संयोग गुप्ता
हिमाचल प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव ने पिछले साल एक निर्देश पत्र, जो हिमाचल प्रदेश
विश्वविद्यालय सहित सभी सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों को भेजा है, इस पत्र में विभिन्न विद्याओं में दाखिला
लेने वाले विद्यार्थियों के लिए रोस्टर है। इस रोस्टर में खेलों व अन्य गतिविधियों के लिए मिलने वाला पांच-पांच
प्रतिशत आरक्षण गायब है। यह हिमाचल प्रदेश के खिलाडिय़ों के साथ कोरोना काल में बहुत बड़ा मजाक हो गया है।
शिक्षा का मतलब पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास है, मगर हम खेलों व अन्य गतिविधियों को
दरकिनार कर अपने विद्यार्थियों को किस प्रकार की शिक्षा देने जा रहे हैं, यह सोचने का विषय है। अगर रट्टा
लगाकर परीक्षा ही पास करनी है तो फिर शिक्षा संस्थानों की क्या जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में महाविद्यालय व
विश्वविद्यालयों में खेल विंग तो पहले ही नहीं थे, अब खेल आरक्षण भी खत्म कर हिमाचल सरकार विद्यार्थी
युवाओं को क्या संदेश देना चाहती है। हिमाचल प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह पढ़ाई में खेल आरक्षण जारी रखे
तथा राज्य में अधिक से अधिक सुविधा व प्रतिभा के अनुसार खेल विंग खोले ताकि हिमाचल प्रदेश के विद्यार्थी
खिलाडिय़ों का भला हो सके। पंजाब ने एक समय खेल विंगों के माध्यम से खेलों में श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त किया
हुआ था।
प्रतिभा व सुविधा के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में भी सरकार खेल विंग खोलती
है तो भविष्य में हिमाचल के खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। हिमाचल
प्रदेश के कई महाविद्यालयों के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा तैयार खड़ा यूं ही बेकार हो रहा है। इस
कॉलम के माध्यम से पहले भी इस विषय पर बहुत बार लिखा जा चुका है, मगर सरकार का रवैया उदासीन रहा है।
खेल विंगों के लिए सरकार को न तो खेल ढांचा खड़ा करना पड़ता है और न ही नया छात्रावास बनाना पड़ता है।
केवल खेल विशेष का प्रशिक्षक और खिलाडि़यों के लिए खुराक व रहने का प्रबंध करना होता है, जो आसानी से
बहुत कम धन राशि खर्च करके हो सकता है। हिमाचल प्रदेश में विभिन्न खेलों का स्तर राज्य में खेल छात्रावासों के
खुलने के बाद काफी सुधरा है। हिमाचल प्रदेश में स्कूली स्तर पर पपरोला में लड़कों के लिए बास्केटबॉल, सुंदरनगर
व नादौन में लड़कों की हाकी, माजरा में लड़कियां के लिए हाकी में खेल छात्रावास चल रहे हैं। वॉलीबाल में स्कूली
स्तर पर प्रशिक्षण का प्रबंध है। मतियाणा व रोहडू में लड़कों को तथा कोटखाई में लडकियों के लिए खेल छात्रावासों
को वर्षों पहले से शुरू किया गया है। रोहडू में फुटबॉल का भी खेल छात्रावास है। इन छात्रावासों में अच्छे प्रशिक्षकों
के साथ-साथ खेल सुविधाओं में काफी सुधार की जरूरत है, मगर महाविद्यालय व विश्वविद्यालय स्तर पर कोई भी
खेल विंग अभी तक हिमाचल प्रदेश के खिलाड़ी विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध नहीं है। हिमाचल प्रदेश में भारतीय
खेल प्राधिकरण ने तीस वर्ष पहले शिलारू में विशेष खेल क्षेत्र योजना के अंतर्गत खेल छात्रावास शुरू किया था जो
राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे परिणाम देने के बावजूद बंद हो गया था। उसी समय बिलासपुर व धर्मशाला में भारतीय
खेल प्राधिकरण ने खेल छात्रावासों की शुरुआत की और ये आज तक चल रहे हैं और यहां से कुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर
के खिलाड़ी भी निकल रहे हैं। मगर ये खेल छात्रावास हिमाचल प्रदेश के भूगोल को देखते हुए बहुत कम हैं। इसलिए
हिमाचल प्रदेश के महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में खेल विंगों की मांग बहुत पहले से हो रही है।
आज तक खेल विंग तो मिले नहीं, जो पढ़ाई में पांच प्रतिशत आरक्षण था, वह भी खत्म कर दिया। खिलाड़ी
विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई के साथ-साथ दिन में कम से कम चार घंटे खेल प्रशिक्षण को देने पड़ते हैं तथा जिला
स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक होने वाली खेल प्रतियोगिताओं व अंतर महाविद्यालय खेल प्रतियोगिता से लेकर
अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय खेलों में भाग लेने के लिए महीनों कक्षा व संस्थान से दूर रहना पड़ता है।
स्वाभाविक ही है कि आम विद्यार्थियों के मुकाबले खिलाड़ी विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए बहुत ही कम समय
मिलता है। राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए कई वर्ष समाज से कट कर खिलाड़ी को कठिन परिश्रम
करना पड़ता है। इस तरह वह पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक रूप से भी पिछड़ जाता है। इसलिए ही
उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पदक विजेता खिलाडि़यों को काफी विचार-विमर्श के बाद ही खेल आरक्षण दिया गया है। मगर
हमारे प्रशासनिक अधिकारी तथा बुद्धिजीवी पता नहीं क्यों इस सत्य को नकार रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में खेल
संस्कृति तैयार हो, इसके लिए राज्य में उपलब्ध सुविधाओं को आसानी से खिलाडि़यों को देना होगा। साथ ही साथ
महाविद्यालय व विश्वविद्यालय स्तर पर बंद किए गए खेल आरक्षण को फिर से शुरू करना होगा। तभी हम
हिमाचल में प्रशिक्षण करवा कर राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल प्रदेश के नाम को रोशन कर सकते हैं क्योंकि बेटा-बेटी
तो हिमाचल का होगा, मगर उनके साथ हिमाचल प्रदेश का नाम नहीं होगा। वह अन्य राज्यों व विश्वविद्यालयों की
ओर से खेलते नजर आएंगे। पहले तभी तो सुविधाओं के अभाव में हिमाचल प्रदेश के विद्यार्थी खिलाड़ी दूसरे राज्यों
का रुख करते थे । आज जब अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल सुविधाएं बन कर तैयार हैं और हम पढ़ाई में खेल आरक्षण
खत्म कर रहे हैं, ये हम अपनी आगामी पीढ़ी को क्या देने जा रहे हैं। हम कब तक हिमाचल प्रदेश से प्रतिभाओं का
पलायन होते मूकदर्शक बनकर देखते रहेंगे।