आपकी पोल खोलती शुंगलू समिति

asiakhabar.com | April 12, 2017 | 2:02 pm IST
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-हरीश राय- दिल्ली नगर निगम चुनावों से ठीक पहले शुंगलू कमेटी ने दिल्ली सरकार के कामकाज और कई फैसलों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि दिल्ली सरकार के प्रशासनिक फैसलों में संविधान और प्रक्रिया संबंधी नियमों का उल्लघंन किया गया है। गौरतलब है कि सितंबर, 2016 में तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने केजरीवाल सरकार द्वारा लिए गए फैसलों की समीक्षा के लिए पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक वीके शुंगलू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति में वीके शुंगलू के अलावा पूर्व चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी व पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रदीप कुमार शामिल थे। इस समिति ने सरकार के 440 फैसलों से जुड़ी फाइलों को खंगाला, जिनमें से 36 मामलों में फैसला लंबित होने की वजह से ये फाइलें सरकार को वापस भेज दी गई थीं। बची 404 फाइलों पर इस समिति ने अपनी जांच जारी रखी। जांच के दौरान कमेटी ने यह पाया है कि केजरीवाल सरकार द्वारा अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया गया है। कमेटी की रिपोर्ट में यह सामने आया है कि केजरीवाल सरकार द्वारा गैर-कानूनी तरीके से जमीनों का आवंटन, अपने करीबियों को लाखों की सैलरी पर नौकरी देने और सरकारी खर्च पर निजी विदेश दौरे करने जैसे कई गंभीर फैसले लिए गए हैं। बताते चलें कि वीके शुंगलू की अध्यक्षता वाली समिति ने ही कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की जांच की थी। यह बताना इसलिए जरूरी है, क्योंकि जब इस कमेटी ने कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले को उजागर किया था, तब केजरीवाल तथा उनके तमाम समर्थकों द्वारा इस समिति का समर्थन किया गया था। हालांकि इसी समिति द्वारा दिल्ली सरकार पर लगाए गए गंभीर अनियमितताओं के बारे में जवाब देते हुए आम आदमी पार्टी के प्रवक्ताओं की तरफ से यह कहा गया है कि पार्टी को बदनाम करने के लिए रिपोर्ट जानबूझ कर लीक की गई है। इस बारे में आप का यह मानना है कि दिल्ली नगर निगम भी भ्रष्टाचार में डुबे हुए हैं। आप का कहना है कि निगम का भ्रष्टाचार जगजाहिर है, फिर भी किसी जांच एजेंसी का ध्यान इस तरफ नहीं जा रहा। अगर आप के इन दावों को सच मान भी लिया जाए, तो भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि निगम में हो रहे भ्रष्टाचार की वजहों से क्या दिल्ली सरकार को भ्रष्टाचार करने का संवैधानिक अधिकार मिल जाता है? अगर ऐसा ही है, तो यह अधिकार उसे किसने दिया है? बेशक दिल्ली नगर निगम में आप द्वारा लगाए जा रहे कथित व्याप्त भ्रष्टाचार की भी जांच होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए पहल तो दिल्ली सरकार को ही करना होगा। बजाय इसके कि नगर निगम में हो रही कथित धोखाधड़ी को जड़ से मिटाने का प्रयास किया जाए, आम आदमी पार्टी उसके आधार पर खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हो गई। शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट से यह साफ जाहिर है कि दिल्ली सरकार ने संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उल्लघंन किया है। इस बारे में रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि समिति ने सरकार के मुख्य सचिव, विधि एवं वित्त सचिव सहित अन्य अहम विभागीय सचिवों को तलब कर सरकार के इन फैसलों में संबद्ध अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की है। जांच के दौरान अधिकारियों ने समिति को यह स्पष्ट किया कि उन्होंने इस बाबत सरकार को अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण के बारे में समय-समय पर आगाह किया था। अधिकारियों ने कानून के अनुसार दिल्ली में उपराज्यपाल के सक्षम प्राधिकारी होने के तथ्य से भी सरकार को बार-बार अवगत कराया था। इतना ही नहीं, अधिकारियों द्वारा इसके गंभीर कानूनी परिणामों के प्रति भी सरकार को सहजभाव से आगाह किया गया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है कि सभी फाइलों के अवलोकन के आधार पर यह सर्वमान्य है कि सरकार ने अधिकारियों के परामर्श को दरकिनार कर संवैधानिक प्रावधानों, सामान्य प्रशासन से जुड़े कानून और प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन किया है। इसमें सबसे ज्यादा चिंतनीय दिल्ली सरकार द्वारा उपराज्यपाल के संवैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण है। यह जगजाहिर है कि पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग व केजरीवाल के बीच अधिकारों को लेकर हमेशा तनातनी बनी रही। बाद में इस लड़ाई ने कानूनी रूप अख्तियार कर लिया और मामला दिल्ली हाईकोर्ट में जा पहुंचा था। हालांकि न्यायालय ने केजरीवाल को झटका देते हुए उपराज्यपाल को दिल्ली का सर्वोच्च संवैधानिक प्राधिकारी माना था। समिति की रिपोर्ट यह जाहिर करती है कि दिल्ली सरकार द्वारा लिए गए अधिकांश फैसलों में उपराज्यपाल से पूवार्नुमति नहीं ली गई है। साथ ही फैसलों को लागू करने के बाद उपराज्यपाल की अनुमति लेने और सरकार द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसले करने जैसी अनियमिततायें शामिल हैं। सबसे ज्यादा चिंता का विषय यह है कि केजरीवाल सरकार संवैधानिक मूल्यों को दरकिनार कर तानाशाही रवैया अपना रही है। इस रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि दूसरी बार सत्ता में आने के बाद आप सरकार ने संविधान और अन्य कानूनों में वर्णित दिल्ली सरकार की विधायी शक्तियों को लेकर बिल्कुल अलग नजरिया अपनाया था। देखना है कि नगर निगम चुनावों में आप इस मुद्दे पर किस तरह बचाव करती है। हालांकि कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर एक्शन लेते हुए उपराज्यपाल अनिल बैजल ने आप के मुख्यालय के लिए बंगले का आवंटन रद्द कर दिया है और पार्टी से उसका दफ्तर खाली करने को कह दिया है। समिति का यह मानना है कि आम आदमी पार्टी ने इस बंगले में अवैध तरीके से अपना दफ्तर खोला था। इसके लिए पार्टी ने तय मानकों, नियमों व जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया था। इसी तरह दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल की नियुक्ति, मोहल्ला क्लिनिक के सलाहकार पद पर स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की बेटी की नियुक्ति और स्वास्थ्य मंत्री के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) के तौर पर निकुंज अग्रवाल की नियुक्ति जैसे मामले केजरीवाल सरकार की इमानदारी व जनता के प्रति निष्ठा की पोल खोलते हैं। सबसे आश्चर्यजनक ढंग से नियुक्ति का मामला रोशन शंकर को पर्यटन मंत्रालय में ओएसडी नियुक्त करने का है। कमेटी ने अपनी जांच में यह पाया है कि रोशन शंकर की नियुक्ति से पहले इस तरह का कोई पद अस्तित्व में था ही नहीं। केवल मनमाफिक नियुक्ति के लिए इस पद का सृजन किया गया था, जिस पर उपराज्यपाल से अनुमति लेने की भी जरूरत महसूस नहीं की गई थी। उपराज्यपाल के इस फैसले के बाद यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी की मुसीबतें और बढ़ने वाली हैं। ऐसे तमाम फैसलों पर तलवार लटक सकती है, जिन पर उप-राज्यपाल की अनुमति नहीं ली गई है।


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