बीते बुधवार को स्वास्थ्य मंत्रालय ने रोजाना की ब्रीफिंग में बताया कि एक ही दिन में कोरोना वायरस से 386
भारतीय संक्रमित हुए हैं। यह अभी तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। हालांकि इस बढ़ोतरी को ‘राष्ट्रीय रुझान’ नहीं
माना गया है। दिल्ली मरकज में मजहबी जमात के जमावड़े के कारण यह संख्या बढ़ी है। अभी और भी चौंकाने
वाले आंकड़े सामने आ सकते हैं। विशेषज्ञ चिकित्सक लॉकडाउन के बावजूद इसे ‘विस्फोटक’ आसार मानते हैं।
उनका अभी तक का आकलन था कि 95 फीसदी भारतीयों ने लॉकडाउन का शिद्दत से पालन किया है, लिहाजा
चिकित्सक 5 अप्रैल तक कुछ विशेष सकारात्मक परिणामों की उम्मीद कर रहे थे। चिकित्सकों का यह भी आकलन
था कि लॉकडाउन की अवधि पूरी होने तक कोरोना का असर भी कम होने लगेगा। शायद इसीलिए 15 अप्रैल से
रेल सेवाओं और हवाई यात्रा को खोलने के संकेत मिले हैं, क्योंकि पहली अप्रैल से बुकिंग शुरू हो चुकी है, लेकिन
मरकज की जमात ने ऐसी विस्फोटक स्थिति पैदा कर दी है कि तमाम आकलन और उम्मीदें गड़बड़ाने लगी हैं।
बुधवार को ही मरकज का एक वीडियो भी सार्वजनिक किया गया। उसमें जमातियों की भीड़ एक हॉलनुमा जगह पर
एक-दूसरे से सटकर बैठी और बतियाती हुई दिखाई दी है। चिकित्सक इसे इतना बड़ा ‘क्रॉस संक्रमण’ का उदाहरण
मान रहे हैं कि भारत में कोरोना वायरस तीसरे चरण में बेशक आंशिक तौर पर प्रवेश कर चुका है। भारत सरकार
इसी चरण से बचने के लिए तमाम प्रयास और प्रयोग कर रही थी, लेकिन जमातियों के ‘क्रॉस संक्रमण’ की खबरें
देश भर से आ रही हैं, लिहाजा भारत में संक्रमितों की संख्या 2000 के पार और 50 मौतें हो गई हैं। प्रधानमंत्री
मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की और सभी राज्यों की स्थिति
जानने की कोशिश की। कैबिनेट सचिव ने सभी पुलिस महानिदेशकों से विमर्श किया है और केंद्रीय गृह सचिव ने
सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है। स्पष्ट निर्देश है-लॉकडाउन का सख्ती से पालन कराएं। सर्वोच्च
न्यायालय का आदेश लागू करें। अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। सवाल है कि हमारे देश
में कुछ ‘काली भेड़ें’ ऐसी हैं, जो देशहित को नहीं मानतीं और इसके खिलाफ ही दुष्प्रचार करती हैं, तो कोरोना
दूसरे चरण तक ही सीमित कैसे रखा जा सकता है? देश की राजधानी दिल्ली के तुगलकाबाद में ही क्वारंटीन में
रखे गए लोगों ने मेडिकल टीम पर ही थूक दिया और उसे गालियां दीं। कुछ लोग स्टाफ को मारने के लिए आगे
लपके, तो उन्हें भाग कर जान बचानी पड़ी। बिहार में कुछ लोग क्वारंटीन को ही तोड़ कर भाग गए और बाद में
हिंसक होने लगे। इसी तरह इंदौर सरीखे संभ्रान्त शहर में संक्रमित लोगों ने भी स्वास्थ्य कर्मियों पर थूका और उन्हें
पत्थर मारे। नोएडा के सेक्टर 16 में छत पर 11 मुसलमान ‘सामूहिक नमाज’ पढ़ रहे थे कि पुलिस ने छापा मारा
और केस दर्ज कर लिया। क्या इसी तरह देश कोरोना के खिलाफ जंग जीत सकता है? ‘काली भेड़ें’ सिर्फ यह
जान लें कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमरीका ने कोरोना के सामने घुटने टेक दिए हैं। उन्हें आगाह करना
पड़ा है कि यदि नियमों का पालन नहीं किया गया, तो 15 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे। राष्ट्रपति ट्रंप
की इस चेतावनी के बावजूद वहां के कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि किसी भी स्थिति में करीब 22 लाख
अमरीकी कोरोना के शिकार होकर मर सकते हैं! दुनिया में कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या 9 लाख पार
कर चुकी है। अमरीका समेत पश्चिम के सभी देश ऐसे हैं, जो अपने जीडीपी का 9 से 18 फीसदी तक स्वास्थ्य
मामलों पर खर्च करते हैं। भारत की हैसियत इन देशों की तुलना में क्या है, जहां स्वास्थ्य के लिए मात्र 1.28
फीसदी जीडीपी ही है। दरअसल विडंबना यह है कि भारत में अब भी लोग ‘सामाजिक और शारीरिक दूरी’ की
परिभाषा नहीं जानते। यदि कोरोना से जीतना है, तो यही पहला और बुनियादी हथियार है। चिकित्सक कह रहे हैं
कि अब भी स्थिति काबू में की जा सकती है, यदि मरकज में ‘क्रॉस संक्रमण’ करने वाले चेहरे सामने आ जाएं और
क्वारंटीन या इलाज के लिए तैयार हो जाएं। फिलहाल वे भीड़ में हैं और भीड़ कितनों को संक्रमित कर सकती है,
अभी तक यह तो समझ में आ जाना चाहिए था।