विकास गुप्ता
कोरोना काल के बाद मोदी सरकार सोमवार को पहला बजट पेश करेगी। बजट में सरकार के सामने ग्रोथ और
राजकोषीय घाटे दोनों को ही साधने की चुनौती होगी। कोरोना महामारी ने दुनियाभर की सरकारों और
व्यापारियों को अपने तौर-तरीकों में बदलाव के लिए मजबूर किया है। अब तेजी से वैक्सीनेशन के साथ भारत
एक बार फिर विकास के रास्ते पर वापसी कर रहा है। ऐसे में ग्राहक, बिजनेस और उद्योग केंद्रीय बजट
2021 से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं ताकि महामारी के दौर में उन्हें हुए नुकसान की भरपाई की जा सके
और आने वाले दिनों में उन्हें तरक्की के मौके मिल सकें। कोरोना महामारी के दौरान सरकार ने आत्मनिर्भर
भारत का मंत्र दिया था। आत्मनिर्भरता का सपना मैनुफैक्चरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश से ही साकार हो
सकता है। मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ के लिहाज से पिछले बजट में नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन की
घोषणा की गई थी। इसके तहत 2020 से 2025 के बीच करीब 7300 परियोजनाओं पर 111 लाख करोड़
रुपए खर्च होने हैं लेकिन इन परियोजनाओं के बारे में और स्पष्टता की जरूरत है। कोरोना प्रसार के बावजूद
एग्रीकल्चर सेक्टर ने शानदार वृद्धि की है। देश में सबसे ज्यादा लोग इसी सेक्टर में काम करते हैं। इस बजट
में सरकार को कृषि निर्यात को प्रोत्साहन देना चाहिए। एग्रीकल्चर सेक्टर के लिए योजनाओं और छूट की
घोषणा की जानी चाहिए। रियल एस्टेट की बात करें तो 2020 में ज्यादातर समय सुस्त पड़े रहने के बाद अब
सीमेंट, स्टील और पेंट जैसे सेक्टर में भी तेजी आने की उम्मीद है। इसलिए रियल स्टेट इनवेस्टमेंट को बढ़ावा
देने के लिए कम ब्याज दरों पर लोन दिया जाना चाहिए। विदेशी निवेशकों को भी इस सेक्टर में मौका दिया
जाना चाहिए। यह सेक्टर अपनी गति को वापस पा सका तो प्रवासी और अकुशल मजदूरों को फिर से काम
मिल सकेगा जो महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। इसके साथ ही पर्सनल और कॉर्पोरेट इनकम टैक्स
में कटौती की जानी चाहिए। सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में मदद को बढ़ाया जाना चाहिए। सरकार
के सामने इस वक्त दोहरी चुनौती है। एक ओर अर्थव्यवस्था को बढ़ाना है तो दूसरी ओर राजकोषीय घाटे को
नियंत्रित रखना है। ऐसे में विदेशी निवेश सरकार कि मुश्किलें आसान कर सकता है। चीन से आने वाली
कंपनियों को बड़े पैमाने पर भारत में आकर्षित करने के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार की जरूरत है।
बजट में कंपनियों के लिए टैक्स सिस्टम में सुधार किया जाए जिससे आय और निवेश के ज्यादा मौके बन
सकें। श्रम और भूमि से जुड़े कानूनों को अच्छी तरह लागू किया जाए। सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले
वर्ष 2021-22 के बजट के समक्ष सात बड़ी चुनौतियां होंगी। एक, कोविड-19 से निर्मित अप्रत्याशित आर्थिक
सुस्ती का मुकाबला करने और विभिन्न वर्गों को राहत देने के लिए व्यय बढ़ाना। दो, रोजगार के नये अवसर
पैदा करना। तीन, तेजी से घटे हुए निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए आकर्षक प्रावधान करना। चार, बैंकों में
लगातार बढ़ते हुए एनपीए को नियंत्रित करना और क्रेडिट सपोर्ट को जारी रखना। पांच, महंगाई पर नियंत्रण
रखना। छह, नयी मांग का निर्माण करना और सात, कोरोना वायरस से बचाव के लिए टीकाकरण एवं अन्य
स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च में वृद्धि करना। ऐसे में वित्तमंत्री वर्ष 2021-22 के बजट में राजकोषीय घाटे
(फिजिकल डेफिसिट) का नया खाका पेश करती हुई दिखाई दे सकती हैं। गौरतलब है कि सरकार ने चालू वित्त
वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटे को 3.5 प्रतिशत सीमित करने का लक्ष्य रखा था। कोरोना महामारी के
कारण जीडीपी में संकुचन और राजस्व संग्रह तथा व्यय के बीच बढ़ते हुए अंतर के कारण राजकोषीय घाटा
बढ़कर 7 से 8 प्रतिशत के बीच पहुंच सकता है। यह घाटा आगामी वित्त वर्ष में बढऩे की पूरी संभावनाएं रखता
है।