विनय गुप्ता
वर्ष 2014 में अपने चुनावी वायदों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वह वाराणसी को विश्व की
आध्यात्मिक राजधानी बनाएंगे। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के साथ अयोध्या को आध्यात्मिक
नगरी बनाने का एजेंडा हाथ में लिया जा सकता है। वैश्विक दृष्टि से अयोध्या की स्थिति वाराणसी से उत्तम हो
सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिस महान व्यक्ति को हिंदू श्री राम के रूप में मानते हैं, उसी व्यक्ति को
अब्राहमिक धर्मजन यानी यहूदी, ईसाई और मुस्लिम जन इब्राहिम या अब्रहाम के रूप में मानते हैं।
यदि हम राम को केवल हिंदुओं के अवतार मानने के स्थान पर विश्व के सभी धर्मों के जनक के रूप में स्थापित
करें तो अयोध्या को विश्व की आध्यात्मिक राजधानी का स्थान प्राप्त हो जाएगा। जिस प्रकार सरकार ने बोधगया,
लुम्बिनी एवं कुशीनगर आदि स्थानों को बौद्ध तीर्थाटन सर्किट के रूप में विकसित किया है, उसी प्रकार अयोध्या
को भी विश्व तीर्थाटन का केंद्र बनाया जा सकता है। सरयू नदी का सौंदर्य और श्री राम का आदर्श दुनियाभर के
लोगों को अपनी ओर आकर्षित करेगा और दुनियाभर से पर्यटक अयोध्या दर्शन को आएंगे, जिससे राज्य में राजस्व
बढे़गा और अयोध्यावासियों के लिए रोजगार के अवसर खुलेंगे। आज सऊदी अरब को मक्का से 70000 करोड़
रुपए प्रति वर्ष की आय होती है। इससे चार गुणा आय अयोध्या से हो सकती है।
राम और इब्राहिम के जीवन वृत्त में तमाम समानताएं पाई जाती हैं। जैसे राम के तीन भाई थे जिसमें एक का नाम
था लक्ष्मण, इसी के समान इब्राहिम के दो भाई और एक भतीजा था जिनका नाम था लॉट। बाइबिल के अनुसार
इब्राहिम का पूर्व का नाम अबराम था। अब का अर्थ है पिता। अतः इब्राहिम का अर्थ हुआ ‘पिता राम’। इस प्रकार
‘राम’ नाम ‘इब्राहिम’ के अंदर निहित है। इसी प्रकार सीता और सारा, लॉट और लक्ष्मण भी एक ही व्यक्ति के नाम
होने के संकेत देते हैं। राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ दक्षिण को गए तो इब्राहिम अपनी पत्नी
सारा और भतीजे लॉट के साथ दक्षिण को गए। दक्षिण में राम की पत्नी सीता का लंका के राजा रावण के द्वारा
हरण किया गया। तत्पश्चात राम ने रावण का वध करके सीता को हासिल किया और अयोध्या वापस लौट आए।
ठीक ऐसी ही स्थिति इब्राहिम की भी हुई।
जब इब्राहिम दक्षिण गए तो वहां के लोग सारा के नूर पर फिदा हो गए। वे सारा को वहां के फिरान, जिस नाम से
वहां के राजा जाने जाते थे, के दरबार में ले गए। सारा के वहां आने के बाद फिरान को मुश्किलों का सामना करना
पड़ा। बाइबिल में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता है कि क्या मुश्किलें आईं, मात्र इतना ही बताया गया है कि
फिरान को परेशानियों का सामना करना पड़ा। तत्पश्चात फिरान ने सारा को इब्राहिम को बाइज्जत वापस लौटा
दिया। इसके बाद इब्राहिम अपनी पत्नी सारा के साथ अपने घर ‘आई’ नामक स्थान पर आए। इब्राहिम के स्थान
‘आई’ और राम के स्थान ‘अयोध्या’ के नाम में भी समानता दिखती है। वापस लौटने के बाद इब्राहिम और लॉट के
भेड़ पालकों में विवाद हुआ और वे एक-दूसरे से अलग हो गए। इसी के समानांतर दुर्वासा मुनि के प्रकरण के बाद
राम और लक्ष्मण में अलगाव हुआ। अन्य समानताओं का भी उल्लेख किया जा सकता है।
