सूरजकुंड (फरीदाबाद)। जिस उम्र में आम बुजुर्ग चारपाई पकड़ लेते हैं, छोटी-मोटी जरूरतों के लिए भी दूसरों का मुंह ताकते हैं, उम्र के उस पड़ाव पर 86 वर्षीय रमा देवी एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती दिख रही हैं, मानो सिखा रही हों कि देखो जीना इसे कहते हैं।
बुलंद हौसले, जुनून और जज्बे से भरी रमा युवाओं को भी मात देती नजर आती हैं। स्वरोजगार और हस्तशिल्प के लिए रमा देवी को 1982 में दिल्ली स्टेट अवार्ड मिला था।
रमा देवी ने सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में खुद के बनाए हस्तशिल्प उत्पादों का स्टाल लगाया है। स्टाल नंबर 1044। दैनिक जागरण से बातचीत में रमा देवी ने बताया कि ग्वालियर में उनका घर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के घर के साथ ही था। साल 1952 में वह दिल्ली आ गईं और पढ़ाई यहीं की। दसवीं पास करने के बाद उनकी शादी हो गई। उनके छह बेटे-बेटियां हैं। पोतों की भी शादी हो चुकी है।
रमा देवी यूं तो पड़पोतों वाली हैं, पर उनका मन दस्तकारी कर गुड्डे-गुड़िया बनाने, खिलौने बनाने, ऐतिहासिक व पौराणिक शख्सियतों की छवि को अपनी कला से मूर्त रूप देने में अब भी उतना ही रमता है, जितना कि चार दशक पहले। कहती हैं कि उनमें काम करने की लगन है, इसीलिए वह अब भी स्वस्थ हैं और जब तक शरीर में जान रहेगी, काम करती रहेंगी।
रमा बताती हैं कि शादी के बाद अपने बच्चों के बेहतर लालन-पालन के लिए उन्होंने सिलाई-कढ़ाई, डिजाइनिंग आदि सीखा और खुद का काम शुरू किया। स्वावलंबन की राह पर निकली रमा देवी के हुनर से बनी कलाकृतियों ने उन्हें निर्यातक बना दिया और उनकी निगरानी में बने गुड्डे-गुड़िया, क्लॉथ हैंगिंग, फैंसी आइटम व दस्तकारी के अन्य आइटम अमेरिका, जापान, रूस आदि देशों में सप्लाई होते हैं।
रमा हैंडीक्राफ्टस के नाम से कारोबार चलाने वाली रमा देवी की दस्तकारी में राजस्थानी और गुजराती कला का मिश्रण है और कपड़े, मोती, धागा, गोटा-किनारी, वेलवेट, जूट आदि से बनते हैं। सूरजकुंड मेले में लगाए स्टाल पर उनके बनाए सभी उत्पाद उपलब्ध हैं। कीमत 50 रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक है। दिल्ली इंपोरियम में उनका स्थाई स्टाल है।
महिलाओं को कर रहीं प्रेरित-प्रशिक्षित-
रमा देवी बताती हैं कि सरकारी सेवा में रहते हुए उनका एक बेटा रिटायर भी हो चुका है, पर उनमें काम करने की इच्छा अब भी बरकरार है। वह अन्य महिलाओं को भी खुद की तरह स्वावलंबन की सीख देती हैं।
महिलाओं को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण देती हैं। स्कूलों और स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा चलाए जाने वाले केंद्रों पर भी प्रशिक्षण देने जाती हैं। महिलाओं को रोजगार की बात पर रमा देवी कहती हैं कि हिम्मत से ही काम बनता है। खुद में हुनर है, तो उसे सामने लाने में संकोच नहीं होना चाहिए।