आधुनिक चोर आचरण संहिता की महत्ता

asiakhabar.com | December 28, 2019 | 2:03 pm IST
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संयोग गुप्ता

प्राचीन काल में चोरों के दाढ़ी हुआ करती थी। चोरी करने का वही व्यक्ति अधिकारी होता था जो अदद एक घटाटोप
दाढ़ी रखता था। चोर यूनियन में दाढ़ी रहित व्यक्ति का प्रवेश निषेध था। चोरों की दाढ़ी उनके चोरत्व को एक नई
ऊंचाइयों पर स्थापित करती। चोर शुद्ध रूप से चोर ही हुआ करते थे। चोर न तो वे डाकू होते थे और न ही नेता
या उठाईगिरे फिर। हर एक चोर की अपनी एक विशिष्ट प्रकार की दाढ़ी हुआ करती थी। वे अपनी दाढ़ी को चोर-रस
निष्पादन हेतु एक नई ऊंचाइयों पर स्थापित करते थे। लोग चोरों की पहचान करने के लिए तिनकों का बोरा लिए-
लिए घूमते थे। वे तिनके बड़े ही विचित्र किस्म के होते थे। दाढ़ी धारक चोर की दाढ़ी में ये तिनका महाराज
ससम्मान विराजित हो जाया करते थे। फलत: चोर की दाढ़ी में तिनका जैसी साइंसजयी मालवती कहावत का
आविष्कार हुआ। आजकल के चोर बड़े गप्पड़बाज बन पड़े हैं। पता ही नहीं पड़ता है कि जेबकतरा है या चोर! चोर है
या डाकू या फिर कोई नेता! जिसे नेता समझते हैं वह अंत में चोर निकलता है। बड़ी हेराफेरी है साहब!
इधर चोरों ने तीव्र गति से विकास किया है। चोरों ने सबसे पहले अपनी दाढ़ी हटाई। फलत: बेचारा तिनका भी
अपना आश्रय स्थल छोड़ बैठा। चोर सफाचट हो गए। क्लीन शेव्ड, व्हाइट कॉलर्ड! परम गूगलबाज ऑनलाइनी!
क्रेडिट कार्ड धारक इंटरनेट के मास्टर पीस पक्के स्मार्ट ऑनलाइन चोर! चोरों के मामले में चेहरे की दाढ़ी पेट तक
पहुंच गई। अतः चोर्यकला में वह पेट में दाढ़ी रखने लगे। इस प्रकार स्मार्ट विकास हुआ। चोर की दाढ़ी हट गई।
चोर ने गाड़ी रखना शुरू किया। पहले दाढ़ी में तिनका हुआ करता था। अब गाड़ी में पुलिस होती है। कुल मिलाकर
आधुनिक चोर की गाड़ी में पुलिस होती है। अब मुहावरा चोर की गाड़ी में पुलिस बन पड़ा है। यह मुहावरा दुधारी है।
इसे चोर की गाड़ी में पुलिस कहो या पुलिस की गाड़ी में चोर कहो। बात एक ही है। चोर यूनियन में चोर और
पुलिस का समान रूप से आदर किया जाता है। अक्सर ही यह पता लगाना मुश्किल होता है कि कौन चोर और
कौन पुलिस? अब पुलिस-चोर मौसेरे भाई कहकर मुहावरे को सिर से पांव तक बदल दिया गया है। पहले चोर शुद्ध
रूप से चोरी ही करता। पर नवीन चोर चोरी करने से चूकता भी है तो पुलिस हेरा-फेरी से कभी भी नहीं चूकती।
अगर चोर कभी-कभार हेरा-फेरी को अंतरिम रूप से स्थगित कर दे तो पुलिस भाई को चोरी करने के साथ-साथ हेरा-

फेरी करने का अतिरिक्त प्रभार संभालना पड़ता। इस हेरा-फेरी को चोर भाई बड़ी ही ईमानदारी से अपने मौसेरे भाई
पुलिस जी को अर्पित करता है। पुलिस जी ऐसी धनराशि को हफ्ता संस्कार कहकर श्रद्धा पूर्वक ग्रहण करती है।
हफ्तार्पण संस्कार के दौरान चोरों की ईमानदारी देखने लायक होती है। हफ्तार्पण संस्कारवान चोर कभी पकड़ा नहीं
जाता। साथ ही तिनका न होने से पहचाना भी नहीं जाता। अब अफसर-नेता आदि के रूपों में चोर देव जनता को
अपने चोर्य कर्म में बांधे रखता है। वह अपने चोर्य कर्म को नित नई ऊंचाइयां प्रदान करता रहता है। आधुनिक चोर
देव कभी-कभी किसी सिरफिरे व्यक्ति द्वारा वह पकड़ भी लिया जाता है तो वह पानी-पानी नहीं होता। पहले चोर
पकड़े जाने पर पानी-पानी होते थे, फलतः पानी का संकट नहीं था। अब चोरों को पानी-पानी होते शर्म महसूस होती
है इसलिए चारों और पानी का बड़ा भयंकर संकट भी खड़ा हो गया है। अब एक अदना सा ताबूत चोर भी खड़ा
होकर पानी-पानी नहीं होता। चोर की गाड़ी में पुलिस बैठकर बड़े मजे से मौज करती है। आधुनिक चोर आचरण
संहिता का पालन करने वाले समस्त चोर सज्जनों को कोटि-कोटि परनाम


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