इतने से ही झलक मिलती है कि राम और इब्राहिम के जीवन वृत्त में समानता है और यह इनके एक ही व्यक्ति
होने के संकेत देते हैं। हिंदू और एब्राहमी धर्मों में प्रमुख अंतर यह दिखता है कि हिंदू मूर्ति की पूजा करते हैं जबकि
एब्राहमी धर्म निर्गुण निराकार ईश्वर की साधना करते हैं। लेकिन राम के समय हिंदू धर्म की स्थिति और आज के
हिंदू धर्म की स्थिति में अंतर हो सकता है। योग वासिष्ठ के अनुसार युवावस्था में राम जब तीर्थाटन करके आए,
तब उनमें वैराग्य आ गया। संसार के प्रति उनकी घोर अरुचि हो गई।
उन्होंने कहा कि इस संसार के प्रपंच में पड़ने का क्या लाभ है जब इसका अस्तित्व ही नहीं है। उस समय गुरु
वशिष्ठ ने उन्हें जो सीख दी, वह योग वासिष्ठ ग्रंथ में बताई गई है। उन्होंने कहा कि यह संपूर्ण संसार एक ही
ब्रह्म से व्याप्त है और यह संसार भी उतना ही सत्य है जितना कि ब्रह्म। इसलिए इस संसार के हर कण में ब्रह्म
को देखते हुए आप इस संसार में कर्म कीजिए। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए राम ने अपनी दिशा बदल दी
और वह संसार में कर्मयोगी बने, यह सर्वविदित है। इस प्रकार योग वासिष्ठ के ‘ब्रह्म’ और एब्राहमिक धर्मों के
‘अल्लाह’ या ‘गॉड’ में समानता दिखती है। विश्व इतिहास को देखें तो ज्ञात होता है कि आदि शंकराचार्यजी के पहले
भारत का दर्जा विश्व गुरु का रहा था। लेकिन जब शंकराचार्य ने ‘ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या’ की जो शिक्षा दी, उसके
गलत समझे जाने के कारण भारत के विशिष्ठ जन संसार से दूर हो गए और हिंदू धर्म का पतन होने लगा। ईसा
बाद 1000 के बाद हम लगातार लोधियों, मुगलों और ब्रिटिशों के आक्रमणों के सामने टिक नहीं पाए।
ऐसा प्रतीत होता है कि देश में विशिष्ठ जनों ने सोचा कि इस जगत का कोई अस्तित्व तो है ही नहीं, अतः यदि
लोधी हम पर आक्रमण कर रहे हैं तो वह आक्रमण भी मिथ्या ही है। इसी क्रम में गुरुदेव रबिंद्र नाथ ठाकुर ने किंग
जॉर्ज के सम्मान में ‘जन गण मन…’ की रचना की। गुरुदेव का कहना था कि संपूर्ण विश्व एक ही है, इसलिए
विदेशी राजा का विरोध क्यों किया जाए? आक्रमणकारियों का डटकर मुकाबला करने के स्थान पर पलायनवादी
विवेचना के कारण हिंदू धर्म में गिरावट आई। मोदी जी ने विश्व में भारत को आध्यात्मिक गुरु बनाने का बीड़ा
उठाया है। इसके लिए उन्हें अनेकों शुभकामनाएं और साधुवाद।
राम मंदिर का निर्माण हमें अवसर देता है कि हम राम को केवल हिंदुओं के अवतार के रूप में न मानकर हिंदू एवं
एब्राहमिक धर्मों की साझा विरासत एवं जनक के रूप में स्थापित करें। अन्य धर्मों के साथ मिल कर राम-इब्राहिम
की सीख और आदर्शों की एक साझा समझ बनाएं। यदि हम अयोध्या को तीर्थाटन का केंद्र बनाने का संकल्प लें तो
यह कार्य दुष्कर नहीं है। यह संभव है कि आने वाले समय में अयोध्या का महत्त्व उसी प्रकार का हो जाए जैसा
वर्तमान में यहूदियों और ईसाइयों के लिए जरुसलम का और मुसलमानों के लिए मक्का का है। तीर्थ यात्रियों का
आवागमन देश का गौरव तो बढ़ाएगा ही, साथ ही अयोध्या वासियों की आर्थिकी में भी इजाफा होगा। वहां होटल,
विश्राम स्थल, रेल और स्थानीय उद्योगों का विस्तार होगा। बड़े सपने देखने और उन्हें साकार करने की जरूरत है।