विनय गुप्ता
विश्व का शायद कोई भी देश ऐसा नहीं जहाँ केवल एक ही धर्म अथवा विश्वास के मानने वाले लोग रहते
हों। जिस देश में किसी एक धर्म व विश्वास के लोगों की संख्या अधिक हो उसे उस देश का बहुसंख्य
समाज कहा जाता है जबकि अन्य धर्मों के मानने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के लोग गिने जाते हैं। वैश्विक
मानवाधिकार मानदंडों के अनुसार ,मानवीयता के तहत तथा नैतिकता के आधार पर भी प्रत्येक देशों की
सरकारों व किसी भी देश के बहुसंख्य समाज का यह दायित्व है कि वह अपने देश के प्रत्येक नागरिक
को चाहे वह बहुसंख्य वर्ग का हो या अल्पसंख्य समाज का,सभी की पूर्ण सुरक्षा व संरक्षण की ज़िम्मेदारी
ले विशेषकर अल्पसंख्यकों की जान व माल की उनके धर्मस्थलों तथा धार्मिक विश्वास व मान्यताओं की
पूरी हिफ़ाज़त की जाए। परन्तु इसी दुनिया में जहां अनेक देशों में अल्पसंख्यक समाज के लोग वहां की
सरकार व बहुसंख्य वर्ग द्वारा पूर्णतयः सुरक्षित व संरक्षित हैं वहीं तमाम देश ऐसे भी हैं जहां
अल्पसंख्यकों की जान,माल,उनकी धार्मिक पहचान,उनके धर्मस्थल यहां तक कि उनकी इज़्ज़त आबरू सब
कुछ ख़तरे में है। परन्तु ऐसे देशों की सरकारों व शासकों द्वारा प्रायः अपने अपने देशों के अल्पसंख्यक
समाज के हितों की रक्षा के दावे भी समय समय पर किये जाते हैं। ऐसी सरकारों द्वारा अपना दोहरा
चरित्र इस लिए पेश किया जाता है ताकि एक ओर तो ऐसे शासक अपने देश के बहुसंख्य समाज का
तुष्टीकरण कर अपनी सत्ता को सुरक्षित रख सकें दूसरी ओर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के झूठे दावे कर
दुनिया को यह जता सकें कि उनका देश विशेषकर उनकी सरकार अपने सभी वर्गों व सभी समुदायों के
लोगों को समान अधिकार व सुरक्षा देती है। दूसरी ओर एक देश का बहुसंख्य समाज यदि अन्य देशों में
अल्प संख्या में है तो यही शासक व सरकारें उन दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों की चिंता में घड़ियाली आंसू
बहाते ज़रूर नज़र आ जाएंगी।
हमारा पड़ोसी देश चीन,पकिस्तान,अफ़ग़ानिस्तान,बंगलादेश,बर्मा तथा श्री लंका की गिनती भी ऐसे ही देशों
में होती है जहां अल्पसंख्यकों का जीना मुहाल है परन्तु इन्हीं देशों के शासक अन्य देशों के अल्प संख्या
के लोगों या मानवाधिकारों की रक्षा के लिए फ़िक्रमंद ज़रूर नज़र आते हैं। मिसाल तौर पर चीन में
अल्पसंख्यक उईगर मुसलामानों को ऐसी यातनाएं दी जा रही हैं जैसी अपराधियों को भी नहीं दी जातीं ।
ख़बरों के मुताबिक़ इसके लिए बाक़ायदा यातना केंद्र बनाए गए हैं। यहां उईगर पुरुषों को तो शारीरिक व
मानसिक यातनाएं दी ही जाती हैं साथ साथ उनकी महिलाओं का भी सामूहिक बलात्कार किया जाता व
यातनाएं दी जाती हैं। इसी प्रकार बर्मा में गत कई वर्षों से रोहंगिया को सरकार,सेना व बहुसंख्य बौद्ध
समाज के संयुक्त आतंक का सामना करना पड़ा। ख़बरों के अनुसार लाखों रोहंगिया सेना व स्थानीय
लोगों द्वारा मारे गए,घर से बेघर किये गए,उनकी पूरी की पूरी बस्तियां जला दी गईं और आख़िरकार बचे
हुए रोहंगियाओं को अपनी जान की पनाह मांगने के लिए पास पड़ोस के देशों में जाना पड़ा। आश्चर्य की
बात तो यह है कि चीन व बर्मा जैसे देशों का बहुसंख्य समाज व शासक उस गौतम बुद्ध के अनुयायी हैं
