अर्पित गुप्ता
देश के आजाद होने के समय बंटवारे एवं सांप्रदायिक हिंसा का तांडव बाद के वर्षों में कुछ क्षेत्रों में अकाल से
भुखमरी आदि चुनौतियों का समय-समय पर भारतीय नौकरशाही सफलतापूर्वक सामना कर चुकी है तथा जनतांत्रिक
ढांचे के अनुरूप अपने को पूर्ण रूप से ढालने में विफलता तथा अपवाद स्वरूप यदा कदा भ्रष्टाचार एवं संवेदनहीनता
कि आमजन से उलाहना भी सुनती रही है फिर भी लोगों के मन में नौकरशाही की छमता पर विश्वास बना रहा है।
वर्ष 1970-71 में दुनिया ने पहली बार भारतीय नौकरशाही की प्रबंध कौशल तथा पुरुषार्थ को सलाम किया जब
देश की आर्थिक स्थिति तथा अन्न के अपर्याप्त भंडार के बाद भी बंगला मुक्ति संग्राम के कारण अचानक भारत में
आए दो से तीन करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थियों को कैंपों में ठहराने भुखमरी से बचाने तथा जीवन एवं स्वास्थ्य रक्षा
की सुविधा उपलब्ध कराने में सफल रही थी यही नहीं लगभग एक लाख आत्मसमर्पण कर चुके पाकिस्तानी फौज
को पाकिस्तान जाने तक उचित देखभाल द्वारा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की प्रशंसा भी प्राप्त किया था मैं
उन दिनों कॉलेज का छात्र था। लेकिन अखबारों से देश दुनिया की गतिविधियों एवं परिस्थितियों में दिलचस्पी
रखता था जो देश खुद गरीब था स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत नहीं थी तथा अन्न उत्पादन में पूर्ण आत्मनिर्भर नहीं था
उस देश की नौकरशाही ने कैसे इतने बड़े मानवीय संकट से देश को सफतापूर्वक निकाल लिया था?
मुझे अब भी विश्वास है कि आर्थिक महाशक्ति अमेरिका में अचानक दो-तीन करोड़ लोगों की बाढ़ आ जाती तो
उसकी व्यवस्थाएं तथा स्वास्थ्य एवं सरकारी सेवाएं भी अस्त-व्यस्त हो जाती। आज भारतीय नौकरशाही के समक्ष
उससे बड़ी चुनौती उत्पन्न हो गई है राजनीतिक नेतृत्व ने नागरिकों के जीवन रक्षा हेतु लाकडॉउन जैसा अप्रिय एवं
कठोर निर्णय लेकर साहस एवं जोखिम उठाने की क्षमता का अद्भुत प्रदर्शन किया है, अब नौकरशाही की
जिम्मेदारी है कि लाकडाउन से उत्पन्न होने वाले नकारात्मक प्रभावो (अति आवश्यक सुविधाओं का अभाव) से
अपने प्रबंध क्षमता तथा कौशल से कैसे बचाती है?
निसंदेह लंबे समय तक चले लाकडाउन से नागरिकों जिसमें 80% से ऊपर प्रतिदिन कमाने खाने वाले हैं उनकी
न्यूनतम आवश्यकता पूरी होती रहे, सरकारी तंत्र में जोश एवं समर्पण तथा सेवा भाव कायम रहे, तथा सुरक्षाबलों
की सख़्ती विवेक सम्मत दिखाई पड़ती रहे तथा देश मानसिक एवं भौतिक अवसाद एवं अभाव से मुक्त बना रहे
इस कठिन चुनौती को स्वीकार करने की प्रतिबद्धता की परीक्षा पास करना ही होगा। मुझे विश्वास है भारतीय
नौकरशाही में यह अद्भुत क्षमता सुप्त अवस्था में हमेशा बना रहता है जो समय-समय पर कभी-कभार अपनी
झलक दिखाता रहा है। मुझे याद है आपातकाल जिसे इंदिरा जी ने सत्ता बचाने के लिए लागू किया था उस दौरान
बीस सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने में कुछ जगहों पर सरकारी तंत्र द्वारा की गई विवेक हीन तथा अमानवीय
कृत्यो ने सरकार के खिलाफ गहरे आक्रोश का बीजारोपण कर दिया था।
प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि आपातकाल के घटनाओं तथा परिणामों को ध्यान में रखते हुए
भी नागरिकों के जीवन को बचाने हेतु एक आवश्यक कठोर कदम को उठाया है हालांकि उदार लोकतंत्र में ऐसा
कदम उठाने से राजनीतिक नेतृत्व सौ बार सोच विचार करता रहा है अमेरिका, इटली, फ्रांस, ब्रिटेन उसी हिचक का
खामियाजा भुगत रहे हैं। अपवाद स्वरूप कुछ केंद्रों पर छोटी मोटी अव्यवस्था कुछ राशन कोटेदारों द्वारा वितरण में
गड़बड़ी की छिटपुट जानकारियां मिल रही है जिसे जल्दी ठीक कर लिए जाने की उम्मीद भी है। पूरे देश में
लाकडाउन के दौरान पुलिसकर्मियों के सहयोगी एवं मानवीय प्रयासों की प्रशंसा भी हो रही है जबकि कुछ दिन पूर्व
रामकोला थाने में दो किशोरों के साथ पुलिस की बदसलूकी एवं पिटाई चिंतित करने वाली घटना रही है, जानकारी
के अनुसार भूखों को भोजन पैकेट बांटने के दौरान थाने में आये कुछ लोगों को भोजन पैकेट देते हुए मोबाइल से
खींची गई तस्वीर को दो किशोर स्वयंसेवकों ने सोशल मीडिया पर डाल दिया था अनजाने में हुई असावधानी पर
क्रूरतापूर्ण बर्ताव, तर्क एवं विवेक सम्मत ठहराया नहीं जा सकता है।
कोरोना वायरस की त्रासदी से देश को सकुशल बाहर निकाल ले जाने तक लाकडाउन को जारी रखना अप्रिय लेकिन
अति आवश्यक है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश का सामूहिक संकल्प प्रकट करने के लिए घंटी बजाने तथा दीप जलाने
जैसा देसी पद्धति का सहारा लिया है उक्त कार्यक्रम सरकारी तंत्र को साहस एवं समर्थन देने के साथ ही सामूहिक
अलगाव एवं अवसाद को भी समाप्त करने वाला भी साबित हो रहा है। देश के प्रत्येक नागरिक तक न्यूनतम
भोजन सामग्री, दवा एवं आवश्यक वस्तु पहुंचता रहे कोरोना जांच की संख्या बढ़े तथा निरंतर स्वास्थ्य सेवाएं
मजबूत बनती रहे, बड़े एवं संभावित आर्थिक संकट को सहारा देने वाले कृषि क्षेत्र की गतिविधियां सुचारू रूप से
चलती रहे तथा लाक डाउन के बाद की परिस्थिति का सामना करने हेतु भारतीय नौकरशाही एवं नीतिकारों को
अपना संपूर्ण समर्पित करने हेतु प्राण, प्रण से जुड़ना होगा। विश्वास है वर्तमान संकट के बाद भारतीय नौकरशाही
का दुनिया एहतराम करेगी।