अनेक विधाओं के उपजीव्य बने

asiakhabar.com | October 22, 2017 | 12:37 pm IST
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क्सपियर की मृत्यु की चार सौ साल पूरे हो चुके हैं। पूरी दुनिया में जिस उत्सवी ढंग से इस वर्ष को मनाया गया उससे उनके कालजयी महत्त्व का पता चलता है। क्या हमारे समय में भी कुछ ऐसा है, जो हमें शेक्सपियर से जोड़ता है? शेक्सपियर के ट्रैजिक नायकों में आत्महत्या की प्रवृत्ति किस बात की ओर इशारा करती है। आखिर, ऐसा क्या था शेक्सपियर में जिसने कार्ल मार्क्‍स और सिग्मंड फ्रॉयड जैसे युगांतकारी चिंतकों का ध्यान आकृष्ट किया? इन सब बातों पर संजीदगी से विचार-विमर्श हो रहा है।अपने 52 वर्ष के जीवनकाल में शेक्सपियर ने 37 नाटक, 154 सॉनेट रचे। विलियम शेक्सपियर का जन्म 23 अप्रैल, 1564 को कस्बाई शहर ‘‘स्ट्ैटर्फड ऑफ एवन’ में हुआ था यानी एवन नदी पर बसा स्ट्ैटर्फड। शेक्सपियर बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे। स्कूल के दिनों में थोड़ी लैटिन और उससे भी कम ग्रीक पढ़ी थी। वहां के सामंत, रईस बग्घियों से थियेटर देखने सट्ैटफोर्ड आते। बग्घियों की रास शेक्सपियर को थमाते, शेक्सपियर उनकी बातचीत सुनते और नाटकों में उनका प्रयोग करते। उन दिनों इंग्लैंड में एलिजाबेथ का शासन था। मध्य वर्ग का उत्थान और अंतराष्ट्रीय व्यापार में बढ़ोतरी हो रही था। सामंती समाज का ढांचा टूट रहा था। पूंजीवाद उसकी जगह ले रहा था। मनोरंजन उद्योग और जिसे ‘‘पब्लिक स्फेयर’ कहते हैं, अस्तित्व में आ रहा था। संक्रमण का यह ‘‘रेनेसां’ का काल था।पूंजीवाद की इस अभ्युदयशील अवस्था में आत्महत्या की आकांक्षा शेक्सपियर के नाटकों के नायकों में दिखाई पड़ती है। यह प्रवृत्ति ‘‘हैमलेट’, मैकबेथ, ऑथेलो आदि नायकों में एक समान पाई जाती है। दरअसल, पुरानी की जगह जो नई दुनिया उभर रही थी, उससे सामाजिक जीवन में भयानक उथल-पुथल था। सबसे स्पष्ट यह ‘‘हैमलेट’ के चरित्र में उभरकर कर आती है। जहर देकर हैमलेट के पिता की हत्या की गई। मृत्यु के थोड़े ही दिन बाद मां पिता के इस हत्यारे से विवाह कर लेती है। यहीं हैमलेट अपने कालजयी उद्गार व्यक्त करता है, ‘‘टू बी ऑर नॉट टू बी दैट इज द क्वेश्चन’-जिएं कि न जिएं? यही तो समस्या है।’ जो तुम वास्तव में हो उसे प्रकट न करो, यह पूंजीवादी संस्कृति की विशेषता है। हैमलेट के चाचा की कला को शिखर तक पहुंचाया है ‘‘ऑथेलो’ नाटक में इयागो ने। ‘‘आथेलो’ में इयागो कहता है, ‘‘आई एम नॉट, व्हाट आई एम’-मैं जो ऊपर से दिखाई देता हूं, वो हूं नहीं।’ ‘‘मैकबेथ’ नाटक में लेडी मैकबेथ अपने पति से कहती है कि ‘‘ऊपर से निदरेष फूल जैसे दिखाई दो लेकिन उसके नीचे जो सांप छिपा है तुम्हें वैसा होना चाहिए।’ डंकन की हत्या करके मैकबेथ ने अपनी नींद की भी हत्या कर डाली। मैकबेथ को जाग्रत अवस्था में भी दु:स्वप्न आते हैं, खून में डूबी कटार दिखाई देती है। बार-बार धोने पर भी हाथ में खून के दाग का अहसास होता है। हैमलेट आत्महत्या की सोचता है, मैकबेथ के मन में भी यही बात आती है। ऑथेलो ने आत्महत्या कर ली थी, लेडी मैकबेथ आत्महत्या करती है, जूलियस सीजर में ब्रूटस ने आत्महत्या की।शेक्सपियर के सभी नायक मनोरोगी, मानसिक रूप से बीमार नजर आते हैं। यह मन की बीमारी पूंजीवादी समाज की विशेषता है। यह सब शेक्सपियर ने सैकड़ों साल पहले लिखा था, जब मनेविश्लेषण का नाम भी नहीं सुना गया था। मनोविश्लेषण का शास्त्र आधुनिक समाज को फ्रॉयड की देन है। अपने मनोविश्लेषण का सैद्धांतिक ढांचा खड़ा करने में शेक्सपियर के नाटकों का इस्तेमाल कच्ची सामग्री के रूप में किया करते थे। फ्रॉयड की तरह मार्क्‍स ने भी शेक्सपियर की रचनाओं का सहारा लिया। शेक्सपियर उस युग में पैदा हुए मार्क्‍सवादी शब्दावली में जिसे ‘‘पूंजी का आदिम संचय’ कहा जाता है। मार्क्‍स ने 1867 में प्रकाशित ‘‘पूंजी’ के प्रथम खंड में ‘‘मर्चेट ऑफ वेनिस’ तथा ‘‘टिमोन ऑफ एथेंस’ में कमोडिटी यानी माल की सैद्धांतिक अवधारणा गढ़ने में भी शेक्सपियर का खूब उपयोग किया। शेक्सपियर ने लगभग 1700 शब्दों का आविष्कार किया। ऐसे प्रमुख शब्दों में हैं, एसोसिएशन, बेसलेस, एक्सपोजर, फायरब्रैंड आदि। उनके समकालीन नाटककार बेन जॉनसन ने कहा था, ‘‘वे किसी युग के नहीं, बल्कि सर्वकालिक थे।


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