फरीदाबाद। इलाज के नाम पर अस्पतालों द्वारा होने वाली वसूली का एक और मामला सामने आया है। दिल्ली के फरीदाबाद में एक अस्पताल ने गर्भवती मां और उसके बच्चे की मौत के बाद परिजनों को 18 लाख रुपए का बिल थमा दिया है। महिला 22 दिन तक अस्पताल में रही। वहीं दूसरी तरफ परिजन अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं। परिजनों का कहना है कि महिला का डॉक्टर इलाज के दौरान ना तो उस महिला को बचा पाए और न ही पेट में पल रही 7 महीने की बच्ची को।
जानकारी के अनुसार फरीदाबाद के गांव नचौली रहने वाले सीताराम ने अपनी गर्भवती बेटी श्वेता (20) को 13 दिसंबर को बुखार होने पर एशियन हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। परिजनों ने बताया कि भर्ती किए जाने के दो-तीन दिन बाद अस्पताल ने बताया कि श्वेता के पेट में ही बच्चे की मौत हो गई है और श्वेता की जिंदगी बचाने के लिए ऑपरेशन करना होगा जिसका खर्च 3 लाख आएगा। डॉक्टरों ने पहले श्वेता को टायफाइड बताया और बाद में दूसरी दिक्कत बता दी।
श्वेता के अंकल के अनुसार उसे बुखार था लेकिन डॉक्टरों ने उसे आईसीयू में रखा। बाद में ऑपरेशन की बात कहकर 3 लाख जमा करने को कहा। हम पहले ही 10-15 लाख जमा कर चुके थे लेकिन अस्पताल 18 लाख मांग रहा था। डॉक्टरों ने कहा कि जब तक पूरा पैसा जमा नहीं होता तब तक ऑपरेशन नहीं होगा।
बताया जा रहा है कि ऑपरेशन में देरी की वजह से ही श्वेता के पेट में इंफेक्शन हो गया। पैसा जमा करने के बाद ऑपरेशन के दौरान श्वेता के गर्भ में पल रही 7 महीने की बच्ची मृत पाई गई।
परिजनों की मानें तो श्वेता की हालत बिगड़ने के बाद उसे आईसीयू में ले जाया गया। उपचार के दौरान लगातार श्वेता के पिता से पैसे जमा कराए जाते रहे। मौत के बाद शव ले जाने से पहले कुल 18 लाख का बिल थमा दिया गया।
पिता ने कहा- अस्पताल पर हो सख्त कार्रवाई
श्वेता के पिता सीताराम का आरोप है कि अस्पताल की लापरवाही के चलते ही उनकी बेटी और उसके पेट में पल रहे बच्चे की मौत हुई है। ऐसे में अस्पताल के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उनका आरोप है कि अस्पताल की तरफ से जब और पैसे की मांग की गई तो उन्होंने पैसे जमा करने से मना कर दिया, जिसके बाद कुछ ही देर में श्वेता को मृत घोषित कर दिया।
पूरी कोशिश के बाद भी नहीं बचा सके श्वेता कोः अस्पताल प्रशासन
श्वेता और उसके पेट में पल रहे बच्चे की मौत पर अस्पताल प्रशासन ने अपनी सफाई दी है। एशियन अस्पताल के चेयरमैन (क्वालिटी एंड सेफ्टी) डॉक्टर रमेश चांदना का कहना है कि श्वेता 22 सप्ताह से गर्भवती थी, साथ ही उसे 8-10 से बुखार भी था। डॉक्टर के मुताबिक, हमने अस्पताल के आइसीयू में भर्ती कर टाइफायड का इलाज शुरू किया था। हम श्वेता के बच्चे को नहीं बचा सके। हमने पाया कि उसकी आंत में छेद था। हमने ऑपरेशन किया, लेकिन उसे बचा नहीं सके।
अस्पताल की सफाई से संतुष्ट नहीं परिजन
वहीं, अस्पताल की सफाई से श्वेता के परिजन संतुष्ट नहीं है और अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं। पिता सीता राम का यह भी कहना है कि उसे अपनी बीमार बेटी से मिलने तक नहीं दिया गया। जब वह 5 जनवरी को आईसीयू में एडमिट श्वेता से मिलने गए तो उनकी बेटी बेसुध पड़ी हुई थी।
इससे पहले पड़ोसी जिले गुरुग्राम के निजी अस्पताल फोर्टिस में अवैध वसूली का शर्मनाक मामला सामने आया था। डेंगू पीड़ित बच्ची आद्या को पिछले साल 31 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उसने 14 सितंबर को दम तोड़ दिया। मौत के बाद परिजनों ने 16 लाख बिल जमा करने को कहा था। बाद में यह मामला काफी उछला था, जिसके बाद अस्पताल पर कार्रवाई भी हुई थी।