जिन्होंने पूरे विश्व को शांति व अहिंसा का पाठ पढ़ाया था। और इससे भी बड़ी हैरानी की बात तो यह है
कि बर्मा में रोहंगियाओं के विरुद्ध हिंसक मुहिम चलाने वाला विराथू नामक शख़्स स्वयं एक बौद्ध भिक्षु
है। कल्पना भी नहीं की जा सकती कि बौद्ध भिक्षु संत का वेश धारण करने वाला व्यक्ति भी इंसानों के
ख़ून का इस क़द्र प्यासा हो सकता है।
उधर हमारे दूसरे पड़ोसी पाकिस्तान में भी अल्लाह की बातें करने तथा इस्लामी संदेशों के प्रचार प्रसार
का दावा करने वाले लोग अपने ही देश के हिन्दू,सिख,ईसाई यहाँ तक कि मुसलमानों के ही अल्पसंख्या
शिया व अहमदिया समाज के लोगों को आए दिन अपनी हिंसा का शिकार बनाते रहते हैं। पाकिस्तान में
इन अल्पसंख्यक समाज के लोगों के न तो जान माल सुरक्षित हैं न ही इनकी बहन बेटियां। अभी पिछले
दिनों रहीम यार ख़ां शहर के निकट एक गांव में एक ही हिन्दू परिवार के पांच लोगों की गला रेत कर
तेज़धार हथियार तथा कुल्हाड़ी से हत्या कर दी गयी। मुझे नहीं लगता कि कमज़ोर,बेगुनाह तथा शांतिप्रिय
लोगों की इस बेदर्दी से हत्या करना किसी भी रूप में इस्लाम धर्म के मानने वालों का कृत्य कहा जा
सकता है। हां इस तरह की घटना मुसलमानों का वही वर्ग अंजाम दे सकता है जो पैग़ंबर ह्ज़रत
मोहम्मद द्वारा चलाए गए इस्लाम पंथ का नहीं बल्कि इस्लाम का बलात अपहरण करने की कोशिश
करने वाले यज़ीद जैसे क्रूर अत्याचारी शासक का अनुसरण करने वाला हो।
परन्तु इसी पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमानों के अनेक संगठन यहाँ तक कि वहाँ के शासकगण भी
अपने देश के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर ध्यान देने के बजाय भारतीय मुसलमानों के हितों की चिंता में
डूबे दिखाई देते हैं। जबकि भारत व पाकिस्तान के बहुसंख्य समाज में इतना अंतर है कि जहां भारतीय
मुसलमानों पर होने वाले किसी भी ज़ुल्म पर विरोध दर्ज करने वाला भारत का बहुसंख्य हिन्दू समाज ही
होता है। और इसी भारतीय बहुसंख्य हिन्दू समाज की धर्मनिरपेक्ष सोच की बदौलत ही न केवल बड़े गर्व
से स्वयं को भारतीय मुसलमान कहता है बल्कि दुनिया के मुसलमानों से सबसे अधिक स्वतंत्र व सुरक्षित
भी महसूस करता है। अफ़ग़ानिस्तान के हालात पाकिस्तान से बदतर हैं। यहां भी कभी मूर्तियां तोड़ना
कभी गुरद्वारों व मंदिरों व चर्चों पर हमले कभी शिया जुलूसों व इमाम बारगाहों पर हमले यहाँ तक की
बच्चों के स्कूलों व अस्पतालों तक को भी नहीं बख़्शते। यह भी वही लोग हैं जिनका ख़ून किन्हीं दूसरे
देशों में मुसलमानों के साथ घटित होने वाली हिंसक वारदातों से खौल उठता है परन्तु अपने देश के
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करना इन्हें हरगिज़ नहीं आता।
इसलिए प्रत्येक देशों के बहुसंख्य समाज व वहां के शासकों को चाहिए कि वे दूसरे देशों में अल्पसंख्यकों
की स्थिति की चिंता करने तथा उनपर घड़ियाली आंसू बहाने से पहले अपने ही देश के अल्पसंख्यक
समाज की चिंता करें तो ज़्यादा बेहतर होगा। ऐसे करने वाले शासकों को ही यह अधिकार है कि वे अन्य
देशों के स्वधर्मी लोगों के हितों की चिंता कर सकें और मानवाधिकार की दुहाई दे सकें।