अपना घर संभाले पाकिस्तान

asiakhabar.com | April 11, 2018 | 5:17 pm IST
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किस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने अभिनेता सलमान खान की काले हिरण के शिकार के मामले में दी गई पांच साल की सजा पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि सलमान को अल्पसंख्यक मुसलमान होने के नाते यह सजा दी गई है। उनका यह बयान शायद इसीलिए आया है कि सलमान खान का मामला बहुमत व अल्पसंख्यकों के बीच कोशिश का वायस बनें और भारत में नफरत फैले। आसिफ का बयान एक शरारतपूर्ण साजिश के सिवा कुछ नहीं है। वे भूल गए हैं कि पाकिस्तान में कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा है जब देश में निदरेष अल्पसंख्यकों को हिंसा का शिकार नहीं बनाया जा रहो हो। अल्पसंख्यक अहमदी समुदाय के लोगों के लिए देश में रहना मुश्किल हो गया है। जुल्फिकार अली भुट्टो के जमाने में अहमदियों को गैर मुस्लिम घोषित कर दिया गया था। इस्लाम के कुछ बुनियादी उसूलों पर मुख्यधारा के मुसलमानों और अहमदी मुसलमानों के बीच अलग-अलग राय है। मुख्यधारा के मुसलमान मोहम्मद साहब को आखिरी रसूल और पैगम्बर मानते हैं, जबकि अहमदी समुदाय का मानना है कि मोहम्मद साहब आखिरी रसूल नहीं है। जिन इमाम को आना था वे आ चुके हैं। ऐसे ही पाक में बहुसंख्यक सुन्नियों के हाथों अल्पसंख्यक शियायों को निशाना बनाना एक आम सी बात है। अहल-ए-हदीस पाक जेहादी सुन्नी संगठन को सऊदी अरब पोषित करता है, जो शियायों की हत्याओं के जिम्मेदार है, जबकि पाक के शिया आतंकी दस्ते सिपाह-ए-मोहम्मद को इरान सेना और वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराता है। दुनिया पाकिस्तान में हिन्दू-सिखों पर ढाए जा रहे जुल्म को अच्छी तरह जानती है। हाल ही में कृष्णा नामक हिन्दू महिला सीनेट में सांसद चुनकर पहुंची है। ऐसे ही पंजाब प्रांतीय सरकार ने सिखों के पारिवारिक कानून को मान्यता दी है। एक हिन्दू महिला सांसद का सीनेट में होना कोई हिन्दू समुदाय के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं होगा। इधर, सिखों के पारिवारिक कानून पर आपत्तियां भी सामने आ रही है। पाकिस्तान में दो करोड़ ईसाई रहते हैं, उन पर बहुसंख्यक कट्टरपंथी मुसलमान जानलेवा हमले करते ही रहते हैं। ईसाइयों के र्चच व कालोनियों को जलाना मामूली बात है। इन दिनों पाकिस्तान में ईसाइयों को निशाना बनाने की घटनाऐं तेज हो गई है जिससे वो खौफजदा हैं। हाल ही में बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में ईस्टर मनाए जाने के अगले दिन ही एक पाकिस्तानी ईसाई परिवार के चार सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी गई और एक राहगीर लड़की भी घायल हुई। यह परिवार एक रिक्शे में बाजार से गुजर रहा था। हमलावर कट्टरपंथी एक बाइक पर सवार थे। इसकी जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन आईएस ने ली है। इससे पहले भी कई ऐसे हमले हुए हैं। पाकिस्तान में वैसे तो अल्पसंख्यकों पर हमेशा ही हमले होते रहे हैं पर जिया-उल-हक के समय देश का इस्लामीकरण हुआ और कट्टरपंथियों को पनपने देने में आईएसआई, फौज और खुद पाकिस्तान सरकार ने मदद की। नतीजतन वहां अल्पसंख्यक खासतौर पर ईसाइयों पर हमले तेज हो गए। असल में कट्टरपंथियों को लगता है कि ईसाई अपने प्रगतिशील विचारों के जरिये उनकी लड़कियों और महिलाओं को बिगाड़ रहे हैं। कट्टरपंथियों का यह भी मानना है कि ईसाइयों का अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में रह रहे ईसाइयों से गुप्त संपर्क बना हुआ है और वे अमेरिका के लिए जासूसी कर रहे हैं। पाकिस्तान में लागू ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग भी इसका सबसे बहुत बड़ा कारण है। इसकी आड़ में निजी दुश्मनी के तहत विशेषतौर पर ईसाइयों का निशाना बनाना आम है। पाकिस्तानी अदालतें ऐसे आरोपितों को; जो अल्पसंख्यकों को निशाना बनाती हैं, उन्हें संदेह का लाभ देकर छोड़ देती हैं। पाकिस्तान में कट्टरपंथियों की ताकत जिस तेजी से बढ़ रही है, उसे देखते हुए यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि सरकार इसमें संशोधन कर पाएगी। पाकिस्तान का सर्वोच्च न्यायालय कुछ अरसा पहले अल्पसंख्यकों के मूल अधिकारों की सुरक्षा का खुद नोटिस लेकर सरकार को हुक्म दे चुकी है कि वे एक परिषद और एक खास फोर्स का गठन करें। लेकिन इस पर अमल नहीं हो रहा। ब्रिटेन की माइनोरिटी राइट्स ग्रुप इंटरनेशनल अपनी रिपोर्ट में पहले ही कह चुका है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया जा रहा है। पाकिस्तान को अपने नागरिकों-अल्पसंख्यकों की चिंता करनी चाहिए। भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग न केवल पाकिस्तान से बल्कि अन्य कट्टरपंथी देशों से ज्यादा सुरक्षित है। 


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