नई दिल्ली। हाइपरसोनिक टेस्ट डमोन्स्ट्रेटर व्हीकल एचएसटीडीवी के सफल परीक्षण से
अंतरिक्ष विज्ञान में भारत ने एक और बड़ी छलांग लगा दी है। यह परीक्षण भारत के लिए तीन उच्च क्षमता की
तकनीकों का रास्ता खोलेगा। एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल, दूसरा रॉकेट तथा तीसरे स्पेस प्लेन। डीआरडीओ की
योजना है कि अगले पांच सालों के भीतर देश में हाइपरसोनिक मिसाइल तैयार कर ली जाए। डीआरडीओ ने सोमवार
को दूसरी बार स्क्रैमजेट इंजन युक्त एचएसटीडीवी का दूसरी बार परीक्षण किया है। पहला परीक्षण एक साल पूर्व
किया गया था। कुछ और परीक्षणों के बाद सबसे पहले इस तकनीक का इस्तेमाल हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल के
निर्माण में होगा। इससे दोगुनी रफ्तार की मिसाइलें बनाना संभव होगा। वैसे, भारत और रूस ब्रह्मोस-2 नाम की
जिस मिसाइल पर कार्य कर रहे हैं, वह हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल ही है, लेकिन यह परीक्षण भारत को
आत्मनिर्भर बनाएगा। डीआरडीओ के सूत्रों ने कहा कि अभी सारा फोकस तकनीक को सफल बनाने पर है। जैसे ही
तकनीक सफल हो जाती है तो उसके कई इस्तेमाल किए जा सकते हैं। हालांकि डीआरडीओ का मुख्य फोकस सैन्य
उपकरण बनाने पर ही रहेगा, लेकिन अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए भी तकनीकी महत्वपूर्ण होगी। एचएसटीडीवी
तकनीक से इन दो मिशनों को मिलेगी मदद अंतरिक यान इसरो इस तकनीक के जरिये अंतरिक यान बनाना
चाहता है ताकि उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित किया जा सके और यान वापस धरती पर लौट आए। इस तकनीक
से बहुत कम समय में अंतरिक्ष में पहुंचा जा सकता है। उपग्रह भेजना उपग्रहों को लांच करने के लिए रॉकेट जैसी
जीएसएलवी आदि में भी स्क्रैमजेट इंजन का इस्तेमाल किया जा सकता है। रॉकेटों में इसरो भी स्क्रैमजेट इंजन का
परीक्षण कर रहा है।