देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में अनुशासनात्मक व्यवस्था हेतु नियम बनने का काम विधायिका को सौंपा गया है। नियमों
के अनुपालन हेतु कार्यपालिका को स्थापित किया गया। अनियमितताओं, अनुशासनहीनता एवं अमानवीय व्यवहार करने
वालों को दण्डित करने हेतु न्यायपालिका की संरचना की गई। नियमों के अनुपालन में की जाने वाली मनमानियों के
दावानल में आम आदमी हमेशा ही पिसता रहा है। न्याय पाने की जटिल प्रक्रिया में लम्बा समय, कानूनी लचीलापन और
तर्कों भरी बहस जैसे कारक, जनसाधारण में हताशा पैदा कर देते हैं। यही कारण है कि सरल जीवन जीने में विश्वास रखने
वाला व्यक्ति मजबूरन प्रशासनिक अमले का जुल्म सहने पर विवस होता रहा है। उदाहरण के लिए सडक सुरक्षा के नाम
पर चलाये जाने वाले अभियान में आमतौर पर केवल द्विपहिया वाहन चालकों का हैलमेट, चार पहिया के निजी वाहन
चालकों का सीट बैल्ट, कांच पर लगी फिल्म ही देखी जाती है। उन्हीं को ज्यादातर प्रताडित किया जाता है। गाली गलौज
से लेकर बेइज्जित करने तक के कृत्य खाकी वर्दी द्वारा अक्सर किये जाते हैं। अभियान के अधिकारियों-कर्मचारियों को
बिना नम्बर प्लेट की लग्जरी गाडियों से लेकर जेसीबी मशीनें, रोड रोलर और टैक्टर नहीं दिखते। उन्हें ओवर लोड ट्रक,
ट्राला भी नहीं दिखते। बिना फिटनेस के दौड रहीं खटारा बसों से भी नजरें चुरा ली जातीं हैं। बडे घरानों के नाबालिग
बच्चों की भर्राटा भरती मंहगी वाइक भी अनदेखी की जाती हैं। सडकों पर हुये अतिक्रमण के कारण रोज होने वाली
दुर्घटनायें को भी अनदेखा किया जाता है। और तो और अभियान में लगे वाहनों में भी उनके पंजीकरण, बीमा, प्रदूषण के
प्रमाण पत्र आदि जरूरी कागजात मौजूद नहीं होते। ऐसे वाहनों को चलाने वाले अधिकांश चालक बिना वर्दी के होते हैं
और उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी मौजूद नहीं होता। ऐसी घटनायें हमेशा ही सामने आती रहतीं हैं। इन सब के लिये
आखिर किसे जिम्मेवार ठहराया जाये। विचारों का प्रवाह चल ही रहा था कि फोन की घंटी ने व्यवधान उत्पन्न कर दिया।
फोन पर अपने पुराने मित्र और अनेक विवादास्पद केसों को अपने ज्ञान के कारण जिताने वाले जानेमाने अधिवक्ता
माताप्रसाद ओली की आवाज सुनते ही पुरानी यादें ताजा हो गई। वे नोएडा आये हुए थे और मिलने के इच्छुक थे। सो
तत्काल उन्हें अपने घर पर आमंत्रित कर लिया। निर्धारित समय पर वे हमारे आवास पर पहुंच गये। कुशलक्षेम पूछने-
बताने के बाद सुखद अतीत के मधुर स्पन्दन की अनुभूतियों ने हमे घेर लिया। बीते पलों को जीवित करने के बाद हमने
अपने मन में चल रहे समाज के व्यवस्थात्मक स्वरूप से जुडे विचारों पर उनकी प्रक्रिया चाही। सामाजिक स्वरूप के
पुरातन ढांचे से लेकर स्वतंत्र भारत की गणतांत्रिक प्रणाली तक की व्याख्या करने के बाद उन्होंने कहा कि देश में
स्वाधीनता के बाद से ही चरितार्थ होती रही है लाठी और भैंस की कहावत। सरकारी निर्णयों के अनुपालन का दायित्व
अधिकारियों-कर्मचारियों पर ही होता है जिनका कार्यकाल 5 वर्ष नहीं बल्कि उम्र के गणित पर निर्भर करता है। सुरक्षित
नौकरी की गारंटी देने वाले नियमों ने आवंटित कार्यों को निर्धारित समय सीमा में पूरा करने की वाध्यता को भी समाप्त
कर दिया है। बची कमी को न्यायालय की शऱण में निरीह बनकर दुहाई की सुविधा ने पूरा कर दिया है। तिस पर
अधिकारी संघ, कर्मचारी संघ जैसे संगठनात्मक ढांचों ने लापरवाह और मनमाना आचरण करने वालों को संरक्षण छत्र
देकर कोढ में खाज की स्थित निर्मित कर दी है। ऐसे में निर्धारित अभियानों की खानापूर्ति करने के लिए मध्यम वर्गीय
परिवारों को ही निशाना बनाया जाता है। यह वर्ग ही द्विपहिया वाहन या छोटे चारपहिया वाहन चलाता है। उसकी पहुंच
भी ऊपर तक नहीं होती है। सरल जीवन में विश्वास करने वाले किसी झंझट में नहीं पडना चाहते। सो लालफीताशाही की
मनमानियों के आगे सिर झुका देते हैं। उनका चेहरा तमतमा उठा। सांसे तेज चलने लगीं। उनकी भावभंगिमा से आक्रोश
की स्पष्ट झलक दिखाई पड रही थी। हमने उनसे इस तरह की घटनाओं पर न्यायालय के स्वयं संज्ञान लेने की बात कही तो
उन्होंने अदलतों पर प्रकरणों के बोझ को रेखांकित करते हुए कहा कि विशेष घटनाओं पर न्यायालय स्वंय संज्ञान भी लेते
है परन्तु यदि शोषण का शिकार व्यक्ति या समूह इस तरह के प्रकरण अदालतों में दायर करते हैं तो उन्हें हमेशा ही
वरीयता मिलती है। प्रभावित व्यक्ति को भी राष्ट्रहित में साहस दिखाना पडेगा, तभी कानून उसकी मदद कर पायेगा। यह
सत्य है कि स्वाधीनता के बाद से ही मध्यमवर्गीय परिवारों को ही सरकारों और अपराधियों ने एक साथ अपना निशाना
बनाया है और यह क्रम बदस्तूर जारी है। उच्चवर्गीय परिवार अपनी पहुंच के कारण और निम्नवर्गीय परिवार अपनी
लाचारी के कारण हमेशा ही सुरक्षित रहे हैं। यही कारण है कि अभियानों की लक्ष्यपूर्ति का साधन बनकर रह गये है
मध्यमवर्गीय परिवार। चर्चा चल ही रही थी कि नौकर ने शीतल पेय और स्वल्पाहार की सामग्री सामने रखी टेबिल पर
सजान शुरू कर दी। तब तक हमें अपने चल रहे विचारों को पुष्ट करने की पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो चुकी थी। सो भोज्य
पदार्थों का सम्मान करने का प्रयास करने लगे। इस बार इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात
होगी।