शिशिर गुप्ता
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष एन. पी. त्रिपाठी को
बागी विधायकों से वीडियो लिंक के जरिए बात करने का या उन्हें ‘बंधक’ बनाने के भय को दूर करने के लिए एक
पर्यवेक्षक नियुक्त करने का गुरुवार को सुझाव दिया। अध्यक्ष ने शीर्ष अदालत के प्रस्ताव को स्वीकार करने से
इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की एक पीठ ने कहा कि बागी विधायक
अपनी मर्जी से गए हैं या नहीं यह सुनिश्चित करने का वह इंतजाम कर सकते हैं। पीठ ने कहा, ‘‘हम बेंगलुरु या
कहीं और एक पर्यवेक्षक की नियुक्त भी कर सकते हैं ताकि बागी विधायक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए अध्यक्ष से
सम्पर्क कर सकें और उसके बाद वह निर्णय लें।’’ उसने अध्यक्ष से यह भी पूछा कि क्या बागी विधायकों के
इस्तीफा देने के संबंध में कोई जांच की गई और उन्होंने उनके (बागी विधायकों के) संबंध में क्या निर्णय किया है।
अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि जिस दिन अदालत अध्यक्ष को समय सीमा के तहत
निर्देश देने लगेगा, तो यह संवैधानिक समस्या बन जाएगा। राज्यपाल लालजी टंडन की ओर से पेश हुए वकील ने
अदालत को बताया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ आराम से बैठे हैं और अध्यक्ष अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
पीठ ने सभी पक्षों से पूछा कि क्या विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता के मामले में अध्यक्ष का निर्णय शक्ति
परीक्षण को प्रभावित करेगा। उसने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत के अनुसार इस्तीफे और अयोग्यता के मामले
अध्यक्ष के समक्ष लंबित होने से शक्ति परीक्षण पर कोई राके नहीं होती। पीठ ने कहा कि अदालत को यह देखना
होगा कि क्या राज्यपाल ने उसे मिली शक्ति से आगे बढ़कर काम किया।