नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह संबंधी ''औपनिवेशिक काल'' के दंडात्मक कानून
के दुरुपयोग पर बृहस्पतिवार को चिंता व्यक्त की और प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली 'एडिटर्स गिल्ड
ऑफ इंडिया' की याचिका समेत याचिकाओं के समूह पर केंद्र से जवाब मांगा।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता ''कानून का दुरुपयोग'' है और
उसने पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे केंद्र से सवाल किया कि वह इस प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं कर रहा।
न्यायलय ने कहा कि राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने
महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था। इस बीच, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रावधान
की वैधता का बचाव करते हुए कहा कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए जा
सकते हैं।
पीठ मेजर-जनरल (सेवानिवृत्त) एसजी वोम्बटकेरे की एक नई याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड
संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध है।