नई दिल्ली। अयोध्या में श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट भगवान राम की जन्म भूमि पर
भव्य मंदिर पर निर्माण के पहले जितनी जल्द संभव होगा, उतना शीघ्र एक अस्थायी एवं सुरक्षित मंदिर का
निर्माण करेगा जिसमें अभी तिरपाल में विराजित रामलला की प्रतिमा को तीन -चार साल के लिए स्थापित किया
जाएगा।
दो दिन पहले नियुक्त श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री एवं विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय
ने शुक्रवार को यहां संवाददाताओं से बातचीत में अपनी योजनाओं को साझा किया। उन्होंने कहा कि राम मंदिर के
निर्माण से 500 साल पहले हिन्दुस्तान के अपमान का परिमार्जन हो सकेगा जिस प्रकार से सोमनाथ मंदिर के
निर्माण से 12वीं सदी के अपमान का परिमार्जन हुआ था।
श्री राय ने बताया कि गुरुवार शाम को ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बुलावे पर ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल
दास जी महाराज, वकील श्री के. परासरण, कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरी जी महाराज और महामंत्री के नाते वह स्वयं
प्रधानमंत्री से मिलने गये थे।
उन्होंने बताया कि बहुत अनौपचारिक माहौल में वार्तालाप हुआ। ट्रस्ट के सदस्यों ने श्री मोदी को सरकार की ओर से
अनुकूल वातावरण के निर्माण के लिए धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने ट्रस्ट के सदस्यों को सुझाव दिया है कि शांति
से काम निकालिये। समाज में खटास या कड़वाहट पैदा हो, ऐसी बातें नहीं हों। सधी हुई सज्जनता की वाणी से ही
बोलिये।
यह पूछे जाने पर कि क्या यह माना जाये कि न्यास प्रधानमंत्री के इस सुझाव के आधार पर आगे बढ़ेगा, उन्होंने
कहा कि प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा है। हमने कभी भी अपनी वाणी से किसी को दुखी नहीं किया है और आगे भी
ऐसा नहीं किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि गुरुवार को ट्रस्ट के तीन सदस्यों ने श्री नृपेन्द्र मिश्रा से भेंट की है और श्री मिश्रा ने सबसे पहले
अयोध्या आने की बात कही है ताकि वह काम शुरू करने से पहले भगवान रामलला का आशीर्वाद ले सकें।
श्री राय ने बताया कि बुधवार को हुई पहली बैठक में हुई अनौपचारिक चर्चा में माना गया कि मंदिर निर्माण के
लिए दोबारा शिलान्यास नहीं किया जाएगा क्योंकि शिलान्यास 1989 में श्री कामेश्वर चौपाल के हाथों हो चुका है।
तीस साल बाद निर्माण पुन: प्रारंभ होगा तो उसके पहले कुछ पूजन आदि किया जाएगा। उन्होंने बताया कि बैठक
में तय किया गया कि धन के बारे में कोई विचार नहीं किया जाएगा। काम शुरू किया जाएगा। प्रभु की प्रेरणा से
समाज अपने आप धन की व्यवस्था करेगा।
उन्होंने कहा कि पंचांग देखकर ट्रस्ट की अगली बैठक शीघ्र की जाएगी और उसमें निर्माण पुन: आरंभ करने की
तिथि तय की जाएगी। उन्होंने दो अप्रैल को रामनवमी के दिन निर्माण आरंभ होने की रिपोर्टों को खारिज करते हुए
कहा कि यह तिथि व्यावहारिक नहीं है। रामनवमी के आसपास करीब 15 से 20 लाख श्रद्धालु हर साल आते हैं
और अयोध्या में वाहन से जाना संभव नहीं होता है। निर्माण रामनवमी के पर्व के समापन के बाद ही शुरू होगा।
उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण आरंभ होने से पहले वर्तमान में तिरपाल के मंदिर में विराजित भगवान रामलला के
विग्रह को 67 एकड़ के परिसर के दायरे में ही अन्यत्र स्थानांतरित करना होगा। उन्होंने संकेत दिया कि यह काम
रामनवमी के पहले भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि इसमें सुरक्षा के पहलू काे सर्वोपरि रखा जाएगा क्योंकि वर्ष
2005 में पांच आतंकवादियों ने श्रीरामजन्म भूमि पर हमला करने का प्रयास किया था लेकिन वे पुलिस के हाथों
मारे गये थे।
उन्होंने बताया कि पुलिस अधिकारियों द्वारा किसी सुरक्षित स्थान को चिह्नित करने के बाद यह भी देखा जाएगा
कि श्रद्धालुओं को भगवान के दर्शन के लिए कम चलना पड़े। उन्हाेंने कहा कि इस विषय को ट्रस्ट में निर्माण
प्रशासन समिति के प्रमुख श्री नृपेन्द्र मिश्रा देखेंगे। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अस्थायी मंदिर का ढांचा इतना
मजबूत हो कि चार साल तक मौसम के थपेड़े सह सके।
श्री राय ने बताया कि बैठक में तय हुआ है कि श्री राममंदिर का निर्माण उसी मॉडल पर किया जाएगा जो तीन
दशकों से समाज के मानसपटल पर अंकित है और कार्यशाला में उसी के अनुरूप पत्थरों का तराशने का काम चल
रहा है। उन्होंने कहा कि इसी मॉडल पर मंदिर को बनाया जाये तो दो साल में दिखना आरंभ हो जाएगा और तीन
से चार साल में मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने स्पष्ट किया कि मंदिर के मॉडल
में लंबाई, चौड़ाई एवं ऊंचाई बढ़ाने की कोई संभावना नहीं है। ऐसा करने से तय समय में उसे पूरा करना संभव
नहीं होगा।
उन्होंने यह अवश्य कहा कि यदि भविष्य में राममंदिर के विस्तार का निर्णय होता है तो उसके लिए ट्रस्ट लोगों को
पूरा मूल्य देकर ज़मीन खरीदेगा जैसे काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के लिए किया गया है। उन्होंने पुजारी के विषय में
एक सवाल के जवाब में कहा कि रामानंद संप्रदाय से उसकी पूजा पद्धति को जानने वाला और मंत्रों का सही
उच्चारण करने में सक्षम व्यक्ति को पुजारी बनाया जाएगा और उसके चयन में जाति महत्वपूर्ण नहीं होगी।