणु हमले की नौबत आई, तो पूरी कायनात ही खत्म हो सकती है। रूस के पास 6257
परमाणु हथियार बताए जाते हैं, तो अमरीका भी करीब 5500 आणविक अस्त्रों के साथ बहुत पीछे नहीं है। विनाश
के लिए तो 2-3 एटम बम और मिसाइलें आदि ही पर्याप्त हैं। फ्रांस और ब्रिटेन भी परमाणु शक्ति वाले देश हैं,

लेकिन यह भी हकीकत है कि पुतिन ने रूस के परमाणु दस्ते को सतर्क कर दिया है। रक्षा मंत्री ने रूसी राष्ट्रपति
को ब्रीफ किया है कि दस्ते ने युद्ध की तैयारी भी शुरू कर दी है। मिसाइल कमांड और बॉम्बर को भी अलर्ट कर
दिया गया है। परमाणु युद्ध की संभावनाओं के मद्देनजर बुधवार को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और संयुक्त
राष्ट्र के 35 देशों के एक विशेष बोर्ड की बैठकें बुलाई गई हैं। संकेत बेहद खतरनाक हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा को
संबोधित करते हुए महासचिव गुतारेस ने आग्रह किया है कि यूक्रेन में युद्ध को तुरंत समाप्त किया जाए। सवाल
यह है कि कौन-सा देश ऐसे संबोधन को गंभीरता से ग्रहण करता है? बहरहाल पुतिन सनकी और जिद्दी राजनेता
हैं। दरअसल रूस के पास ऐसे परमाणु हथियार और बम हैं, जिनके सामने हिरोशिमा और नागासाकी के एटम बम
‘दिवाली के पटाखे’ लगते हैं। रूस जल, थल और आसमान तीनों माध्यमों के जरिए परमाणु हमला कर सकता है।ं
इसे रूस और पुतिन की हताशा मानें या बौखलाहट, घबराहट करार दें, लेकिन संकेत अच्छे और मानवीय नहीं हैं।
हालांकि अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन दुनिया को डरा रहे हैं, घुड़कियां दे रहे हैं, लेकिन ऐसे भी
वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ हैं, जो पुतिन के बयान को हल्के में लेने के पक्षधर नहीं हैं। सवाल यह है कि रूस के सामनेे
परमाणु हमले की नौबत ही क्यों आई? यूक्रेन पर रूस के हमले को पांच दिन बीत चुके हैं। रूस ने बमों, मिसाइलों,
रॉकेटों की बौछार कर काफी-कुछ तबाह और बर्बाद किया है। इनसानी जानें भी गई हैं। रूस के अपने 5300 से
ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं। दरअसल राष्ट्रपति पुतिन और उनके रणनीतिकारों को यह अंदाज़ा नहीं था कि
यूक्रेनी सेनाएं इतना प्रतिरोध कर सकेंगी। राजधानी कीव के भीतर रूसी सेनाएं, लगातार हमलों के बावजूद, नहीं घुस
सकेंगी। यूक्रेन के नागरिक भी रूसी टैंकों पर कथित पेट्रोल बमों से हमले कर रहे हैं। रूस युद्ध को लंबा खींचने के
पक्ष में नहीं है, क्योंकि उसके सैन्य अभियान पर हररोज़़ औसतन 1.25 लाख करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।
चौतरफा आर्थिक पाबंदियों के कारण यह खर्च, एक हद के पार, करना मुनासिब नहीं है। रूसी मुद्रा रुबल करीब 40
फीसदी गिर चुकी है। रूस के सेंट्रल बैंकों पर अमरीका और अन्य देशों के कब्जे हैं। रूस जमा विदेशी मुद्रा भी खर्च
नहीं कर सकता, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग भी संभव नहीं है।
वैश्विक कारोबार बेहद सीमित हो गया है। यदि युद्ध 15-20 दिन तक चला और अमरीका, यूरोपीय तथा नाटो देशों
का दखल बढ़ा और यूक्रेन को आर्थिक, हथियारों की मदद मिलने लगी, तो रूस में कंगाली के हालात उभर सकते
हैं, लिहाजा पुतिन का मानस बताया जा रहा है कि वह सीमित परमाणु हमला कर सकते हैं। विध्वंस तो उससे भी
होगा और तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो सकती है। उस स्थिति में दुनिया के देश एक तरफ होंगे और रूस
अकेला ही दूसरी तरफ होगा। इन हालात में चीन भी अलग रहेगा। ऐसा विश्लेषण ‘द इकॉनोमिस्ट’ में छपा है। रपट
में यह भी कहा गया है कि पुतिन चाहते हैं कि मौजूदा सैन्य अभियान समय और रणनीति के मुताबिक चले।
यूक्रेन में सत्ता को पलटा जा सके और वहां विसैन्यीकरण हो। ‘कठपुतली सरकार’ वहां बैठे और रिमोट रूस के हाथ
में रहे। क्या सिर्फ इसी आधार पर इतना विध्वंसक युद्ध छेड़ने की जरूरत थी? यह सवाल संयुक्त राष्ट्र में भी उठा
था। बहरहाल पुतिन की धमकी को अमरीका और अन्य देशों ने गंभीरता से लिया है। अमरीका ने मास्को में अपने
नागरिकों को तुरंत देश लौटने की सलाह दी है। देखते हैं कि परमाणु युद्ध की इस सनक की नियति क्या होती है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *