आधार कार्ड संबंधी डाटा की सुरक्षा को लेकर हाल में चिंताएं बढ़ी हैं। लेकिन क्या इन चिंताओं का आधार सचमुच पुख्ता है? हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार ने खबर छापी कि आधार के डाटा बैंक में सेंध लगाने वाला एक नेटवर्क वॉट्सएप के जरिए सक्रिय है। इस धंधे से जुड़े लोग महज 500 रुपए में लॉग-इन नेम और पासवर्ड बेच रहे हैं, जिनके जरिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के पास मौजूद तकरीबन एक अरब व्यक्तियों की सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं। स्वाभाविक है कि इससे लोगों की फिक्र बढ़ी। यूआईडीएआई की इसके लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उसने इन चर्चाओं को गंभीरता से लिया। बुधवार को उसने आधार डाटा की सुरक्षा और मजबूत करने के उपाय घोषित किए। इसके तहत आधार कार्ड का उपयोग करते समय 12 अंकों का आधार नंबर बताना जरूरी नहीं रह जाएगा। आम उपयोग के लिए लोग खुद यूआईडीएआई की वेबसाइट पर जाकर अपने आधार नंबर से अस्थायी वर्चुअल आईडी प्राप्त कर सकेंगे। इससे स्थायी आधार संख्या की गोपनीयता बनी रहेगी।
साफ है, यूआईडीएआई लोगों की चिंताओं को लेकर संवेदनशील है। साथ ही डाटा हिफाजत के दोहरे इंतजाम करने में वो सक्षम है। इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखें, तो आधार कार्ड योजना को लेकर बार-बार उठाए जाने वाले सवालों की प्रासंगिकता संदिग्ध नजर आती है। इसी बात पर यूआईडीएआई के पूर्व अध्यक्ष नंदन नीलेकणि ने भी जोर दिया है। कहा है कि आधार को बदनाम करने की सुनियोजित मुहिम चलाई जा रही है। स्मरणीय है कि ऐसा अभियान तभी शुरू हो गया था, जब पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने आधार कार्ड की योजना बनाई। बुद्धिजीवियों का एक हिस्सा तब से कह रहा है कि इससे लोगों की निजता का उल्लंघन होगा और आमजन की निजी सूचनाएं लीक होंगी, जिसका लाभ कॉर्पोरेट सेक्टर उठाएगा। लेकिन ऐसा कैसे होगा, इस बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य सामने नहीं है।
बहरहाल, बेहतर यह होगा कि ऐसे लोग सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का इंतजार करें। कोर्ट की संविधान पीठ आधार को लेकर उठी तमाम आपत्तियों पर गौर कर रही है। इसी महीने वो इसकी सुनवाई शुरू करने वाली है। इस बीच अपुष्ट रिपोर्टों के जरिए आधार को लेकर संदेह का माहौल बनाना कतई वांछित नहीं है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि ये अपने ढंग की अनोखी योजना है। इससे तमाम भारतीयों को विशिष्ट पहचान-पत्र मिल रहा है। इसके जरिए सरकारी योजनाओं का वे बेहतर ढंग से लाभ उठा सकते हैं। साथ ही कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के क्रम में दशकों से जारी भ्रष्टाचार नियंत्रित हो रहा है। हकीकत यह है कि इस योजना ने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है। इतनी बड़ी परियोजना में कुछ दिक्कतें आना या खामियां उभरना अस्वाभाविक नहीं है। ऐसी बातों को जरूरत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए। अपेक्षित यही है कि सभी इस बारे में रचनात्मक रुख अपनाएं। बाकी चिंताओं के लिए सबको सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए, जिसके सामने आधार से संबंधित सभी पहलू व पक्ष रखे जाएंगे।