राजनीति का मूल मकसद बेशक समाजसेवा करना हो। पर, दूसरे मायनों में सिर्फ शासन-सत्ता हासिल करने तक होता है। महत्वाकांक्षाओं की इस अंधी दौड़ में आज के वक्त में तकरीबन राजनेता दौड़ लगा रहे हैं। इन्हीं सब बिंदुओं और सियासत में घटने वाली घटनाओं को ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ के तीसरे सीजन में गढ़ा है जिसका प्रसारण 26 मई से ‘डिज्नी प्लस हॉटस्टार’ से शुरू हो रहा है। मुख्य भूमिका में एक बार फिर अभिनेता ‘अतुल कुलकर्णी’ ही होंगे। इस बार क्या कुछ खास है इस शो में, इस संबंध में उन्होंने पत्रकार डॉ. रमेश ठाकुर से गुफ्तगू की। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से-
प्रश्नः क्या पहले सीजन के मुकाबले इस सीजन में कुछ बदलाव किया गया है?
उत्तर- कहानी पिछले सीजन से आगे बढ़ेगी। दृश्य और घटनाओं में जीवटता दिखेगी। उम्मीद है कि दर्शकों का पहले सीजन जैसा प्यार इस सीजन में भी मिलेगा। रही बात पिछले अनुभव की, तो निश्चित रूप से किरदार को संबल मिला है। नए सीजन में भी एक पारिवारिक पृष्टभूमि में परिवार के सदस्यों के मध्य सत्ता के समीकरण के बनते-बिगड़ते रिश्तों के किस्सों को गढ़ा है। ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ के तीसरे सीजन में लोकेशन और पटकथा में खासा बदलाव किया गया है। देखेंगे तो महसूस करेंगे।
प्रश्नः पिछले सीजन से मिलता जुलता है आपका किरदार?
उत्तर- देखिए, बदलाव तो प्रत्येक सीन में होता है और होना भी चाहिए। ताकि दर्शकों को बोरिंग ना हो। इस शो में भी काफी कुछ बदलाव किए गए हैं। कहानी की पटकथा में भी कुछ नए रचनात्मक किस्से जोड़े गए हैं, जो पूर्णतः रिसर्च पर आधारित हैं। बनावटी बातें ना के बारबर दिखाई देंगी। कुल मिलाकर असल जिंदगी की घटनाओं की कहानी है ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’। देखिए, राजनीति में अब विश्वासघात, धोखा, छलकपट ज्यादा बढ़ा है। इसके अलावा सत्ता पाने की जिस तरह की होड़ राजनेताओं में मची है। उसे इस सीजन में अच्छे से दर्शाया है। इसलिए मैं दावे से कह सकता हूं, देखने वालों को मजा आएगा।
प्रश्नः सह-अभिनेत्री प्रिया बापट आपकी बेटी के रोल में हैं?
उत्तर- जी हां। प्रिया बापट बेहतरीन कलाकार हैं। शो में पूर्णिमा गायकवाड़ के रूप में अपनी भूमिका को उन्होंने अच्छे से निभाया है। असल जिंदगी में सियासत में वूमेंस की संख्या जिस हिसाब से बढ़ रही है। उसी पर केंद्रित राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी और भागीदारी बढ़ने से समाज में कितना बदलाव आएगा, उसे बखूबी दिखाया है। बदलते सत्ता-समीकरण के प्रत्येक पहलू ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ में दर्शकों को दिखाई देंगे।
प्रश्नः सियासत की कड़वी सच्चाई दिखाकर, कहीं दुश्मनी तो मोल नहीं ले लेंगे आप?
उत्तर- जितनी भी फिल्मों का अब निर्माण हो रहा है। उन सभी में नेताओं की आलोचनाएं होती हैं जिसका कहीं कोई विरोध नहीं होता। इतना सब समझते हैं कि ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ में फर्क होता है। ठीक उसी तरह ‘सिटी आफ ड्रीम्स’ की कहानी में किरदारों को गढ़ा है। देखिए, राजनीति में आपसी संबंध, चाहे घरेलू हों या बाहरी उनके ज्यादा मायने नहीं होते हैं क्योंकि सियासत सब कुछ भुलवा देती है। तब, महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ जाती है, जहां सिर्फ शासन और सत्ता का सुख ही दिखाई पड़ता है।
प्रश्नः किसी सियासी दल या कोई खास राजनेता को तो टारगेट नहीं किया है?
उत्तर- बिल्कुल नहीं। शो चलचित्र होते हैं, मनोरंजन करते हैं जिसमें वास्तविक जीवों और वस्तुओं से कोई लेना देना नहीं। एक कलाकार अपने किरदार में जीता है, उसे किसी विवाद से लेना-देना नहीं होता और ना इस लफड़े में वो पड़ना चाहता है।